ज्ञान भंडार
गुरु नानक देव ने यहां मनाया था अपना बर्थ-डे, ऐसा है नजारा, देखें Photos
यमुनानगर। तीर्थराज कपाल मोचन उन ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों में से एक है, जहां तीन धर्मों के लोग पहुंचते हैं। यमुनानगर के बिलासपुर में स्थित यह इस तीर्थ स्थल में सबसे अधिक मान्यता सिख धर्म के श्रद्धालुओं की है। यहां पहली पातशाही गुरु नानक देव दसवीं पातशाही गुरु गोबिंद सिंह के दो गुरुद्वारे हैं। गुरु नानक देव जी ने अपना जन्मदिन यहां ठहर कर मनाया। गुरु गोबिंद सिंह ने यहीं से शुरू की थी दस्तारबंदी की प्रथा…
– भंगानी का युद्ध जीत कर वापसी के दौरान गुरु साहिब यहां 52 दिन तक रुके और सिख समुदाय के लोगों को दस्तार का हुकम दिया।
– वहीं राजा अकबर के भी यहां आने के साक्ष्य मिलते हैं। बाबा दुधाधारी की मजार भी लोगों की आस्था का केंद्र मानी जाती है।
– वहीं राजा अकबर के भी यहां आने के साक्ष्य मिलते हैं। बाबा दुधाधारी की मजार भी लोगों की आस्था का केंद्र मानी जाती है।
11 नवंबर से शुरू हुआ मेला
11 नवंबर से यहां कपालमोचन मेला शुरू हो रहा है। इस तीर्थस्थल में हिंदू, सिख मुस्लिम धर्म के लोगों की आस्था है। हर साल यहां लाखों श्रद्धालु पवित्र सरोवरों में स्नान कर मोक्ष की कामना करते हैं। प्रशासन श्रद्धालुओं को हर सुविधा मुहैया करवाने के लिए रात दिन एक किए हुए है। पांच दिनों तक रह कर श्रद्धालु यहां स्नान पूजा अर्चना करते हैं। आसपास के मंदिर धर्मस्थल भी उनकी आस्था का केंद्र रहते हैं।
11 नवंबर से यहां कपालमोचन मेला शुरू हो रहा है। इस तीर्थस्थल में हिंदू, सिख मुस्लिम धर्म के लोगों की आस्था है। हर साल यहां लाखों श्रद्धालु पवित्र सरोवरों में स्नान कर मोक्ष की कामना करते हैं। प्रशासन श्रद्धालुओं को हर सुविधा मुहैया करवाने के लिए रात दिन एक किए हुए है। पांच दिनों तक रह कर श्रद्धालु यहां स्नान पूजा अर्चना करते हैं। आसपास के मंदिर धर्मस्थल भी उनकी आस्था का केंद्र रहते हैं।
भगवान श्री कृष्ण के साथ पांडव आए थे पितर शांति के लिए
कपालमोचन तीर्थ स्थल का अपना ही महत्व है। इसीलिए वेदों में वर्णित भी है कि सारे तीर्थ बार-बार कपालमोचन एक बार। यहां द्वापर, त्रेता कलयुग का इतिहास सिमटा है। शास्त्रों के अनुसार यहां श्रीराम, श्रीकृष्ण, पांडव कौरव भी पितरों की शांति के लिए आए। कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद श्रीकृष्ण अर्जुन ने यहां शस्त्र धोकर पितरों की शांति के लिए पूजा अर्चना की।
कपालमोचन तीर्थ स्थल का अपना ही महत्व है। इसीलिए वेदों में वर्णित भी है कि सारे तीर्थ बार-बार कपालमोचन एक बार। यहां द्वापर, त्रेता कलयुग का इतिहास सिमटा है। शास्त्रों के अनुसार यहां श्रीराम, श्रीकृष्ण, पांडव कौरव भी पितरों की शांति के लिए आए। कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद श्रीकृष्ण अर्जुन ने यहां शस्त्र धोकर पितरों की शांति के लिए पूजा अर्चना की।
तीन सरोवर में करते हैं लोग स्नान
यहां पंजाब अन्य राज्यों से आने वाले श्रद्धालु पांच दिन तक ठहर कर स्नान करते हैं। यहां तीन सरोवर हैं। सूरजकुंड, ऋणमोचन कपालमोचन सरोवर। श्रद्धालु शुक्ल पक्ष की एकादशी से स्नान शुरू कर पूर्णिमा को संपूर्ण स्नान करते हैं। यहां साधु संतों की शाही भी निकलती है। बड़ी संख्या में संत महंत इसमें भाग लेते है।
यहां पंजाब अन्य राज्यों से आने वाले श्रद्धालु पांच दिन तक ठहर कर स्नान करते हैं। यहां तीन सरोवर हैं। सूरजकुंड, ऋणमोचन कपालमोचन सरोवर। श्रद्धालु शुक्ल पक्ष की एकादशी से स्नान शुरू कर पूर्णिमा को संपूर्ण स्नान करते हैं। यहां साधु संतों की शाही भी निकलती है। बड़ी संख्या में संत महंत इसमें भाग लेते है।