क्या किसान के मुद्दे पर लड़ा जाएगा 2018 का विस चुनाव?
अगला वर्ष राजस्थान में चुनावी वर्ष होगा। राजस्थान की सभी सियासी पार्टियां ज़ोर-शोर से अपने चुनावी रथ दौड़ाने लगी हैं। भाजपा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपनी पार्टी के विधायकों को चुनाव की तैयारी में जुट जाने का संदेश दे दिया है । 21 फरवरी को विधायक दल की बैठक को संबोधित करते हुए राजे ने विधायकों को कहा कि अब चुनाव भी नजदीक आ गए हैं, मुझे पूरा विश्वास है कि हम आप सबके सहयोग और जनता के अभूतपूर्व समर्थन से एक बार फिर प्रदेश में सरकार बनाएंगे। कांग्रेस ने तो सभी विधानसभा क्षेत्रों से टिकट चाहने वालों से नाम भी मांग लिए हैं। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट ने भी हाल ही में बीकानेर में कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि राज्य में भाजपा सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है, इसलिए आगामी चुनाव के लिए तैयार रहें। परंतु प्रमुख प्रतिद्वंद्वी दल भाजपा व कांग्रेस अपने स्वयं के विकास कार्यों का उल्लेख कम अपितु एक दूसरे के कपड़ों पर लगे धब्बों को अपने से ज्यादा दागदार सिद्ध करने पर जुटे हुए हैं। दोनों ही दल अपने कार्यकर्ताओं को लड़ाई के मैदान में उतरने का आह्वान कर रहे हैं ।
इस बार एक और दल, आम आदमी पार्टी भी सभी 200 सीटों पर चुनाव लड़ने के मूड में है। “आप” के राजस्थान प्रभारी एवं दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया फरवरी माह के अपने राजस्थान दौरे के समय यह घोषणा कर चुके हैं । हालांकि आप के ग्राउंड स्तर के कार्यकर्ता पिछले दो वर्षों से ही विभिन प्लेटफार्मों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने में अग्रणी रहे हैं। कम्युनिस्ट पार्टी भी पिछले कई दिनों से किसान आंदोलनों के माध्यम से राजनीति के अखाड़े में चुनावी दंगल में उतरने को आतुर है और कुछ हद तक किसानों को लामबंद करने तथा सरकार पर दवाब बनाने में कामयाब भी रही है। किसान राजनीति के ग्रास रूट स्तर के जानकार वेदपाल हरियावासिया कहते हैं कि कम्युनिस्ट पार्टी आंदोलन करने व लोगों को जोड़ने तक तो कामयाब हो जाती है, परंतु उन्हें वोट में तब्दील नहीं कर पाती। चाहे कांग्रेस या भाजपा कितने ही किसान हितैषी होने के दावे करती रहे, परंतु राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि अभी 18 फरवरी को भाजपा सरकार द्वारा किसानों के बढ़े हुए बिजली रेटों को वापस करवाने में कम्युनिस्ट पार्टी की किसान विंग भारतीय किसान सभा की ही मुख्य भूमिका रही है। हालांकि कांग्रेस भी इसी रेट वापसी को अपनी जीत बता रही है और उसका मानना है कि समय समय पर उस द्वारा किसानों की आवाज़ उठाने के दवाब में ही भाजपा सरकार बिजली की बढ़ी दरें वापस लेने को बाध्य हुई है। उधर भाजपा की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे कहती हैं कि उसने किसी के दवाब में आकर नहीं बल्कि किसानों की पीड़ा को महसूस करते हुए ही बढ़ी दरों को वापिस लिया है, जिसके कारण सरकार को 500 करोड़ का खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
