हथियारों की पहचान के लिए जिला प्रशासन को पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों की टीम का पिपोला गांव पहुंचने का इंतजार है। इतिहासकार महिपाल सिंह नेगी का कहना है कि ये हथियार गोरखा सरदार सुब्बा जगजीत के सैनिकों के हो सकते हैं।
10 जून को ढुंगमंदार पट्टी के पिपोला गांव में सड़क खुदाई के दौरान मजदूरों को काफी पुराने तलवार, चाकू, बरछे मिले थे, जिन्हें तहसील प्रशासन ने अपने कब्जे में लेकर इस संबंध में पुरातत्व विभाग को पत्र भेजा है। तीन दिन पहले मिले इन हथियारों के बारे में जानने के लिए क्षेत्र के लोग बेसब्र हैं।
ये हथियार कितने पुराने हैं और इनको जमीन के अंदर क्यों दबा दिया गया, इस रहस्य से पर्दा उठाने के लिए भले ही जिला प्रशासन को पुरातत्व विभाग की टीम के पिपोला गांव पहुंचने का इंतजार है, लेकिन इतिहासकार महिपाल सिंह नेगी की मानें तो ये हथियार गोरखा सरदार सुब्बा जगजीत के सैनिकों के हो सकते हैं। इस जगह के आसपास कुछ बंदूकें भी मिल सकती हैं।
गोरखा सैन्य टुकड़ी का सरदार सुब्बा जगजीत था। उन्होंने बताया कि इतिहासकार डा. शिवप्रसाद डबराल ने अपनी पुस्तक गोरख्याणी-2 पराजित होकर प्रत्यावर्तन में भी यह उल्लेख किया है। तब इस सैन्य टुकड़ी में करीब 300 सैनिक थे। अगले दिन गोरखा सैनिक श्रीनगर की ओर भागे, लेकिन यह सूचना मिलने पर कि श्रीनगर पर भी ईस्ट इंडिया कंपनी का कब्जा हो गया है, गडोलिया से उन्होंने रास्ता बदलकर घनसाली वाला सुनसान रास्ता चुना ताकि पीछा करने वाले मेजर बालडौक को भ्रमित किया जा सके।
रात को ये सैनिक घोंटी पिपोला में नदी पार रूके होंगे। हथियार रणनीति के तहत छिपाए गए, जिससे आगे वे सैनिक रूप में पहचाने न जा सकें और अंग्रेज व गढ़वाली सैनिक उनका पीछा न करें।