दस्तक-विशेषस्पोर्ट्स

खेल के साथ खिलवाड़

खेल नीति विहीन उत्तर प्रदेश व भारत सरकार को करने होंगे गंभीर प्रयास -रनवीर सिंह
एस.एन. अब्बास

विश्व खेल पटल पर भारतीय खिलाड़ियों का डंका बजता है। भारत के कई खिलाड़ी ऐसे है जो अपनी प्रतिभा के बल पर भारत का नाम रोशन कर रहे हैं। खेलों की दुनिया में भारतीय खिलाड़ियों का जलवा देखते ही बनता है। क्रिकेट की किताब में सचिन एक रिकॉर्ड पुरुष के रूप में देखे जाते हैं जबकि विराट अब नया इतिहास लिखने को बेताब दिख रहे हैं। दरअसल क्रिकेट में स्टार की कमी नहीं है लेकिन अन्य खेलों में भारत का कद उतना बड़ा नहीं है जितना होना चाहिए। कुछ खेलों में छोड़ दिया जाये तो अन्य खेलों में प्रतिभा का टोटा देखा जा सकता है। हालांकि यह बात भी सत्य है कि कुछ खेलों खासकर बैडमिंटन और कुश्ती में भारतीय खिलाड़ी विदेशों में देश का झंडा बुलंद करते हैं। बैडमिंटन में सायना और सिंधु अब देश का गौरव बन चुकी हैं जबकि कुश्ती में साक्षी मलिक जैसी प्रतिभा लगाातार अपने प्रदर्शन से दुनिया जीतने का हौसला दिखाती हैं। पिछले ओलंपिक में भारतीय खेल के सुनहरे भविष्य को संवारने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने भी खेलों को और सशक्त बनाने की बात कही थी।
दरअसल भारतीय खेल संघ उम्मीद के मुताबिक परिणाम नहीं दे पा रहे हैं। खेलों में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी अंदर तक फैली हैं कि उन्हें काट पाना नामुमकिन सा दिखता है। हर खेल में मठाधीशों का जमावड़ा साफ देखा जा सकता है। उनकी प्राथमिकता खिलाड़ियों को तैयार करने में नहीं बल्कि अपना विकास करने की होती है। खेल संघों को मिलने वाला अनुदान खिलाड़ियों पर कम, संघ पदाधिकारियों पर ज्यादा खर्च होता है। खेलों के जानकारों की माने तो भारतीय खेल संघों में बुनियादी तौर पर कोई ठोस योजना नहीं है। इसका मुख्य कारण देश में एक खेल नीति का न होना ही है। भारत जैसे विशाल देश में यह विडम्बना ही कही जाएगी कि प्रतिभाओं को निखारने और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अच्छे परिणाम देने के लिए कोई योजना कारगर साबित नहीं हो रही है। वैसे तो भारत का ख्ोल मंत्रालय खेल के क्षेत्र में अनेक कार्य करता रहता है लेकिन किसी खेल एजेंडे पर अमल न होने के कारण शक्ति और संसाधन का दुरुपयोग होता है और बाईचांस किसी भी खेल में कोई व्यक्तिगत स्तर पर खिलाड़ी अपना अचीवमेंट कर पाता है उसी को अपनी नीतियों का परिणाम बताकर खेल संघ और खेल मंत्रालय इतिश्री कर लेता है। उदाहरण के तौर पर ओलम्पिक खेलों में सम्मिलित खेलों में इन्फ्रास्ट्रक्चर और तकनीक में कितना बदलाव किया गया है इसमें कोई एकरूपता और दूरदर्शिता नहीं दिखाई देती। भारत में आज तक ऐसी कोई दीर्घकालीन योजना नहीं बनी जिसमें ओलम्पिक को लक्ष्य मानकर 10 या 20 साल पहले से प्रतिभाओं का चयन करके उन्हें प्रशिक्षित किया जा सके।
