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खेत से निकलीं दुर्लभ प्राचीन मूर्तियां, लेकर भागे ग्रामीण
धनीपुर ब्लाक के गांव किशोर का नगला (छोटी उकावली) में एक खेत से बेहद दुर्लभ और प्राचीन मूर्तियां और मंदिर के अवशेष मिले हैं। भट्ठे के लिए हो रही मिट्टी की गहरी खुदाई में ये प्राचीन अवशेष निकले हैं। गांव सहित आसपास के इलाके से लेकर सोशल मीडिया तक इसकी खबर फैल गई।
गांव निवासी पुष्पेंद्र सिंह उर्फ भूरा पुत्र अतरपाल सिंह का गांव में ही 3 बीघा खेत है। जिसकी मिट्टी को उन्होंने पिछले दिनों एक भट्ठा संचालक को ईट पथाई के लिए बेच दिया था। इसी मिट्टी की खुदाई के दौरान मूर्तियां निकल रही हैं।
पुष्पेंद्र सिंह ने बताया कि हफ्ते भर पूर्व खेत से मिट्टी खोदते समय भट्ठा मजदूरों को कुछ पत्थर दिखाई दिए, लेकिन जैसे-जैसे फावड़ा चलता गया जमीन से पत्थर की शिलाएं निकलती गईं। जिन पर अलग-अलग कलाकृतियां बनी हुईं थीं। इसी दौरान एक शिव मूर्ति भी मिट्टी से बाहर आई।
फिर क्या था..? देखते ही देखते पूरे गांव में जमीन के अंदर से मंदिर व मूर्तियों के निकलने की खबर फैल गई। खेत स्वामी के पहुंचने से पूर्व ही बहुत सी छोटी मूर्तियों को आसपास के ग्रामीण तथा निकटवर्ती कस्बे के लोग ले गये। बाकी बची मूर्तियां खेत स्वामी ने अपने घर पर सुरक्षित रखवा दीं। पुष्पेंद्र सिंह ने बताया कि खुदाई में दो दर्जन से अधिक मूर्तियां निकली थीं। जिसके बाद खुदाई कार्य रोक दिया है। खुदाई के दौरान शिव मूर्ति पर मजदूरों का फावड़ा चल गया था, जिससेे पश्चाताप की आग में जल रहे मजदूरों ने अब मूर्ति को पेड़ के नीचे रख कर उसकी पूजा अर्चना शुरू कर दी है। इस अप्रत्याशित घटना के बाद गांव में तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं। जिसमें राजपूतों के शासन से लेकर मुगलकालीन शासन तक की कहानी सुनाई जा रही है।
गांव के सबसे उम्रदराज व्यक्ति 80 वर्षीय ठा. शिशुपाल सिंह ने बताया कि सैकड़ों वर्ष पहले यहां एक प्राचीन मठ था। हो सकता है कि ये मूर्तियां उसी मठ का हिस्सा हों। लेकिन 1960 में चकबंदी में यह खेत अतर सिंह के नाम पर चढ़ गया। अब उनके बेटे पुष्पेंद्र सिंह इसके मालिक हैं। जानकारों का मानना है कि ये मूर्तियां करीब 1200 से 1600 वर्ष पूर्व की हैं, जोकि खजुराहो में बनी मूर्तिकला के समान प्रतीत हो रही हैं।
बुजुर्ग बताते थे कि यहां एक बहुत बड़ा मठ बना हुआ था। मैंने बचपन में एक चबूतरे के अवशेष भी देखे थे। इसे मठवाला खेत भी कहते थे। लेकिन ये बात दशकों पुरानी है।
– ठा. शिशुपाल सिंह 80 वर्षीय किसान
मैंने खजुराहो व कोणार्क मंदिरों की मूर्ति कला को करीब से देखा है ये मूर्तियां भी उन्हीं के जैसी दिख रहीं हैं, जिससे इनकी उम्र भी लगभग डेढ़ हजार वर्ष पूर्व की प्रतीत होती है।
-कप्तान सिंह यादव रिटायर्ड अध्यापक
बुजुर्ग कहते थे कि पूर्व में यहां खेरा था जिसे मुगलकालीन शासकों ने तोप से ढहा दिया था। ये भी हो सकता है कि ये मूर्तियां किसी मंदिर या किसी स्थापत्य में समाहित रही हों और जमींदोज हो गई हों।
-रामवीर सिंह गांधी, किसान
