देहरादून: प्रचंड बहुमत की सरकार, विधानसभा में 57 विधायक, केंद्र में पार्टी की सरकार और मजबूत केंद्रीय नेतृत्व, उत्तराखंड में सत्तारूढ़ भाजपा के पास फिलवक्त ऐसा सबकुछ है जिस पर बेसाख्ता फख्र किया जा सके। वहीं दूसरी ओर राज्य मंत्रिमंडल में सहयोगियों के बीच कभी-कभार ही सही, लेकिन बाहर झांकता असंतोष। असंतोष की यही झलक हरिद्वार जिले में सरकार के मंत्रियों, विधायकों, नगर निगम के मेयर और सांसद के बीच सड़कों पर तीखी कलह के रूप में सामने आ चुकी है।
सरकार बनने के महज कुछ अरसे के बाद ही इन हालात ने फिर ये संकेत जरूर दे दिए हैं कि मजबूत भाजपा के सामने भी वही चुनौती मुंहबाए खड़ी है, जिसने कांग्रेस के जमे-जमाए पांव को उखाड़ फेंकने में अहम भूमिका अदा की। शुरुआती दौर में असंतोष की सुलगती चिंगारी को थामने की पुख्ता कोशिशें नहीं हुईं तो आने वाले वक्त में इसे दोहराने से रोकना शायद ही मुमकिन हो।
मोदी लहर ने संभाला
मोदी लहर के बूते राज्य में भाजपा के बड़े उभार ने कांग्रेस के असंतोष का सिर्फ ज्वाला में ही नहीं बदला, बल्कि विधानसभा चुनाव में उसके अति आत्म विश्वास की चिंदिया उड़ाकर रखने में कसर नहीं छोड़ी। नतीजा कांग्रेस आज विपक्ष की मजबूत भूमिका निभाने को तरस गई है। राज्य गठन के सत्रह सालों में राजनीतिक उठापटक और असंतोष के कई ज्वार-भाटा का सामना कर चुके उत्तराखंड के लिए राहत की बात ये तो है कि मौजूदा सत्तारूढ़ दल भाजपा को अंदर और बाहर दोनों ही तरफ से फिलहाल मजबूत चुनौती से जूझना नहीं पड़ रहा है।
अपेक्षाएं न बन जाएं असंतोष
मजबूत केंद्रीय नेतृत्व की पुख्ता निगहबानी, प्रदेश में सरकार और संगठन की ढीली चूलों पर निगाह जमाए हुए है, लेकिन ऐतिहासिक जनादेश के साथ ही जन अपेक्षाओं और आकांक्षाओं का दबाव भी साफतौर पर तारी है ही, संगठन के भीतर भी लालबत्तियों को लेकर बढ़ती चाह जोर मार रही है। इसे लेकर साधा जाने वाला संतुलन गड़बड़ाया तो सत्तारूढ़ पार्टी की मुश्किलें बढ़ते देर नहीं लगने वाली। जन अपेक्षाओं के मोर्चे पर लड़खड़ाए तो भीतर से असंतोष को भी सिर उठाते देर नहीं लगेगी। पिछले साल सत्तारूढ़ कांग्रेस के साथ हुए हादसे का सबक यही कुछ कह रहा है।
कांग्रेस पर भारी अति आत्म विश्वास
दरअसल, वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के कहर से उबरकर सत्तारूढ़ कांग्रेस ने तीन उपचुनाव तो जीते ही, राज्य में अपनी सियासी पकड़ मजबूत करने में कसर नहीं छोड़ी, लेकिन इन सबके बीच कांग्रेस अपने भीतर बढ़ते असंतोष के दूरगामी असर को पहले पहचानने और फिर उस पर काबू पाने में नाकाम रही। इसका नतीजा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के दस विधायकों के टूटने के तौर पर सामने आया था। अब इन असंतुष्ट कांग्रेस नेताओं की पूरी जमात कांग्रेस का हाथ छिटका कर भाजपा में शामिल हो चुकी है। लिहाजा अब ये चुनौती भाजपा के सामने है कि वह असंतोष का समय रहते ही सूंघने और उस पर काबू कर अपनी सियासी ताकत बढ़ाने में कितना कारगर रह पाती है।
डबल इंजन यानी केंद्र से हैं उम्मीदें
प्रदेश में सिर्फ भाजपा ही नहीं, आम जनता की उम्मीदों के केंद्र में डबल इंजन ही है। जी हां, केंद्र के डबल इंजन के बूते ही यह हिमालयी राज्य अपनी दिक्कतें दूर होने का इंतजार कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विधानसभा चुनाव में जनता की इन उम्मीदों को जगाकर ही कांग्रेस की चुनौती को हवा कर दिया था। प्रधानमंत्री ने जनता से डबल इंजन के लिए समर्थन मांगा और जनता ने इस पर मुहर लगा दी।
विषम भौगोलिक क्षेत्रफल और पर्यावरणीय बंदिशों से जूझ रहा उत्तराखंड अपने संसाधनों पर लगे पहरे के चलते केंद्र के डबल इंजन के बूते ही विकास की पटरियों पर सरपट दौड़ सकता है। केंद्र की महत्वाकांक्षी ऑल वेदर रोड, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन, चार धाम रेलवे नेटवर्क और नई केदारपुरी के निर्माण जैसी परियोजनाओं के बूते राज्य को अपनी नैया पार लगने की उम्मीद है।
हालांकि, राज्य सरकार केंद्र से केंद्रपोषित योजनाओं समेत विभिन्न मदों में बकाया धनराशि मिलने की हसरत भी पाले हुए है। इसी वजह से केंद्र भी अपनी परियोजनाओं की प्रगति पर निगाह रखे हुए है। राज्य को ये भी उम्मीद है कि केंद्र की मदद के बूते उत्तराखंड की धरती पर कई उद्योग भी कदम रखने के लिए आगे आएंगे।