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इतिहास में अहम है 19 दिसम्बर, काकोरी कांड के 4 शहीदों की रोचक कहानी


लखनऊ : देश के इतिहास में 19 दिसंबर की तारीख काफी अहम है। यही वह तारीख है जब साल 1927 में देश के महान क्रांतिकारियों अशफाक उल्लाह खान और राम प्रसाद बिस्मिल के साथ ठाकुर रोशन सिंह को फांसी दी गई थी। फांसी की वजह काकोरी कांड था। राम प्रसाद बिस्मिल प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे जो ऐतिहासिक काकोरी कांड में शामिल थे। उनका जन्म 11 जून, 1897 को शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। वह हिंदुस्तान रिपब्लिकन असोसिएशन नाम के क्रांतिकारी संगठन के संस्थापक सदस्य थे। उन्हीं के नेतृत्व में काकोरी कांड को अंजाम देने की योजना बनाई गई थी।
अशफाकुल्ला खां का जन्म 22 अक्टूबर, 1900 को शाहजहांपुर में हुआ था। बिस्मिल से उनकी गहरी दोस्ती थी। जेलर मुस्लिम था, उसने धर्म का फायदा उठाकर बिस्मिल और अशफाकुल्ला के बीच फूट डालने की कोशिश की। लेकिन दोनों की दोस्ती इतनी मजबूत थी कि वह अशफाकुल्ला को टस से मस नहीं कर सका। काकोरी कांड में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी। वह ब्रिटिश शासन को चकमा देकर हिरासत से फरार होने में कामयाब हो गए थे लेकिन एक पठान दोस्त की गद्दारी की वजह से फिर गिरफ्तार हो गए। उनका जन्म 22 जनवरी, 1892 को शाहजहांपुर में हुआ था। वह वास्तव में एक शार्प शूटर और बहुत अच्छे रेसलर थे। वह शाहजहांपुर में आर्य समाज से भी जुड़े थे। बिस्मिल से उनकी मुलाकात 1922 में हुई थी। चूंकि बिस्मिल को एक शॉर्प शूटर की जरूरत थी, इसलिए उन्होंने ठाकुर रोशन सिंह को अपने संगठन का सदस्य बना लिया। रोशन सिंह को पार्टी में शामिल होने वाले युवाओं को शूटिंग सिखाने का काम सौंपा गया। काकोरी कांड में ठाकुर रोशन सिंह शामिल नहीं थे, फिर भी उनको गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी दी गई। उनके बारे में एक रोचक बात यह है कि जब जज ने ‘फाइव इयर्स’ सजा सुनाई तो वह समझें कि उनको पांच साल की सजा दी गई है। इस पर वह जज को राम प्रसाद बिस्मिल के बराबर सजा नहीं देने के लिए गाली देने लगे। जब उनको बताया गया कि उनको भी फांसी की सजा दी गई है तब जाकर शांत हुए। आज के बांग्लादेश में उनका जन्म हुआ था। नौ साल की उम्र में वह परिवार के साथ बनारस आ गए थे। बनारस में ही उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई। बनारस में उनका सम्पर्क प्रसिद्ध क्रांतिकारी शचींद्रनाथ सान्याल से हुआ और वह आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। बाद में वह हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के सदस्य बन गए और राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में काकोरी कांड में हिस्सा लिया। उनको निर्धारित तारीख से 2 दिन पहले ही 17 दिसंबर, 1927 को गोंडा जिला जेल में फांसी दे दी गई।

क्रांतिकारियों को यह लगने लगा था कि अंग्रेजों से आजादी ताकत के बल पर ही मिलेगी। उनका मानना था कि विनम्रता से कोई फायदा नहीं होगा, सशस्त्र लड़ाई लड़कर ही आजादी लेनी होगी। सशस्त्र लड़ाई के लिए हथियार और अन्य सामान की जरूरत थी जिसके लिए काफी पैसा चाहिए था। ऐसे में राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में कुछ क्रांतिकारियों ने सरकारी खजाने को लूटने की योजना बनाई। राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 10 क्रांतिकारियों ने 9 अगस्त, 1925 को इस योजना को लखनऊ से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित काकोरी नाम के स्थान पर अंजाम दिया। सहारनपुर से लखनऊ जाने वाली पैसेंजर ट्रेन को क्रांतिकारियों ने काकोरी में जबरन रुकवाया। ट्रेन में रास्ते में पड़ने वाले रेलवे स्टेशनों से संग्रह किया गया पैसा था जिसे लखनऊ में जमा करना था। क्रांतिकारियों ने ट्रेन के गार्ड और यात्रियों को बंदूक की नोंक पर काबू में कर लिया। उनलोगों ने गार्ड के क्वॉर्टर में रखी तिजोरी खुलवाया और उसमें से नकदी लेकर फरार हो गए।  इस घटना के एक महीने के अंदर करीब 40 लोगों को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तार किए गए क्रांतिकारियों में स्वर्ण सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, दुर्गा भगवती चंद्र वोहरा, रोशन सिंह, सचींद्र बख्शी, चंद्रशेखर आजाद, विष्णु शरण डबलिश, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुकुंदी लाल, शचींद्रनाथ सान्याल एवं मन्मथनाथ गुप्ता शामिल थे। उनमें से 29 के अलावा बाकी को छोड़ दिया गया। 29 लोगों के खिलाफ स्पेशल मैजिस्ट्रेट की अदालत में मुकदमा चलाया गया। अप्रैल, 1927 को अंतिम फैसला सुनाया गया। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई। जिनलोगों पर मुकदमा चलाया गया उनमें से कुछ को 14 साल तक की सजा दी गई। दो ने सरकारी गवाह बनना स्वीकार कर लिया था, इसलिए उनको माफ कर दिया गया। दो और क्रांतिकारी को छोड़ दिया गया था। चंद्रशेखर आजाद किसी तरह फरार होने में कामयाब हो गए थे लेकिन बाद में एक एनकाउंटर में वह शहीद हो गए। जिन चार क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी, उनको बचाने की काफी कोशिश की गई। मदन मोहन मालवीय ने उनके बचाव के लिए अभियान शुरू किया और भारत के तत्कालीन वायसराय एवं गवर्नर जनरल एडवर्ड फ्रेडरिक के पास दया याचिका भेजी। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन चारों को फांसी देने का फैसला कर लिया था। उनकी दया याचिका को कई बार खारिज कर दिया गया। 17 दिसंबर, 1927 को राजेंद्र लाहिड़ी को पहले फांसी दी गई। फिर 19 दिसंबर, 1927 को राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी दी गई।

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