भले ही नसबंदी के ऑपरेशन साफ-सुथरे माहौल में किए जाएं, फिर भी ये सर्जरी जोखिम से भरपूर है। ये महिला की निजता पर हमला भी है। तमाम विवादों के बावजूद मर्दों के मुकाबले महिलाओं की नसबंदी कई देशों में ज्यादा लोकप्रिय है। विवाद इस बात को लेकर भी है कि नसबंदी के बाद महिला के गर्भ धारण के विकल्प हमेशा के लिए खत्म हो जाते हैं। इससे नैतिकता के भी सवाल उठते हैं। सरकारों ने इस विकल्प का दुरुपयोग भी किया है। पेरू में 1990 के दशक में गरीब महिलाओं की बड़े पैमाने पर नसबंदी उन्हें बिना बताए कर दी गई थी।
इस विकल्प को लेकर एक मुश्किल ये भी है कि महिलाओं पर गर्भ निरोध के लिए नसबंदी का दबाव बनाने से उनके सामने मौजूद दूसरे विकल्पों को खत्म कर दिया जाता है। जबकि वो गोलियां खाने या आईयूडी लगाने जैसे अस्थायी विकल्प अपनाने की भी हकदार हैं। अगर उनके पास ये विकल्प नहीं होते, तो, वो या तो गर्भ निरोध के लिए नसबंदी कराएं या फिर जल्दी-जल्दी बच्चे पैदा होने का डर रहता है। भारत में गर्भ निरोधक गोलियों और आईयूडी की उपलब्धता भी कम है। अगर महिलाएं आईयूडी इस्तेमाल करना भी चाहें, तो इसे सही तरीके से लगाने के विशेषज्ञों की भी कमी है।
जानकारी के अभाव में महिलाओं को गर्भ निरोध के तमाम विकल्प नहीं मिल पाते हैं। मधु गोयल दिल्ली के पॉश इलाक़े ग्रेटर कैलाश स्थित फोर्टिस ला फेम अस्पताल में गाइनेकोलॉजिस्ट हैं। उनके पास रईस तबके की महिलाएं आती हैं। समाज के इस वर्ग की महिलाओं के बीच भी गर्भ निरोध के लिए नसबंदी ही ज्यादा लोकप्रिय है। हालांकि नसबंदी कराने वाली ज्यादातर ऐसी महिलाएं उम्रदराज होती हैं। युवा महिलाएं भी गर्भ निरोध के दूसरे विकल्पों को लेकर आशंकित होती हैं। इंटरनेट पर गर्भ निरोधक गोलियों के बारे में पढ़कर जानकारी लेने आई महिलाएं भी मधु गोयल को आशंकित दिखीं।
बहुत सी महिलाओं को ये गलतफहमी है कि गर्भ निरोधक गोलियां उन्हें स्थायी तौर पर बांझ बना सकती हैं। मधु गोयल कहती हैं कि अच्छी बात ये है कि महिलाएं अब खुद से जागरूक हो रही हैं। गर्भ निरोधक अपना रही हैं। भारत में तलाक के मामले भी बढ़ रहे हैं। इसी वजह से भारत में कई महिलाएं नसबंदी को पलटना भी चाहती हैं, ताकि दूसरे पति के साथ नए सिरे से परिवार शुरू कर सकें। महिला और बाल कल्याण मंत्रालय ने 2016 में नेशनल पॉलिसी फॉर वुमेन को शुरू किया था।
इसमें गर्भ निरोध के लिए महिलाओं के बजाय अब पुरुषों पर ज्यादा जोर देने की बात कही गई है। हालांकि अभी इस नीति पर पूरी तरह से अमल नहीं शुरू हो सका है। जिस तरह से अंतरराष्ट्रीय लोकप्रियता के साथ भारत में महिलाओं की नसबंदी लोकप्रिय है, उस सोच में बदलाव आने में काफी वक्त लगेगा।