नई दिल्ली। कावेरी विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से ही कर्नाटक और बेंगलुरु में बवाल मचा हुआ है। लोगों द्वारा हिंसक प्रदर्शन पर काबू पाने के लिए पुलिस ने फायरिंग शुरु की जिसमें एक शख्स की मौत हो गई। हिंसा को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कर्नाटक और तमिलनाडु दोनों प्रदेश के मुख्यमंत्रियों से बातचीत की और हिंसा को शांत कराने के लिए केंद्र की तरफ से पूरी मदद का आश्वासन भी दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी विवाद पर सोमवार को पांच सितंबर के अपने फैसले में संसोधन करते हुए कर्नाटक को थोड़ी राहत दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु के लिए कर्नाटक कावेरी नदी से अब 15 हजार क्यूसेक की जगह 12 हजार क्यूसेक ही पानी छोड़े। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद से ही बेंगलुरु और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई जबकि तमिलनाडु में भी कई जगह हालात काबू से बाहर हो गए। पुलिस ने उस समय गोली चलाई जब भीड़ ने राजागोपाल नगर थाना क्षेत्र के हेग्गनहल्ली में एक गश्ती वाहन पर हमले का प्रयास किया। गुस्साई भीड़ ने तमिलनाडु के नंबर वाली बसों और ट्रकों में आग लगा दी।
ऐसे हालात को देखते हुए बेंगलुरु में घारा 144 लगा दी गई थी और देर रात 16 थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू लगा दिया गया। बेंगलुरु के केपीएन बस डिपो में प्रदर्शनकारियों ने तकरीबन 35 बसें फूंक दी है। हालात संभालने के लिए 15 हजार पुलिसवाले तैनात किए गए हैं।
कावेरी जल विवाद अंग्रेजों के समय से चला आ रहा है। 1924 में इन दोनों के बीच समझौता हुआ, लेकिन बाद में विवाद में केरल और पुडुचेरी भी शामिल हो गए जिससे यह और मुश्किल हो गया।
1972 में गठित एक कमेटी की रिपोर्ट के बाद 1976 में कावेरी जल विवाद के सभी चार दावेदारों के बीच एग्रीमेंट किया गया, जिसकी घोषणा संसद में हुई। इसके बावजूद विवाद जारी रहा।
1986 में तमिलनाडु ने अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम (1956) के तहत केंद्र सरकार से एक ट्रिब्यूनल की मांग की।
1990 में ट्रिब्यूनल का गठन हो गया। ट्रिब्यूनल ने फैसला किया कि कर्नाटक की ओर से कावेरी जल का तय हिस्सा तमिलनाडु को मिलेगा।
कर्नाटक मानता है कि ब्रिटिश शासन के दौरान वह रियासत था जबकि तमिलनाडु ब्रिटिश का गुलाम, इसलिए 1924 का समझौता न्यायसंगत नहीं।
कर्नाटक का कहना है कि तमिलनाडु की तुलना में वहां कृषि देर से शुरू हुआ। वह नदी के बहाव के रास्ते में पहले है, उसे उसपर पूरा अधिकार है।
तमिलनाडु पुराने aको तर्कसंगत बताते हुए कहता है, 1924 के समझौते के अनुसार, जल का जो हिस्सा उसे मिलता था, अब भी वही मिले।
केंद्र जून 1990 को न्यायाधिकरण का गठन किया और अब तक इस विवाद को सुलझाने की कोशिश चल रही है।