कार्तिक में इसलिए करते हैं स्नान और दीपदान
दस्तक टाइम्स/एजेंसी:
स्कन्द पुराण में कार्तिक को समस्त महीनों में, श्री हरि को समस्त देवताओं में और बद्रीनारायण को सभी तीर्थों में श्रेष्ठ माना है। इस मास में जलाशय में स्नान और दीपदान का विशेष महत्व है। कार्तिक मास 28 अक्टूबर से शुरु हो रहा है। हिन्दू कैलेंडर में कार्तिक वर्ष का आठवां महीना है। इस मास को अत्यंत पुनीत मास माना गया है।
पुराणों में कार्तिक मास की महिमा का उल्लेख इस प्रकार मिलता है: ‘न कार्तिकसमो मासो न कृतेन समं युगम्। न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थं गंगा समम्।।’ अर्थात कार्तिक के समान कोई अन्य मास श्रेष्ठ नहीं, सतयुग के समान कोई युग नहीं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है।
स्कन्द पुराण, नारद पुराण और पद्म पुराण में भी इस व्रत का माहात्म्य मिलता है। स्कन्द पुराण में कार्तिक को समस्त महीनों में, श्री हरि को समस्त देवताओं में और बद्रीनारायण को सभी तीर्थों में श्रेष्ठ माना है। शास्त्रों में कहा गया है कि कार्तिक मास में मनुष्य की उत्तम स्वास्थ्य, पारिवारिक उन्नाति, ईशकृपा आदि कामनाओं की पूर्ति सहज ही हो जाती है। कार्तिक मास का एक नाम शास्त्रों में दामोदर मास भी मिलता है।
श्लोकों में वर्णन है कि कार्तिक मास में भगवान विष्णु की आराधना और मंगलगान से उनकी कृपा प्राप्त होती है। मान्यता है कि जो फल कुंभ में प्रयाग में स्नान करने पर मिलता है, वही फल कार्तिक माह में किसी पवित्र नदी के तट पर स्नान करने से मिलता है।
पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति इस उत्तम मास में स्नान, दान तथा व्रत इत्यादि करता है वह भगवान विष्णु की परमकृपा का भागी बनता है। कार्तिक में पूरे माह ब्रह्ममुहूर्त में किसी नदी, तालाब, नहर या पोखर में स्नान कर भगवान की पूजा किए जाने का विधान है। इस मास में नदी के जल में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति बताई गई है। कार्तिक मास के स्नान का धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्व भी है।
वर्षा ऋतु के बाद आसमान साफ होता है और सूर्य की किरणें सीधे पृथ्वी तक आती है ऐसे में वातावरण स्वास्थ्य के अनुकूल होता है। प्रात:काल उठकर नदी में स्नान करने से ताजी हवा से शरीर में स्फूर्ति का संचार होता है। इससे कई शारीरिक बीमारियां अपने आप ही समाप्त हो जाती है। प्रात:काल उठने से व्यक्ति ऊर्जायमान भी रहता है।
आरोग्यता के लिए कार्तिक स्नान का विशेष महत्व माना गया है। इस मास प्रात: काल स्नान के पश्चात राधा-कृष्ण का तुलसी, पीपल, आंवले आदि से पूजन करना चाहिए। देवताओं की परिक्रमा करना चाहिए। सायंकाल में भी भगवान विष्णु की पूजा तथा तुलसी पूजा करना चाहिए।
इसके अलावा कार्तिक मास में दीप प्रज्ज्वलन का भी विशेष महत्व है। इस मास शिव, चण्डी, सूर्य तथा अन्य देवों के मंदिर में दीप प्रज्ज्वलित करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। इस मास में श्रद्धालु तारा भोजन भी करते हैं। पूरे दिन भर वे निराहार रहते हैं और रात्रि में तारों के उदय होने पर उन्हें अर्घ देकर भोजन करते हैं।
कृष्ण लीलाओं का महीना
कार्तिक मास में ही भगवान कृष्ण के जीवन में महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुए। इसी माह में माता यशोदा ने कृष्ण को अपने प्रेम-बंधन में बांधा और इसलिए भक्त भी श्रीकृष्ण को अपनी भक्ति प्रेम से प्रसन्ना करने का प्रयास करते हैं।
कार्तिक मास के पंचकर्म
कार्तिक मास में देव आराधना हेतु पांच आचरणों के पालन का बहुत महत्व बताया गया है जिनके पालन से भगवान श्रीहरि प्रसन्ना होते हैं और भक्तों के जीवन को धन्य करते हैं।
दीप दान करें: कार्तिक माह में पहले पंद्रह दिन की रातें वर्ष की सबसे काली रातों में से होती हैं। लक्ष्मी पति के जागने के ठीक पूर्व के इन दिनों में दीप जलाने से जीवन का अंधकार छटता है।
तुलसी पूजा फलदायी: इस मास में तुलसी को पूजने का विशेष महत्व है। भगवान श्री हरि तुलसी के हृदय में शालिग्राम रूप में निवास करते हैं इसलिए तुलसी पूजन फलदाई है। इस मास में तुलसी दल का प्रसाद ग्रहण करना भी श्रेष्ठ माना जाता है।
भूमि शयन: यह माना जाता है कि कार्तिक मास में मनुष्य को भूमि पर शयन करना चाहिए। यह विलासिता से मनुष्य को मुक्त करता है। यह मनुष्य को विनम्र होने में भी मदद करता है।
ब्रह्मचर्य पालन: यहां ब्रह्मचर्य से तात्पर्य ऐसे किसी भी आचरण में लिप्त न होने से है जो ईश्वरीय भक्ति से विमुख करता हो।
दलहन निषेध: कार्तिक मास में दालों का सेवन नहीं करना चाहिए। इस मास में हल्का आहार उत्तम होता है। इस मास गरिष्ठ भोजन से परहेज करना चाहिए।