देश के जाने-माने और वालीबाल टीम के पूर्व कप्तान, अर्जुन अवार्डी रनवीर सिंह बताते हैं कि खेलों को आगे बढ़ाने के लिए देश में खेल नीति का अभाव है। इतना ही नहीं खेल संघों में फैले भ्रष्टाचार ने भारतीय खेलों का बेड़ा गर्क कर दिया है। हमने आजतक कितने अंतर्राष्ट्रीय खेलों में भागेदारी की है और उसका परिणाम क्या रहा है और भारत सरकार ने खेलों पर कितनी धनराशि खर्च की है, इसी का आकलन अगर कर लिया जाये तो आपको अचम्भित करने वाले परिणाम मिलेंगे। हमारा मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अगर हमें अच्छे परिणाम चाहिए तो सरकार द्वारा दी जा रही धनराशि को अलग-अलग और छोटे स्तरों पर बंदरबांट न करके एक ऐसी राष्ट्रीय खेल नीति बने जिसमें देशभर से चयनति कुछ चुनिंदा प्रतिभाओं को लम्बे प्रशिक्षण के लिए तैयार किया जाये और उन्हीं पर वह विशेष राशि खर्च की जाये तो हमें अच्छे परिणाम अपने आप मिलेंगे। खेल को राज्यों का मामला बताकर इसे टाल दिया जाता है। अब आप ही बताइये कि देश से चयनित होकर जो खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल का प्रदर्शन करते हुए देश का प्रतिनिधित्व करते हुए देश के नाम की जर्सी पहनते हैं, तो यह विषय केवल राज्यों का कैसे हो सकता है?
देश के कुछ राज्यों में खेल नीति बनी है पर राष्ट्रीय स्तर पर उसको जोड़ने की या आगे बढ़ाने की कोई नीति न होने के कारण कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिल पाते हैं।
खेल नीति को लेकर राज्य और केंद्र सरकार कभी गम्भीर नहीं दिखी। कुछ प्रदेशों में खेल नीति को लेकर कदम उठाये जरूर गये लेकिन इसे सख्ती से लागू नहीं किया गया। उत्तर प्रदेश में तो खेल नीति के नाम पर कुछ है ही नहीं। सरकारे आयी और चली गई लेकिन खेल नीति को लेकर कुछ भी नहीं किया। खेलों के जानकारों की माने तो राष्ट्रीय खेल नीति का वजूद पहली बार 1984 में आया था। इसके बाद साल 2001 में नई राष्ट्रीय खेल नीति सामने आयी। देश के कई राज्यों में भी अपनी खेल नीति का दावा किया जाता रहा है। ताजा मामला अभी हरियाणा का है। हरियाणा में खेल नीति को लेकर वहां के खिलाड़ियों ने बगावत कर दी है और सवालिया निशान लगाते हुए ओलम्पिक पदक विजेता साक्षी मलिक और बबीता फोगाट ने हरियाणा सरकार पर कड़ा हमला बोला था।
साक्षी को अभी नौकरी नहीं मिली जबकि बबीता के अनुसार छह साल के बाद भी उन्हें अवॉर्ड मनी तक नहीं मिली। ठीक इसके उलट यूपी में भी खेल नीति को लेकर अभी तक सरकारे जागी नहीं है। देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में खेल नीति को लेकर खेल के आला अधिकारी कुछ भी बोलने से कतराते है। हालांकि सपा सरकार के जाने के बाद नई सरकार से यहां के खिलाड़ियों ने अच्छी खासी उम्मीदें बंधी हैं। किसी जमाने में देश का गौरव रहे रनवीर