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क्या साल 2019 में आएगा राम मंदिर मामले पर फैसला?

अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद मामला सुप्रीम कोर्ट में है। इस मामले के फैसले का सभी को इंतेजार है। ऐसे में 2019 में सुप्रीम कोर्ट से दशकों पुराने मामले का कोई नतीजा निकल सकेगा या फिर देश को सालों इंसाफ के लिए इंतेजार करना होगा।

नई दिल्ली: अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद से जुड़ा केस अदालत में 1950 में चल रहा है। किसी भी विवाद को सुलझाने के लिए सात दशक बहुत लंबा समय होता है। 70 साल में पीढ़ियां बदल जाती हैं, लोग बदल जाते हैं और तो और देश की सियासत बदल जाती हैं। देशों का दोबारा निर्माण हो जाता है, लेकिन इस विवाद का कोई हल नहीं निकल सका है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व में तीन नए जजों की बेंच इस मामले पर 4 जनवरी को सुनवाई करेगा. ऐसे में क्या सालों पुराने इस मामले का फैसला 2019 में आएगा या फिर अभी और इंतजार करना पड़ेगा?

बता दें कि अयोध्या राम मंदिर-बाबरी मस्जिद की जमीन के मालिकाना हक को लेकर चल रहे विवाद पर लंबे समय के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने 30 सितंबर, 2010 में फैसला दिया था। हाई कोर्ट ने विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया था। कोर्ट ने तीनों पक्षों रामलला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में 2.77 एकड़ जमीन को बराबर बांटने का आदेश दिया था। हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ हिंदू महासभा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी। इसके बाद से अयोध्या राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन के मालिकाना हक का मुकदमा सुप्रीम कोर्ट में अटका हुआ है। हालांकि इस साल दशकों पुराने मामले में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा।

अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए नेताओं से लेकर अदालतों तक बहुत सी कोशिशें की जा चुकी हैं, लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकल सका है। ऐसे में सारी उम्मीदें सुप्रीम कोर्ट से लगी हैं। कोर्ट इस मामले में सुनवाई कब होगी, इस पर 4 जनवरी को फैसला करेगा। हालांकि इस मामले के फैसले के लिए चारो ओर से आवाज उठ रही है। दरअसल, ऐसा माना जाता है कि साल 1528 में अयोध्या में एक ऐसी जगह पर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया, जिसे हिंदू भगवान राम का जन्मस्थान मानते हैं। कहा जाता है कि विवादित जगह पर मस्जिद मुगल बादशाह बाबर के समय में उसके सेनापति मीर बाकी ने बनवाई थी। इस लिहाज से 500 साल पुराना मामला पहली बार आजादी के बाद 1950 में अदालत पहुंचा। इसके बाद से अभी तक फैसले का महज इंतजार हो रहा है। ऐसे में अब मामला देश की सबसे बड़ी अदालत में है और सुनवाई की तारीख भी नए साल के साथ दस्तक दे रही है।

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