उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का बेड़ा पार लगाएंगी शीला दीक्षित?
• कहा जा रहा है कि अगले यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस शीला को पार्टी की ओर CM कैंडिडेट के तौर पर पेश कर सकती है।
• शीला तीन बार दिल्ली की CM रह चुकी हैं।
कभी कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को संकट से जूझ रही पार्टी को उबारने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। शीला को लेकर प्रशांत किशोर ने भी पैरवी की थी कि दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री को राज्य में कांग्रेस के चुनावी अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका दी जानी चाहिए।
इस विचार के समर्थकों का कहना है कि शीला दीक्षित ब्राह्मण समुदाय से आती हैं और कांग्रेस पार्टी उनके सहारे चुनावी दृष्टि से महत्वपूर्ण वोट बैंक का भरोसा फिर से हासिल कर सकती है। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मतदाताओं का एक बड़ा तबका है और राज्य की कई सीटों पर उनके वोटों से नतीजे तय होते हैं।
ब्राह्मण कभी पारंपरिक रूप से कांग्रेस को वोट देते थे लेकिन धीरे-धीरे उनका समर्थन BJP की तरफ शिफ्ट हो गया। अतीत में ब्राह्मण मतदाताओं के एक बड़े हिस्से ने मायावती की BSP को भी समर्थन दिया है। मायावती भी ब्राह्मण समुदाय के कई उम्मीदवारों को टिकट देती रही हैं।
कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपनी खोई जमीन की वापसी के लिए हर कोशिश कर रही है। 403 सदस्यों की विधानसभा में इस समय कांग्रेस के 30 विधायक ही है। लोकसभा चुनावों में वह केवल अमेठी और रायबरेली की सीट ही जीत पाई थी।
78 वर्षीय शीला दीक्षित 1999 से 2014 तक दिल्ली में कांग्रेस की मुख्यमंत्री रहीं। शीला के ससुर उमा शंकर दीक्षित उत्तर प्रदेश कांग्रेस के बड़े नामों में शुमार हुआ करते थे। उमा शंकर दीक्षित केंद्रीय मंत्री भी रहे थे।