सिंह आज भी खेल जगत की एक ऐसी धरोहर हैं कि उनके खेल जीवन के अनुभव और विजन को इस्तेमाल किया जाये तो खेलों की तस्वीर बदल सकती है। रनवीर सिंह एक ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने खेल में तो अपनी प्रतिभा को स्थापित किया ही है, उसके साथ-साथ खेल संघों की कार्यप्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार कैसे कम हो, इस पर पूरा शोध करके उ.प्र. के लिए एक खेल नियमावली तैयार की। उनके इस ईमानदार प्रयास को अगर खेलों में लागू कर दिया जाये तो खेल संघों में व्याप्त भ्रष्टाचार तो खत्म हो ही जायेगा, साथ ही गांवों से दूरदराज प्रतिभाओं को खोजने और उन्हें प्रोत्साहित करने का मार्ग प्रशस्त हो जायेगा। उन्होंने अपनी खेल नीति में महत्वपूर्ण 16 बिन्दुओं को रेखांकित किया है जिसमें खेलों में खिलाड़ियों के चयन, प्रशिक्षण, शिक्षा एवं रोजगार सभी कुछ समाहित है। उ.प्र. पुलिस के खेल में खिलाड़ियों को बढ़ावा देने वाले आईपीएस अधिकारियों के प्रयास से 1999 में भर्ती व पदोन्नति के शासनादेश पारित किये गये जिसमें काफी राष्ट्रीय-अंतरर्राष्ट्रीय खिलाड़ी भर्ती हुए। वर्ष 2011 तत्कालीन प्रमुख सचिव गृह ने रुचि लेकर खेल व खिलाड़ियों को बढ़ावा देने की नियमावली बनायी गयी जो आज तक लागू नहीं हुई।
उ.प्र. की सपा सकार के प्रारंभिक काल में युवा मुख्यमंत्री का खेलों के प्रति रुझान देखकर तैयार खेल नीति को लागू करने का आश्वासन दिया गया लेकिन हुआ कुछ नहीं। मेरे द्वारा वर्ष 2012 में ही ये सभी 16 बिन्दु एक मंत्री के माध्यम से मुख्यमंत्री को भिजवा दिये गये थे।
अब जब बदलाव हुआ है तो उ.प्र. के दूसरे युवा, कर्मठी एवं संकल्पबद्ध मुख्यमंत्री से उन्हें बहुत आशाएं हैं। वे कहते हैं कि इस प्रदेश को नेता के साथ-साथ ऐसे योगी की ही आवश्यकता है जो विपरीत परिस्थितियों के साथ कठिन करणों को भी साधकर परिवर्तन ला सके। और हमें उम्मीद है कि युवा मुख्यमंत्री उ.प्र. को समर्थ खेल नीति दे पाने में सफल होंगे।
समान्तर संघों ने खेलों का किया बंटाधार
यूपी क्या कई प्रदेशों में समान्तर चल रहे खेल संघों ने भारतीय खेलों का बेड़ा गर्क किया है। हर खेल में दो संघ देखने को मिल जायेगे। जो असली और नकली संघ बनकर सामने आते हैं। नतीजनत खिलाडिय़ों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है। खिलाड़ी तभी बड़ा माना जाता है जब ओलम्पिक, विश्व कप, एशियाई खेल और एशियाई चैम्पियनशिप में भाग लेता है। जबकि इसी तरह से राष्ट्रीय खिलाड़ी के रूप में तभी जाना जायेगा जब वह राष्ट्रीय चैम्पियनशिप, राष्ट्रीय खेलों व विभागीय राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में शामिल होता है। समान्तर खेल संघों के चक्कर में खिलाड़ियों का बड़़ा नुकसान होता है अक्सर खिलाड़ी भ्रम की स्थिति में आ जाते है और अपने करियर के साथ खिलवाड़ कर बैठते हैं। कई खिलाड़ी किसी प्रतियोगिता में भाग लेते है और पदक भी जीतते हैं लेकिन बाद में मालुम पड़ता है कि यह प्रतियोगिता वर्तमान खेल संघ से मान्यता प्राप्त ही नहीं है। इसलिए ऐसी प्रतियोगिताओं में जीत कोई खास मायने नहीं रखती। प्रत्येक संघ सही होने का दावा भी करते हैं, खिलाड़ियों के करियर के साथ खिलवाड़ भी करते हैं। अवैध खेल संघ जोड़ तोड़ के सहारे करोड़ों कमाते हैं जबकि मान्यता प्राप्त खेल संघ अनुदानों के सहारे खूब मौज मस्ती करते है और उन्हें खिलाड़ियों के भविष्य से कोई लेना देना नहीं होता है। ऐसे में सभी समान्तर खेल संघ को खत्म किया जाना चाहिए।
पूरे देश में एक ही खेल नीति लागू होनी चाहिए जिससे खिलाड़ियों को लाभ मिल सके। अगर एक खेल नीति देश में लागू होती है तो बेहतर परिणाम देखने को मिलेंगे। यूपी में योगी सरकार से खिलाड़ियों को काफी उम्मीदे हैं। एक पूर्व खिलाड़ी को खेल मंत्री की जिम्ेदारी दिये जाने से खिलाड़ियों को उम्मीद है कि वह उ.प्र. में खेल नीति को लागू कराने में कुछ ठोस कदम उठायेंगे। और खेल संघों को भी नयी नीति के तहत अपने कामकाज में बदलाव करने पर बाध्य करेंगे क्योंकि ये खेल संघ जिनका गठन भारत के संविधान के तहत ही हुआ है, पर ये अपने को ऑटोनॉमस बाडी बताकर अपनी जिम्मेदारियों और जवाबदेही से बचते रहते हंैं। अब समय आ गया है कि देश में खेल प्रतिभाओं को चिह्नित करके उन्हे ईमानदारी से समस्त खेल सुविधायें उपलब्ध कराई जायें। कुल मिलाकर देश में अगर एक खेल नीति लागू हो तो यह खिलाड़ियों की प्रतिभा के साथ-साथ देश के प्रति भी न्यायपूर्ण होगा लेकिन इसके लिए ग्रामीण खेल प्रतिभाओं को पूरी ईमानदारी, पारदर्शिता एवं निष्पक्षता से आगे बढ़ाना होगा।
अवार्ड अचीवमेंट
रनवीर सिंह
’ 1970-85- मेंबर/कैप्टन यूपी बालीवाल टीम इन नेशनल चैम्पियनशिप
’ 1971 अगेंस्ट बर्मा वालीबाल टीम 
’ 1972-76 मेंबर कैप्टन यूपी पुलिस बालीवाल टीम इन इंडिया पुलिस गेम्स
’ 1974- 7वें एशियाई गेम्स तेहरान (ईरान) 
’ 1974- लक्ष्मण एवार्ड
’ 1975- अर्जुन अवार्ड
’ 1975- गोल्ड मेडलिस्ट कैप्टन आफ यूपी  बालीवाल टीम इन द नेशनल्स
’ 1979- कैप्टन इंडियन बालीवाल टीम (1979-81)
’ 1978 अगेंस्ट फ्रांस बालीवाल टीम
’ 1978- 8वें एशियाई गेम्स बैंकाक (थाईलैंड)
’ 1979- गोल्ड मेडलिस्ट आफ आल इंडियन पुलिस गेम्स
’ 1979- एशियन बालीवाल चैम्पियनशिप बहरीन (कैप्टन)
’ 1980 अगेंस्ट यूएसएसआर बालीवाल टीम (कैप्टन)
’ 1981 अगेंस्ट आस्ट्रेलियन बालीवाल टीम  (कैप्टन)
’ 1981 श्रीलंका टूर-सभी मैच जीते (कैप्टन)
’ 1981 मास्को यूएसएसआर टूर
’ 1996 अटलांटा ओलंपिक (सिक्योरिटी ऑफिसर)
’ 2011 आब्जर्वर पंचायत युवा क्रीड़ा खेल अभियान (भारत सरकार)
’ 2012 फाउंडर मा मातृभूमि युवा, खिलाड़ी, प्रतिभा प्रोत्साहन सीमित

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