इटावा में ‘महात्मा गांधी’ को ट्रेन से उतारा गया
इटावा : शताब्दी एक्सप्रेस का कन्फर्म टिकट होने के बाद भी कोच कंडक्टर ने एक वृद्ध को कोच में सिर्फ इसलिए प्रवेश नहीं करने दिया क्योंकि उसने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तरह धोती को अपने शरीर से लपेट रखा था और उसने पैर में रबर की चप्पल धारण कर रखी थी। इस प्रकरण से तो एक महात्मा गांधी का दक्षिण अफ्रीका का प्रकरण जेहन में आ जाता है। 7 जून 1893 को दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को ट्रेन से धक्के मारकर सिर्फ इसलिए उतार दिया गया था क्योंकि वह अश्वेत थे। ठीक ऐसी ही घटना 126 वर्ष बाद इटावा जंक्शन पर घटी, जब दुबली-पतली काठी वाले 72 वर्षीय बाबा रामअवध दास को कन्फर्म टिकट होने के बाद भी ट्रेन में इसलिए नहीं चढ़ने दिया गया, क्योंकि वह जो धोती पहने थे, वही लपेटे भी थे। रबर की चप्पल पहने थे। कोच कंडक्टर और सिपाही ने उपहास कर अंग्रेजी हुकूमत का तीखा दर्द दोहरा दिया, जो रंग और पहनावे के आधार पर भारतीयों का दमन करता था। बाबा इस अपमान को रेलवे की शिकायत पुस्तिका में दर्ज कराकर बस से गंतव्य को रवाना हुए। बाराबंकी के मूसेपुर थुरतिया के बाबा रामअवध दास ने इटावा जंक्शन से गाजियाबाद के लिए गुरुवार 4 जुलाई को कानपुर से नई दिल्ली के मध्य चलने वाली रिवर्स शताब्दी एक्सप्रेस (12033) का टिकट ऑनलाइन बुक किया था। ट्रेन के सी-2 कोच में 72 नंबर सीट कंफर्म थी, इसका उल्लेख आरक्षण चार्ट में भी है। ट्रेन सुबह 7.40 बजे इटावा आई तो वह निर्धारित कोच में चढ़ने लगे, तभी गेट पर मौजूद सिपाही ने उनको टोका। इसी दौरान कोच कंडक्टर भी आ गया। उसने वृद्ध का हुलिया देख उनका उपहास उड़ाया। सिपाही के अभद्रता करने पर उन्होंने टिकट दिखाया, लेकिन उनकी बात सुनी नहीं गई। दो मिनट होते ही 7.42 बजे ट्रेन चल दी, इससे वह ट्रेन में सवार नहीं हो पाए। नाराज बुजुर्ग स्टेशन मास्टर प्रिंसराज यादव के पास पहुंचे। स्टेशन मास्टर ने उन्हें बैठाया और बात सुनकर शांत करने का प्रयास किया। इसके बाद मगध एक्सप्रेस से गाजियाबाद भिजवाने की बात कही पर वृद्ध नहीं माने। उन्होंने शिकायत पुस्तिका में अपनी बात दर्ज करवाकर कहा कि इस अपमान ने आहत किया है, रेलमंत्री से इसकी शिकायत करूंगा। इसके बाद ट्रेन के बजाय बस से गाजियाबाद के लिए रवाना हुए।