कानूनी कार्रवाई करना आत्महत्या के लिए उकसाने के बराबर नहीं है : दिल्ली उच्च न्यायालय
दिल्ली उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि आपराधिक शिकायत व कानूनी नोटिस भेजना आत्महत्या के लिए उकसाने के बराबर नहीं है, भले ही सुसाइड नोट में इसका जिक्र किया गया हो। न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने कहा, ” उकसाने का सदंर्भ व्यक्ति को प्रेरित करने के लिए मानसिक प्रक्रिया या जानबूझकर व्यक्ति को ऐसा करने के लिए मदद करने से है।
अदालत ने एक खरीददार की ओर से सामान नहीं पहुंचाने पर कानूनी नोटिस भेजने और आपराधिक शिकायत किए जाने पर दुकानदार द्वारा आत्हत्या करने के मामले में यह फैसला सुनाया। न्यायाधीश ने 23 अगस्त के फैसले में कहा, ”मृतक ने प्रताड़ित महसूस किया लेकिन इस मामले में याचिकाकर्ता (खरीददार) के कदम ने मृतक को आत्महत्या के लिए नहीं उकसाया। याचिकाकर्ता द्वारा आपराधिक शिकायत दर्ज कराना, उसका कानूनी अधिकार है, जिसकी सलाह उसे दी गई थी।”
अदालत ने कहा कि उसके विचार से खरीददार की कोई मंशा नहीं थी और ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि उसने मृतक को खुदकुशी के लिए प्रेरित किया। इसके साथ ही अदालत ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत सुनवाई करने के निर्देश को रद्द कर दिया।