कांग्रेस के लिए दुर्दशा का साल रहा 2014
नई दिल्ली: कांग्रेस के लिए साल 2014 दुर्दशा का वर्ष रहा जिसमें लोकसभा में वह अब तक की सबसे कम सीटों पर सिमट गई और उसे कई राज्यों में विधानसभा चुनावों में भी करारी हार झेलनी पड़ी। देश की सबसे पुरानी पार्टी चुनावी इतिहास के अपने सबसे खराब प्रदर्शन के चलते लोकसभा चुनाव में 44 सीटों पर सिमट गई और उसे सदन में विपक्ष के नेता का दर्जा भी नहीं मिल पाया। इस हार के बाद न केवल पार्टी नेतृत्व पर बल्कि वोट खींचने की नेहरू.गांधी परिवार की क्षमता पर भी सवाल उठे। लोकसभा चुनावों में पार्टी की दुर्दशा का आलम यह रहा कि कई राज्यों में उसका खाता भी नहीं खुल पाया जिनमें राजस्थान, तमिलनाडु, गुजरात, झारखंड़, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड तथा दिल्ली प्रमुख हैं। सबसे अधिक सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी को छोड़कर पार्टी को कोई सीट नहीं मिली।
आम चुनावों के साथ आंध्र प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम विधानसभा के चुनावों में भी उसे करारी हार का सामना करना पड़ा। पार्टी के लिए संतोष की बात सिर्फ यह रही कि अरणाचल प्रदेश में वह फिर से सत्ता में आइ गई। इसके बाद उसने महाराष्ट्र और हरियाणा में हुए विधानसभा चुनावों में न सिर्फ सत्ता गंवाई बल्कि वह दोनों राज्यों में तीसरे नंबर पर खिसक गई। साल जाते-जाते उसे जम्मू-कश्मीर और झारखंड़ में भी भारी हार का सामना करना पडा़ और इन राज्यों में वह चौथे स्थान पर रही। लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी में कुछ नेताओं ने नेतृत्व को लेकर सवाल खड़े किए। पार्टी के भीतर महसूस किया जाने लगा कि उपाध्यक्ष राहुल गांधी कांग्रेस की नैया पार लगाने में सक्षम नहीं हैं। कुछ नेताओं ने तो उन्हें मीडिया के माध्यम से तरह-तरह की सलाह देना भी शुरू कर दिया।