इनकम टैक्स : क्या पूर्व वित्त मंत्री की यह योजना नौकरीपेशा लोगों के लिए ‘रामबाण’ साबित होगी?
दस्तक टाइम्स एजेन्सी/ नई दिल्ली: एक अरब से अधिक आबादी वाले अपने देश में मात्र 3 फीसदी लोग इनकम टैक्स देते हैं। ऐसे में आप समझ सकते हैं कि सैलरी क्लास की टैक्स अधिक होने की शिकायत वाकई कितनी जायज है। अकाउंटेंसिंग फर्म प्राइसवाटरहाउसकूपर्स (PwC) ने 2014 में पाया था कि भारत में नौकरीशुदा किसी व्यक्ति की टेक होम सैलरी यूके, कनाडा और अमेरिका जैसे देशों की नौकरीशुदा व्यक्ति के मुकाबले काफी कम होती है। आम मिडिल क्लास को इनकम टैक्स के जबरदस्त भार से कैसे मुक्ति दिलाई जाए, इसके लिए पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा के पास एक उपाय है।
पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने एनडीटीवी प्रॉफिट को बताया कि उन्होंने इनकम टैक्स की लिमिट बढ़ाकर 3 लाख रुपए तक करने की सिफारिश 2012 में की थी। सिन्हा ने यह भी कहा था कि इनकम टैक्स पर छूट की लिमिट को कॉस्ट ऑफ लिविंग से लिंक किया जाए। सिन्हा डायरेक्ट टैक्स कोड बिल पर बनाई गई वित्तीय मामलों की पार्लियामेंटरी स्टैंडिंग कमिटी के अध्यक्ष थे।
जिस तरह से सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाला डीए निर्वाह व्यय सूचकांक (कॉस्ट ऑफ लिविंग इंडेक्स) के आधार पर दिया जाता है, ठीक वैसे ही इनकम टैक्स में छूट की लिमिट ऑटोमैटिकली हर साल इस सूचकांक के आधार पर बढ़ जानी चाहिए। तब कोई शिकायत नहीं करेगा, कोई यह नहीं कहेगा कि चीजों के दाम ऊपर चले गए हैं और मेरी इनकम उतनी की उतनी है जबकि मैं टैक्स ज्यादा पे कर रहा हूं।
बढ़ती महंगाई दर के अनुपात में डीए तय किया जाता है। डीए सरकारी कर्मियों को दिया जाता है और यह कितना दिया जाना है, इसकी गणना बेसिक सैलरी के कुछ प्रतिशत के हिसाब से कैलकुलेट की जाती है। डीए देने का मकसद लोगों पर बढ़ती मुद्रास्फीति के असर को अपेक्षाकृत कम करना है।
विशेषज्ञ कहते हैं कि सिन्हा का सुझाव सैलरी क्लास लोगों पर टैक्स का भार कम करने के लिहाज से काफी अच्छा है। उनका कहना है कि इस पर वित्त मंत्री अरुण जेटली को विचार करना चाहिए।
लेकिन…
डायरेक्ट टैक्स कोड बिल के जरिए 60 साल पुराने इनकम टैक्स कानून को बदला जा सकता है लेकिन इसके लागू होने के आसार हैं नहीं क्योंकि जेटली पिछले ही साल कह चुके हैं कि इस प्रस्तावित कोड के कई प्रॉविजन मौजूदा टैक्स संबंधी कानून में समावेशित कर दिए गए हैं।