उल्लेखनीय है कि भाजपा सरकार ने ही सितंबर, 2016 में कृषि कनेक्शनों पर बिजली दरें 90 पैसे प्रति यूनिट से बढ़ाकर 115 पैसे प्रति यूनिट कर दी थी तथा किसानों के फ्लैट रेट पर चलने वाले कनैक्शन की दरें भी 85 रुपये प्रति हॉर्स पावर की जगह 120 रुपये प्रति हॉर्स पावर कर दी थी, जो अभी 18 फरवरी को भाजपा मुख्यमंत्री ने अपने को किसान हितैषी बताते हुए न केवल इस वृद्धि को वापिस ले लिया है, अपितु सितंबर, 2016 से की गई इस वृद्धि को रद्द करते हुए किसानों को रिलीफ़ भी दिया है। किसानों से सितंबर, 2016 से वसूले गए टैरिफ को भी किसानों के आगामी बिलों मे समायोजित करने का फैसला लिया गया है। भारतीय किसान सभा भी काफी दिनों से इस वृद्धि के खिलाफ आंदोलन कर रही थी। राजस्थान के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दावा करते हैं कि सरकार ने कांग्रेस द्वारा किसान हित में किए जा रहे आंदोलन से डर कर बढ़ाई गई बिजली दर को वापिस लिया है। “बिजली नियामक आयोग द्वारा बिजली दरें बढ़ाये पांच महीने हो गए थे। कांग्रेस द्वारा बिजली दरें कम करने के लिए ज़िला स्तर पर धरने-प्रदर्शन किए गए तब भी सरकार ने कोई परवाह नहीं की। अब झुञ्झुनु एवं सीकर में कांग्रेस द्वारा बड़े आंदोलन की तैयारी को देखते हुए आनन फानन में सरकार ने बढ़ी हुई दरें वापिस ले ली। बजट का भी इंतज़ार नहीं किया। सरकार को जनभावना के सामने झुकना पड़ा तथा मजबूरन आज से नहीं बल्कि सितंबर, 2016 से ही बढ़ी दरों को वापिस लेना पड़ा। यह जनता की जीत है।”
राजस्थान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष, सचिन पायलट सरकार पर प्रहार करते हुए कहते हैं “भाजपा कृषि आय को दुगुना करने के वायदे लगातार करती आ रही है परंतु हकीकत में किसान आज सबसे ज्यादा पीड़ित है। किसान को न मुआवजा मिला न ही सब्सिडी का लाभ। हालात इतने बदतर हैं कि किसान आत्महत्या कर रहा है।”
कम्युनिस्ट पार्टी के झंडे तले कार्यरत अखिल भारतीय किसान सभा बिजली दर वृद्धि वापसी को अपनी कामयाबी बताते हुए किसानों की अन्य मांगों के लिए अपने संघर्ष जारी रखना चाहती है। सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमरा राम तथा राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष पेमा राम घोषणा करते हैं “सरकार ने किसानों के आंदोलन के बाद बिजली टैरिफ में बढ़ोतरी तो वापस ले ली है, लेकिन किसानों की अन्य मांगों का समाधान अभी तक नहीं किया है। इसलिए प्रदेश के किसान 2 मार्च को जयपुर में एक सभा करेंगे। सभा की प्रमुख मांगें स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशें लागू हों, किसानों के बैंक कर्ज माफ हों, फसलों का लाभकारी समर्थन मूल्य मिले, फसल बीमा के नियम किसान हित में बनाए जाएं आदि हैं। परंतु प्रदेश की मुख्यमंत्री किसी भी प्रकार के दवाब को नकारती हैं। 21 फरवरी को भाजपा विधायक दल की बैठक को संबोधित करते हुए वसुंधरा राजे ने कहा कि कृषि बिजली दरें हमने किसी के दवाब में नहीं, किसानों के प्रभाव में कम की हैं। 20 फरवरी को मुख्यमंत्री का बिजली दरें घटाने पर आभार व्यक्त करने मुख्यमंत्री से मिलने आए भाजपा समर्थक किसानों को संबोधित करते हुए राजे ने कहा “किसानों का दुख हमारा दुख है। उनकी तकलीफ हमारी तकलीफ है।
