कमाल का इलाज है तावी, बिना चीर-फाड़ ठीक हो जाएंगे हार्ट वॉल्व
तावी– TAVI Trans-Catheter Aortic Valve Implantation में हृदय का वॉल्व बिना सर्जरी बदला जाता है। जो मरीज ओपन हार्ट सर्जरी के लिए जोखिमपूर्ण श्रेणी में आते हैं (जैसे कि 70 साल से अधिक उम्र के लोग) उन मरीजों के लिए तावी बेहतर तकनीक है।
अधिक उम्र होने की स्थिति में हृदय के वॉल्व पर हड्डियों का घिसा हुआ चूना (कैल्शियम) जमता रहता है जिससे एओर्टिक स्टेनोसिस रोग हो जाता है। डायबिटीज, किडनी के रोगी और धूम्रपान करने वालों को यह समस्या ज्यादा होती है। इस रोग में हृदय का वॉल्व सिकुड़ जाता है और रक्तप्रवाह में रुकावट आती है। हमारे हृदय के वॉल्व में तीन दरवाजे होते हैं जिनसे रक्त हमारे शरीर में पहुंचता है। लेकिन कुछ मरीजों में जन्म से ही वॉल्व के दो दरवाजे होते हैं जो 50 की उम्र के बाद सिकुडऩे लगते हैं जिससे एओर्टिक स्टेनोसिस की समस्या हो जाती है। इस रोग में मरीज को चलते हुए सांस फूलना, सीने में दर्द और बेहोशी जैसे तीन प्रमुख लक्षण होने लगते हैं। इस रोग के लिए कोई दवा नहीं है। अगर समय पर वॉल्व नहीं बदला जाए तो स्थिति जानलेवा भी हो सकती है। बिना इलाज के मरीज का जीवनकाल घटने की आशंका रहती है। ऐसे में तावी तकनीक फायदेमंद साबित हो सकती है।
ओपन हार्ट सर्जरी और तावी में कौनसी पद्धति बेहतर है?
ओपन हार्ट सर्जरी में सीना खोलकर और हृदय को बाईपास मशीन पर रखकर वॉल्व बदला जाता है। वहीं तावी में बिना चीर-फाड़ के पैर की नस के जरिए वॉल्व डाला जाता है। जो मरीज ओपन हार्ट सर्जरी के लिए जोखिमपूर्ण श्रेणी में आते हैं (जैसे कि 70 साल से अधिक उम्र के लोग) उन मरीजों के लिए तावी बेहतर तकनीक है। तावी में सबसे महत्त्वपूर्ण है सही आकार का वॉल्व उचित जगह लगाना। इसके लिए हृदय का सिटी स्कैन किया जाता है।
देश में यह इलाज कहां उपलब्ध है?
अनुभवी विशेषज्ञ ही इस तकनीक से इलाज कर सकते हैं इसलिए पूरे देश में सिर्फ 10-15 अस्पतालों को ही इस विधि को अपनाने की अनुमति है। जयपुर में यह सुविधा उपलब्ध है।
तावी के बाद मरीज को किन बातों का ध्यान रखना होता है?
तावी के पांच दिन बाद मरीज को छुट्टी दे दी जाती है। एक सप्ताह बाद वह अपनी दिनचर्या में फिर से लौट सकता है। इसमें कोई चीर-फाड़ नहीं होती है इसलिए मरीज एक सप्ताह के बाद अपने सारे काम आसानी से कर सकता है।