उत्तराखंडराज्य

खुलासाः देहरादून के लोगों के शरीर में घुल रहा कैंसर

lungs-cancer-1-1-1-1-1-5655afcaf16d1_exlstउत्तराखंड की राजधानी देहरादून के राजपुर क्षेत्र के निवासी रेडियोधर्मी गैसों की दो से तीन गुना अधिक मात्रा ले रहे हैं। यह सेहत की दृष्टि से काफी खतरनाक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार रेडियोधर्मी गैसें फेफड़ों के कैंसर के प्रमुख कारक हैं। 

केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय के छात्र तुषार कंडारी के शोध में यह खुलासा हुआ है। कंडारी का शोध पत्र साइंस डायरेक्ट नाम की अंतर्राष्ट्रीय रेडियोधर्मी विकिरण एवं व्यवहारिक विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

कंडारी गढ़वाल विवि के बादशाहीथौल परिसर टिहरी में भौतिक विज्ञान के प्रो. आरसी रमोला और डा. एए बौड़ाई के निर्देशन में एमबीटी (मेन बाउंड्री थ्रस्ट) रेडियोधर्मी विकिरण पर शोध कर रहे हैं। अपने शोध के तहत उन्होंने देहरादून के राजपुर में अध्ययन किया। एमबीटी लाइन राजपुर से गुजरती है।

शोध के दौरान उन्होंने राजपुर क्षेत्र में घरों के अंदर, मिट्टी और पानी के लगभग 50 नमूने लिए। नमूनों का प्रयोगशाला में परीक्षण और विश्लेषण किया गया। शोध के नतीजों में यह सामने आया है कि राजपुर का प्रत्येक आदमी रेडियोधर्मी गैस रेडॉन की सामान्य से अधिक वार्षिक मात्रा (एनुअल डोज) ले रहा है।

प्रत्येक व्यक्ति एक साल में कितनी रेडॉन गैस ग्रहण कर सकता है। यह वार्षिक डोज मानी जाती है। संयुक्त राष्ट्र परमाणु विकिरण प्रभाव वैज्ञानिक समिति (यूएनसीइएआर) ने रेडॉन की वार्षिक डोज 1.15 एमएसवी/वाई (मिली सेवर्ट प्रति वर्ष)� निर्धारित की है। राजपुर क्षेत्र में औसतन वार्षिक डोज 2.13 एमएसवी/वाई हो रही है। जबकि राजपुर के कुछ स्थानों में 3.78 एमएसवी/वाई वार्षिक मात्रा निकली है।

एमबीटी क्षेत्र का चयन ही क्यों
एमबीटी में जमीन के अंदर प्लेट्स मे गैप होते हैं। जमीन के अंदर रेडियोएक्टिव गैस का सांद्रता काफी अधिक होती है। गैस गैप्स के बीच से निकलकर पृथ्वी की सतह तक पहुंचती है और हवा के साथ घुल जाती है।

विवि पूरे गढ़वाल हिमालय में शोध कर रहा है। फिलहाल प्रारंभिक आंकड़े सामने आए हैं। शोध जारी है। राजपुर क्षेत्र में रहे व्यक्ति को हवा, पानी और जमीन सब जगह से रेडॉन मिल रही है।
– तुषार कंडारी, शोध छात्र गढ़वाल विवि

रेडियोएक्टिव तत्वों की अधिकता पूरे शरीर को नुकसान पहुंचाती है। रेडॉन गैस सांस के साथ फेफड़ों में ज्यादा मात्रा में ज्यादा जाती है। इसलिए फेफड़ों में� बीमारी होने की ज्यादा आशंका होती है।
– डॉ. अभिषेक सिंह, एसोसिएट प्रोफेसर मेडिकल कालेज श्रीनगर

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