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किसानों को कर्ज माफी का वादा आज बन गया है जीत का सुपरहिट फॉर्मूला!

पिछले कुछ चुनावों में किसानों की कर्ज माफी बड़ा मुद्दा बना है। इस बार भी मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हुए चुनाव में किसानों का मुद्दा छाया रहा। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसे जमकर भुनाया और इसका पार्टी को जबरदस्त फायदा भी मिला। तीनों प्रदेशों में उसकी सरकार बनी। तो क्या किसानों की कर्जमाफी से अब सत्ता मिलने का रास्ता साफ होने लगा है। हालिया समय में किसानों के कई आंदोलन हुए हैं। कर्ज माफी को लेकर किसानों ने दिल्ली तक मार्च भी किया। विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को हाथोंहाथ लेते हुए इसे जमकर भुनाया। इसका फायदा भी मिला है।  किसानों को कर्ज माफी का वादा आज बन गया है जीत का सुपरहिट फॉर्मूला!

जीत का सुपरहिट फॉर्मूला

गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान, तेलंगाना, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब के चुनाव नतीजे बताते हैं कि किसानों का मु्ददा चुनाव जीतने का सुपरहिट फॉर्मूला बन चुका है। इन राज्यों में इसी मुद्दे ने सियासी दलों को सत्ता तक पहुंचाया। तकरीबन सभी राज्यों में सरकारों ने किसानों का एक निश्चित रकम तक का कर्ज माफ भी किया। ये स्थिति तब है जब केंद्र सरकार ने किसानों के लिए कई योजनाएं चला रखी हैं। लेकिन ये चुनावी रेवड़ी कब तक बांटी जाएगी। नया ट्रेंड ये है कि सरकार बनते ही किसानों का कर्ज माफ कर दिया जाए और सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ा दिया जाए।

सालभर पहले हुए उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने प्रचंड बहुमत हासिल किया था। सीएम योगी आदित्यनाथ ने पहला फैसला किसानों की कर्जमाफी का लिया। इसी तर्ज पर पंजाब में भी सीएम अमरिंदर सिंह ने किसानों का कर्ज माफ किया। बाकी प्रदेशों के विधानसभा चुनावों में भी किसान और कर्जमाफी का मुद्दा सबसे बड़ा मुद्दा साबित हो रहा है। कर्जमाफी पर भले ही सरकार पर करोड़ों-अरबों का बोझ पड़े लेकिन लोक लुभावन फैसला कर्ज में दबे किसानों को लुभा रहा है। इस मुद्दे पर सरकारें बन रही हैं। कोई भी पार्टी इसे नजरअंदाज करने की स्थिति में नहीं है।

मध्यप्रदेश चुनाव में इस बार किसानों की कर्जमाफी एक बड़ा मुद्दा रहा। कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में वादा किया कि सत्ता में आने के 10 दिन के भीतर किसानों का कर्ज माफ किया जाएगा। लेकिन नए सीएम कमलनाथ ने जबरदस्त तेजी दिखाते हुए शपथ लेने के तुरंत बाद कर्ज माफी की फाइल पर दस्तखत कर दिए। उन्होंने किसानों का 2 लाख रुपये तक का कर्ज माफ करने का फैसला लिया। आज गुजरात में भी किसानों का कर्ज माफ किया गया है।

किसानों का वोट अहम

मध्यप्रदेश की ही बात करें तो यहां कांग्रेस की सरकार बनने में किसानों के वोट ने बड़ी भूमिका अदा की। कांग्रेस के वादों ने किसानों को उसकी ओर लुभाया। मालवा का ही उदाहरण लें तो यहां 2013 में कांग्रेस को महज 2 सीटें मिली थीं लेकिन 2018 चुनाव में उसने 27 सीटें हासिल कीं। सीधे 25 सीटों का फायदा। बात करें पूरे मालवा-निमाड़ की तो यहां कुल 66 सीटें और भाजपा ने 2013 में यहां 55 सीटें हासिल की थीं।

मालवा-निमाड़ में 15 जिले, और 2 संभाग आते हैं। ये जिले हैं इंदौर, धार, खरगौन, खंडवा, बुरहानपुर, बड़वानी, झाबुआ, अलीराजपुर, उज्जैन, रतलाम, मंदसौर, शाजापुर, देवास, नीमच और आगर।  पश्चिमी मध्यप्रदेश के इंदौर और उज्जैन संभागों में फैले इस अंचल में आदिवासी और किसान तबके के मतदाताओं की बड़ी तादाद है। 2013 के चुनाव में भाजपा ने 57 सीटों पर कब्जा जमाया था, कांग्रेस सिर्फ 9 सीटें जीत सकी थी। सीटों का यही अंतर भाजपा की सरकार बनने में सबसे महत्वपूर्ण साबित हुआ था। अपने बुरे दिनों में भी भाजपा कहीं जमी रही तो इसी इलाके में। लेकिन इस बार यहां की जनता ने भाजपा को नकार दिया।

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