क्या वाकई महिलाएं दूसरी महिलाओं की मदद करने में हिचकिचाती हैं…
एजेन्सी/ न्यूयॉर्क: ‘मुझे नहीं लगता हम औरतें एक दूसरे की उतनी मदद करती हैं, जितनी हमें करनी चाहिए’ – पेप्सीको की सीईओ इंदिरा नूयी ने यह ‘कड़वी’ बात महिलाओं से जुड़े एक सम्मेलन में कही जहां उन्होंने इस बात पर जो़र दिया की दफ्तरों में औरतों को एक दूसरे की मदद करना चाहिए लेकिन अफसोस जताया की ऐसा नहीं होता। इंदिरा ने अपने साथ हुई एक घटना का ज़िक्र करते हुए कहा ‘मीटिंग के दौरान जिम का प्रेजेंटेशन खराब जा रहा होता है, हम ब्रेक लेते हैं और वॉशरूम में जाते हुए कोई एक पुरुष सदस्य बिल से कह देता है कि ‘अरे बिल तुम क्या कर रहे हो, तुम्हारा प्रेजेंटेशन खराब जा रहा है।’ बिल उस बात पर ध्यान देता है, बुरा नहीं मानता और वह दोनों बड़े आराम से लौट आते हैं और फिर बिल के प्रेजेंटेशन में सुधार आता है।’
वहीं औरतों की बात करते हुए इंदिरा कहती हैं ‘लेकिन जब ब्रेक के बाद किसी महिला साथी से मैंने अगर वॉशरूम में कह दिया की ‘मैरी तुम्हारा प्रेजेंटेशन अच्छा नहीं जा रहा’ तो वह मेरे बारे में बुरा भला सोचने लगेगी, जबकि मैं तो रचनात्मक फीडबैक दे कर रही थी। समस्या यही है कि अगर कोई महिला फीडबैक देती है या आलोचना करती है तो उसके पीछे कुछ गलत मंशा समझी जाती है, जबकि यही बात अगर कोई पुरुष कह दे तो हम महिलाएं उसका बुरा नहीं मानतीं।’
‘मदद न करने वाली औरतों की जगह…’
वैसे इंदिरा नूयी पहली महिला नहीं है जिन्होंने महिलाओं के एक दूसरे के प्रति इस रवैये पर टिप्पणी की है। आने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवारी की रेस में हिलैरी क्लिंटन का नाम भी काफी आगे है और फरवरी में एक चुनावी अभियान के दौरान अमेरिका की पूर्व विदेशमंत्री मैडलेन अलब्राइट ने जनता से क्लिंटन को वोट देने की अपील करते हुए कहा था ‘उन औरतों के लिए नर्क में खास जगह होगी जो एक दूसरे की मदद नहीं करती हैं।’
अलब्राइट ने ख़ासतौर पर औरतों को संबोधित करते हुए कहा था कि ‘युवतियों को हिलैरी क्लिंटन की मदद करनी ही होगी। हिलैरी आपके लिए हमेशा खड़ी हैं और याद रखिए उन औरतों की जहन्नुम में ख़ास जगह होती है जो एक दूसरे की मदद नहीं करती है।’
नारी सशक्तिकरण की जरूरत क्यों..’
दिलचस्प बात यह है कि नूयी और अलब्राइट का यह बयान उस वक्त आया है जब भारत ही नहीं दुनिया भर में नारी सशक्तिकरण और महिलाओं को मिलने वाले बराबरी के दर्जे को लेकर बड़े स्तर पर बहस चल रही है। हाल ही में नेहा धुपिया ने एक इंटरव्यू में कहा था की फिल्म इंडस्ट्री में नारी सशक्तिकरण के मुद्दे को लेकर मच रहा हल्ला उनकी समझ के बाहर है।
नेहा ने कहा ‘मुझे नहीं पता की हम यह नारी सशक्तिकरण के मुद्दे को इतना तूल क्यों दे रहे हैं क्योंकि हम जितनी ज्यादा इस बारे में बात करेंगे, ऐसा लगेगा जैसे हमें इसकी कुछ ज्यादा ही जरूरत है जबकि हमें इसकी जरूरत नहीं है। मुझे लगता है कि यह अधिकारों की मांग को सिर्फ कुछ गिने-चुने लोग ही इस्तेमाल कर पाते हैं।’ अपने बारे में बात करते हुए नेहा ने कहा ‘मैं एक आत्मनिर्भर सिंगल लड़की हूं और मुझे किसी सशक्तिकरण की जरूरत नहीं है। सिवाय उस ललक की जिससे मैं हर दिन कुछ अच्छा कर पाऊं। इसलिए यह सब मेरी समझ के बाहर है।’
दुनिया भर में नारीवादी संगठन काफी मौखिक होकर औरतों के खिलाफ होने वाले अन्याय और गैर बराबरी के रवैये के प्रति आवाज़ उठा रहे हैं। ऐसे में नूयी का यह कहना है की औरतें ही औरतों की मदद नहीं कर रही हैं और नेहा का ऐसे किसी आंदोलन को गैर जरूरी बताना कहीं न कहीं इस बराबरी की जंग को और थोड़ा और पेचीदा बना देता है।