जिले में पहले भी इस तरह की मूर्तियां निकली हैं, जो संग्रहालय में सुरक्षित रखीं हैं। ये जैन, बुद्ध तथा हिंदू धर्म से संबंधित रही हैं। जिनका इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है। जरूरी है कि प्रशासन इन्हें भी संग्रहालय भिजवाए। पुरातत्व विभाग से भी इसकी जानकारी करनी चाहिए।
-प्रो अली अतहर, चेयरमैन इतिहास विभाग, एएमयू
पुष्पेंद्र सिंह ने बताया कि हफ्ते भर पूर्व खेत से मिट्टी खोदते समय भट्ठा मजदूरों को कुछ पत्थर दिखाई दिए, लेकिन जैसे-जैसे फावड़ा चलता गया जमीन से पत्थर की शिलाएं निकलती गईं। जिन पर अलग-अलग कलाकृतियां बनी हुईं थीं। इसी दौरान एक शिव मूर्ति भी मिट्टी से बाहर आई।
फिर क्या था..? देखते ही देखते पूरे गांव में जमीन के अंदर से मंदिर व मूर्तियों के निकलने की खबर फैल गई। खेत स्वामी के पहुंचने से पूर्व ही बहुत सी छोटी मूर्तियों को आसपास के ग्रामीण तथा निकटवर्ती कस्बे के लोग ले गये। बाकी बची मूर्तियां खेत स्वामी ने अपने घर पर सुरक्षित रखवा दीं। पुष्पेंद्र सिंह ने बताया कि खुदाई में दो दर्जन से अधिक मूर्तियां निकली थीं। जिसके बाद खुदाई कार्य रोक दिया है। खुदाई के दौरान शिव मूर्ति पर मजदूरों का फावड़ा चल गया था, जिससेे पश्चाताप की आग में जल रहे मजदूरों ने अब मूर्ति को पेड़ के नीचे रख कर उसकी पूजा अर्चना शुरू कर दी है। इस अप्रत्याशित घटना के बाद गांव में तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं। जिसमें राजपूतों के शासन से लेकर मुगलकालीन शासन तक की कहानी सुनाई जा रही है।
गांव के सबसे उम्रदराज व्यक्ति 80 वर्षीय ठा. शिशुपाल सिंह ने बताया कि सैकड़ों वर्ष पहले यहां एक प्राचीन मठ था। हो सकता है कि ये मूर्तियां उसी मठ का हिस्सा हों। लेकिन 1960 में चकबंदी में यह खेत अतर सिंह के नाम पर चढ़ गया। अब उनके बेटे पुष्पेंद्र सिंह इसके मालिक हैं। जानकारों का मानना है कि ये मूर्तियां करीब 1200 से 1600 वर्ष पूर्व की हैं, जोकि खजुराहो में बनी मूर्तिकला के समान प्रतीत हो रही हैं।
बुजुर्ग बताते थे कि यहां एक बहुत बड़ा मठ बना हुआ था। मैंने बचपन में एक चबूतरे के अवशेष भी देखे थे। इसे मठवाला खेत भी कहते थे। लेकिन ये बात दशकों पुरानी है।
– ठा. शिशुपाल सिंह 80 वर्षीय किसान
मैंने खजुराहो व कोणार्क मंदिरों की मूर्ति कला को करीब से देखा है ये मूर्तियां भी उन्हीं के जैसी दिख रहीं हैं, जिससे इनकी उम्र भी लगभग डेढ़ हजार वर्ष पूर्व की प्रतीत होती है।
-कप्तान सिंह यादव रिटायर्ड अध्यापक
बुजुर्ग कहते थे कि पूर्व में यहां खेरा था जिसे मुगलकालीन शासकों ने तोप से ढहा दिया था। ये भी हो सकता है कि ये मूर्तियां किसी मंदिर या किसी स्थापत्य में समाहित रही हों और जमींदोज हो गई हों।
-रामवीर सिंह गांधी, किसान
जिले में पहले भी इस तरह की मूर्तियां निकली हैं, जो संग्रहालय में सुरक्षित रखीं हैं। ये जैन, बुद्ध तथा हिंदू धर्म से संबंधित रही हैं। जिनका इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है। जरूरी है कि प्रशासन इन्हें भी संग्रहालय भिजवाए। पुरातत्व विभाग से भी इसकी जानकारी करनी चाहिए।
-प्रो अली अतहर, चेयरमैन इतिहास विभाग, एएमयू