किसानों की आंखों में हम आंसू नहीं देख सकते। इसलिए किसानों की पीड़ा दूर करना हमारा दायित्व है। उन्हे हर प्रकार से राहत देकर संबल प्रदान करना हमारी प्राथमिकता है।” किसानों ने भी मुख्यमंत्री के भावनात्मक लगाव को देखते हुए गदगद हो मुख्यमंत्री को सम्मान स्वरूप पगड़ी भेंट की। मुख्यमंत्री निवास पर इन किसानों ने लोकगीत गाकर ढोलक, मंजीरा और अलगोजे बजाकर अपनी खुशी का इजहार किया। अब प्रश्न उठता है कि क्या प्रदेश की मुख्यमंत्री का किसानों के प्रति वास्तव में इतना लगाव है? या प्रदेश के किसान इतने पीड़ित हैं कि सरकार के एक कदम से ही गदगद हो नाचने लगते हैं? राजनीतिक विचारक इसे आगामी विधानसभा चुनावों से जोड़कर देखते हैं। विचारक इस प्रकार के प्रायोजित आयोजनों को प्रदेश सरकार की छवि को किसान हितैषी साबित करने का प्रयास मात्र मानते हैं। प्रदेश के किसानों की जर्जर अवस्था आज से नहीं है। सरकारी आंकड़े दर्शाते हैं कि 15 दिसम्बर, 2016 को राजस्थान सरकार ने प्रदेश के 13 जिलों के 5656 गांवों को आपदाग्रस्त घोषित किया था, जिसमे से अकेले बाड़मेर ज़िले के ही 2727 गाँवों में से 2478 गाँव शामिल हैं। गत वर्ष भी बाड़मेर में 2206 गांव आपदाग्रस्त घोषित किए गए थे। यह लगातार पांचवां वर्ष है कि बाड़मेर सूखे से जूझ रहा है। अन्य जिलों के हालात भी ज्यादा बेहतर नहीं हैं। प्रदेश सरकार ने फरवरी माह में प्रदेश का दौरा करने आए एक केन्द्रीय अध्ययन दल के समक्ष 3661 करोड़ रुपये की सहायता की मांग रखी है। इसमें से प्रदेश को कितना मिलता है, यह तो समय ही बताएगा । प्रदेश की मुख्यमंत्री की प्रधानमंत्री मोदी के साथ कितनी पटरी बैठती है, यह सहायता उस पर निर्भर करेगी। अभी तक के संकेतों से तो इसमें कुछ संदेह ही नजर आ रहा है।
सरदार शहर क्षेत्र के किसान कई दिनों से सूई ब्रांच संघर्ष समिति के बैनर तले आंदोलनरत हैं। अभी 23 फरवरी को सरदार शहर के गांव सावर में समिति की ओर से किसानों की एक महापंचायत में करीब 7 हज़ार किसान एकत्र हुए और 40 गाँव क्षेत्र को पानी देने की मांग की। किसानों ने चेतावनी दी है कि यदि भाजपा सरकार द्वारा इस बजट सत्र में नहर की मांग को स्वीकार नहीं किया गया तो किसान संघर्ष समिति आगामी 20 मार्च को बीकानेर के चौधरी कुंभा राम आर्य लिफ्ट परियोजना कार्यालय में महापड़ाव डाल कर घेराव करेगी।
चूरू ज़िले की तहसील तारा नगर के किसान भी पिछले एक वर्ष से लगातार चौधरी कुंभाराम आर्य लिफ्ट नहर के अधूरे निर्माण कार्य को पूरा करने तथा नहर से काटे गए रकबे व वंचित गाँवों को नहरी क्षेत्र में शामिल करने की मांग को लेकर धरना देकर आंदोलन रत हैं। 2013 के विधान सभा चुनावों के दौरान वर्तमान प्रदेश मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने तारा नगर के किसानों को प्रदेश में भाजपा सरकार आने पर उनकी नहर की मांग को पूरा करने का आश्वासन दिया था। परंतु चुनावी वादे तो शायद वायदे ही रह जाते हैं। आज प्रदेश में चहुंओर किसान उद्वेलित हैं और सभी राजनैतिक दल इसी उबाल का फायदा उठाने की फिराक में हैं। कौन कितना फायदा उठाएगा यह तो आने वाला समय ही तय करेगा, परंतु इतना तो तय लगता है कि आगामी चुनाव किसान के इर्द-गिर्द ही घूमता नजर आयेगा और अगले चुनाव का मुख्य मुद्दा किसान ही होगा।