इस गांव में अधिकारियों की है भरमार , हर बच्चा बनना चाहता है आईएएस
दस्तक टाइम्स/एजेंसी-
जौनपुर: उत्तर प्रदेश में एक गांव ऐसा है जहां से भारतीय प्रशासनिक, भारतीय पुलिस और प्रांतीय सिविल सेवा के 50 से अधिक अधिकारी निकल चुके हैं। लखनऊ से मिली जानकारी के अनुसार करीब चार हजार आबादी वाले जौनपुर जिले के माधवपट्टी गांव ने 42 तो केवल आईएएस अधिकारी दिये हैं। बैंक अधिकारियों और अन्य विभागों के अधिकारियों की इस गांव में भरमार है। इसी गांव के ठाकुर सूर्यबली सिंह ने एमए और एलएलबी में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से टाप किया था, इनके भाई भगवान दीन सिंह समेत इनके कुनबे में 13 आईएएस अधिकारी निकले।इनमें 1960 में विनय कुमार सिंह ने देश के इस सबसे बडे प्रतियोगियात्मक परीक्षा में 13वां स्थान हासिल किया था और बाद में वह बिहार के मुख्य सचिव होकर रिटायर हुए। सिंह के कुनबे के अजय कुमार सिंह ,छासाल सिंह 1961 में आईएएस परीक्षा में चुने गये। भगवती दीन सिंह के बेटे इन्दु प्रकाश सिंह 1951 में आईएफएस चुने गये। वह करीब 16 देशों में भारत के राजदूत रहे। उन्हीं के भाई विद्या प्रकाश सिंह भी 1953 में आईएएस हो गये। इसी खानदान के मनस्वी कुमार सिंह पंजाब कैडर के आईएएस है। उनके छोटे भाई यशस्वी सिंह उत्तराखंड कैडर के आईएएस हैं। यशस्वी सिंह के परिवार के कुल मिलाकर 13 आईएएस और 50 राजपाित अधिकारी हो चुके हैं।गांव के ही सजल कुमार सिंह के भाई शशिकांत सिंह बिहार न्यायिक सेवा में है वह बिहार उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष है। इसी गांव का एक अन्य परिवार राममूर्ति सिंह का है। सिंह ब्रिटिश काल में डिप्टी कलेक्टर थे। उनके परिवार में उत्तर प्रदेश में नगर विकास के सचिव रहे प्रकाश सिंह हैं। उनके भाई ओपी सिंह गोरखपुर मेडिकल कालेज के प्राचार्य रह चुके हैं। इससे पहले राममूर्ति सिंह के भाई सूर्यपाल सिंह के परिवार से प्रवीण सिंह ,विकास सिंह और विशाल सिंह भी प्रांतीय सिविल सेवा (पीसीएस) में चयनित हुए। गांव के प्रेमचन्द्र सिंह भारतीय पुलिस सेवा में थे और हाल ही में पुलिस महानिरीक्षक पद से रिटायर हुए हैं।इनके भाई नागेन्द्र सिंह भाभा परमाणु केन्द्र में वैज्ञानिक हैं। इसी गांव की बहू शिवानी सिंह ने 2013 की पीसीएस परीक्षा में महिलाओं में पहला स्थान हासिल किया था। माधवपट्टी के ही डा. जितेन्द्र सिंह ने फोन पर बताया कि उन्होंने 1960 में लखनऊ के किंगजार्ज मेडिकल कालेज से एमबीबीएस किया था। चार साल बाद ही वह आस्ट्रेलिया में एक अस्पताल में डाक्टर हो गये। बाद में उन्होंने वहीं निजी प्रैक्टिस शुरु कर दी। वह करीब 40 वर्षो बाद गांव लौटे और एक अच्छा स्कूल खोल दिया। वह बताते हैं कि उनके पुश्तैनी मकान में ताला लगा था। मकान का ताला खुलवाकर उसे सुसज्जित कराया और उसमें स्कूल खोल दिया। आस्ट्रेलिया में वह अभी भी प्रेक्टिस करते हैं लेकिन दो-तीन महीने में एक चक्कर गांव जरुर आ जाते हैं।