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चंद्रयान 2 : 500 साल की ऊर्जा जरूरत और अनमोल खजाने की तलाश

बेंगलुरु : भारत का चंद्रयान-2 उम्‍मीद की एक नई किरण साबित हो सकता है। मिशन मून के तहत चांद के साउथ पोल पर कदम रखने जा रहे चंद्रयान-2 से एक ऐसे अनमोल खजाने की खोज हो सकती है जिससे न केवल अगले करीब 500 साल तक इंसानी ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा सकता है बल्कि कई ट्रिल्‍यन डॉलर की कमाई भी की जा सकेगी। ‘चंदा मामा’ से मिलने वाली यह ऊर्जा न केवल सुरक्षित होगी बल्कि तेल, कोयले और परमाणु कचरे से होने वाले प्रदूषण से मुक्‍त होगी। मिशन मून को पूरा करने के लिए चंद्रयान-2 सोमवार तड़के 2:51 बजे चद्रमा के साउथ पोल के लिए रवाना होगा। चंद्रमा का दक्षिण ध्रुव इलाका औद्योगिक उत्‍खनन के लिए सबसे मुफीद जगहों में से एक है। चीन ने निकट भविष्‍य में इस इलाके में अपनी बस्‍ती बसाने का इरादा जताया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुंसधान संस्‍थान (इसरो) के मुताबिक चंद्रयान-2 चंद्रमा के भौगोलिक वातावरण, खनिजों, तत्‍वों, उसके वायुमंडल के बाहरी परत और पानी के बारे में सूचना इकट्ठा करेगा। दरअसल, भारत की नजर चंद्रमा पर बड़ी मात्रा में पाए जाने वाले एक अनमोल खजाने पर है जिसका नाम हीलियम-3 है। इस खजाने की खोज ही भारत को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर ले जा रही है। धरती पर तेजी से खत्‍म होते परंपरागत ऊर्जा संसाधनों को देखते हुए भारत चंद्रमा की ओर आशा भरी नजरों से देख रहा है। अपनी ऊर्जा जरूरतों का दो तिहाई हिस्‍सा आयात करने वाले भारत के लिए हीलियम-3 ऊर्जा के साथ खरबों डॉलर भी दिला सकता है। हीलियम-3 पर भारत की नजर काफी पहले से है। वर्ष 2006 में इसरो के तत्‍कालीन चेयरमैन माधवन नायर ने जोर देकर कहा था कि चंद्रयान-1 चंद्रमा की सतह पर हीलियम-3 की तलाश करेगा जिससे भविष्‍य में परमाणु रिएक्‍टर चलाए जा सकेंगे। मुंबई में भाभा परमाणु शोध संस्‍थान में दिए अपने एक भाषण में उन्‍होंने कहा, ‘हीलियम-3 की गुणवत्‍ता भी काफी मायने रखती है क्‍योंकि इसी आधार पर यह तय होगा कि उत्‍खनन किया जाए या नहीं।’ ‘जिस देश के पास ऊर्जा के इस स्रोत को चांद्र से धरती पर लाने की क्षमता होगी, वह इस पूरी प्रक्रिया पर राज करेगा…मैं केवल इस प्रक्रिया का हिस्‍सा नहीं बनना चाहता हूं बल्कि इसका नेतृत्‍व करना चाहता हूं।’ गौरतलब है कि पृथ्‍वी के विपरीत चंद्रमा की सतह पर हीलियम-3 बड़ी मात्रा में पाया जाता है। हालांकि अभी इसके उत्‍खनन की तकनीक अभी नहीं बन पाई है।

परमाणु रिएक्‍टरों में हीलियम-3 के इस्‍तेमाल से रेडियोएक्टिव कचरा नहीं पैदा होगा। इससे आने वाली कई सदियों तक धरती की ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा सकेगा। हीलियम-3 पहले से ही धरती पर पैदा होती है लेकिन यह बहुत दुर्लभ है और मंहगी है। अनुमान है कि चंद्रमा पर इसके विशाल भंडार मौजूद हैं। बताया जाता है कि यह भंडार एक मिलियन मीट्रिक टन तक हो सकता है। इस भंडार का केवल एक चौथाई ही धरती पर लाया जा सकता है।

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