रिलायंस इंडस्ट्रीज की नींव धीरूभाई अंबानी ने रखी. 2002 में आज ही के दिन स्ट्रॉक के चलते उनका निधन हो गया था. आइए जानते हैं कैसे की उन्होंने अपने बिजनेस शुरुआत की.
धीरूभाई अंबानी की सफलता की कहानी कुछ ऐसी है कि उनकी शुरुआती सैलरी 300 रुपये थी. लेकिन अपनी मेहनत के दम पर देखते ही देखते वह करोड़ों के मालिक बन गए. बिजनेस की दुनिया के बेताज बादशाह के पद चिन्हों पर चलकर ही आज मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी सफल बिजनेसमैन की कतार में खड़े हो गए हैं.
जन्म
धीरूभाई अंबानी गुजरात के छोटे से गांव चोरवाड़ के रहने वाले थे. उनका जन्म 28 दिसंबर 1933 को सौराष्ट्र के जूनागढ़ जिले में हुआ था. उनका पूरा नाम धीरजलाल हीराचंद अंबानी था. उनके पिता स्कूल में शिक्षक थे. घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, जिसके बाद उन्होंने हाईस्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद ही छोटे-मोटे काम शुरू कर दिए. लेकिन इससे परिवार का काम नहीं चल पाता था.
…जब मिली नौकरी
उनकी उम्र 17 साल थी. पैसे कमाने के लिए वो साल 1949 में अपने भाई रमणिकलाल के पास यमन चले गए. जहां उन्हें एक पेट्रोल पंप पर 300 रुपये प्रति माह सैलरी की नौकरी मिल गई. कंपनी का नाम था ‘ए. बेस्सी एंड कंपनी’. कंपनी ने धीरूभाई के काम को देखते हुए उन्हें फिलिंग स्टेशन में मैनेजर बना दिया गया.
कुछ साल यहां नौकरी करने के बाद धीरूभाई साल 1954 में देश वापस चले आए. यमन में रहते हुए ही धीरूभाई ने बड़ा आदमी बनने का सपना देखा था. इसलिए घर लौटने के बाद 500 रुपये लेकर मुंबई के लिए रवाना हो गए.
जब आया का एक आइडिया
धीरूभाई अंबानी बाजार के बारे में बखूबी जानने लगे थे. और उन्हें समझ में आ गया था कि भारत में पोलिस्टर की मांग सबसे ज्यादा है और विदेशों में भारतीय मसालों की. जिसके बाद बिजनेस का आइडिया उन्हें यहीं से आया.
उन्होंने दिमाग लगाया और एक कंपनी रिलायंस कॉमर्स कॉरपोरेशन की शुरुआत की, जिसने भारत के मसाले विदेशों में और विदेश का पोलिस्टर भारत में बेचने की शुरुआत कर दी.
1 मेज, 3 कुर्सी, 2 सहयोगी
अपने ऑफिस के लिए धीरूभाई ने 350 वर्ग फुट का कमरा, एक मेज, तीन कुर्सी, दो सहयोगी और एक टेलिफोन के साथ की थी. वह दुनिया के सबसे सफलतम लोगों में से एक धीरूभाई अंबानी की दिनचर्या तय भी होती थी. वह कभी भी 10 घंटे से ज्यादा काम नहीं करते थे.
देश के सबसे अमीर व्यक्ति
2000 के दौरान ही अंबानी देश के सबसे रईस व्यक्ति बनकर उभरें. मीडिया रिपोर्टे के अनुसार जब उनकी मौत हुई तब तक रिलायंस 62 हजार करोड़ की कंपनी बन चुकी थी. उनका निधन 6 जुलाई, 2002 को हुआ था.