गणेशजी की प्रतिमा से आती है सुख और शांति
ऐसा कहा जाता है की जहा गणेशजी का वास होता है वहां पर रिद्घि-सिद्घि और शुभ लाभ का वास होता है. ऐसे स्थान पर अमंलकारी घटनाएं और दुख दरिद्रता नहीं आती है पर कभी कभी ऐसा होता है की लोग उन्नति के चक्कर में गणेश जी के साथ हम लोग कुछ ऐसे काम कर बैठते हैं जो गलत हो जाता है, और इससे लाभ भी नहीं मिलता.
पुराने समय से ही घर के मुख्यद्वार की चैखट के ऊपर सुख-शान्ति-समृद्धि के लिए गणेश जी की प्रतिमा लगाने की परंपरा रही है. कई स्थानों पर तो घर के मुख्यद्वार के ऊपर मध्य में श्री गणेश जी को विराजित कर उनके आस-पास सिन्दूर से उनकी दोनों पत्नियों के नाम “रिद्धि-सिद्धि” लिखने की भी परम्परा है, मान्यता है कि इससे घर में ज्ञान और धन की कभी कमी नहीं रहती.
इसलिए भारत के लगभग सभी मन्दिरों के मुख्यद्वार पर और प्राचीन हवेलियों में भी गणेश जी की मूर्ति केवल बाहर की ओर लगी हुई दिखाई देती है. ऐसा माना जाता है की गणेश जी की पीठ पर दरिद्रता का निवास होता है.
अतः मुख्यद्वार पर गणेश जी की मूर्ति लगाते समय एक जैसी दो मूर्ति लाकर एक मूर्ति मुख्यद्वार के बारह की ओर और एक मूर्ति मुख्यद्वार के अन्दर की ओर लगाना चाहिए ताकि गणेश की पीठ घर की ओर ना रहे.