इधर निकली 72 हजार सरकारी नौकरियों, उधर उग्र हुआ मराठा आरक्षण आंदोलन
महाराष्ट्र में मराठा समुदाय आरक्षण की मांग तो लंबे समय से करता आ रहा है, लेकिन एक प्रदर्शनकारी द्वारा नदी में कूदकर खुदकुशी की घटना के बाद आंदोलन और भी उग्र हो गया है.
वैसे तो इस पूरे आंदोलन की शुरुआत 13 जुलाई 2016 को अहमदनगर के गांव कोपरडी में हुई थी. जहां लड़की की रेप करके हत्या कर दी गई. पीड़ित लड़की मराठा समुदाय से थी. जबकि गिरफ़्तार होने वाले तीन युवा दलित थे.
इस घटना को लेकर मराठा समाज सड़कों पर आ गया. पहला मोर्चा औरंगाबाद में हुआ. धीरे-धीरे यह आग पूरे महाराष्ट्र में फैली और बड़े स्तर पर लोग जुटने लगे.
मोर्चे में मराठों ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम को ख़त्म करने की मांग की गई. उनका तर्क था कि दलित इस क़ानून का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं.
इसके बाद मराठा समुदाय ने महाराष्ट्र में ओबीसी दर्जे की मांग उठाई. मराठा नेताओं ने मांग की कि उनके समुदाय को ओबीसी कैटेगरी में शामिल किया जाए.
उनका कहना है कि अगर बिना ओबीसी कैटेगरी में शामिल किए उन्हें आरक्षण दिया जाता है तो ये कोर्ट कचहरी के मुकदमों में फंस जाएगा और राज्य में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ऊपर चला जाएगा. इससे मराठा आरक्षण को कोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी. फिलहाल, संवैधानिक व्यवस्था के तहत किसी भी राज्य में 50 फीसदी से ऊपर आरक्षण देना संभव नहीं है.
वैसे तो मराठा समुदाय की मुख्य मांग सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण है. इस मांग ने भी जोर तब पकड़ा जब देवेंद्र फडणवीस सरकार ने 72 हजार सरकारी नौकरियों पर भर्ती निकाली.
मराठा समुदाय ने यह मांग की है कि मराठाओं के लिए सरकार आरक्षण की ऐसी व्यवस्था करे, जिसे कोर्ट खारिज न कर पाए और तब तक 72 हजार सरकारी नौकरियों की भर्ती पर रोक लगे.