डोकलाम विवाद ने भारत को चीन से सावधान रहने के लिए जरूरी सबक सीखा दिए हैं. यही वजह है कि वह चीन की सीमा पर कई हवाई पट्टी का निर्माण कर रहा है. ईस्टर्न लद्दाख के इलाकों में इसे तैयार किया जा रहा है ताकि इमरजेंसी माहौल में तुरंत सेना की टुकड़ी को तैनात किया जा सके.
प्रमुख रक्षा सूत्र के अनुसार लद्दाख में हमेशा सेना की तैनाती वहां के वातावरण को देखते काफी मुश्किल है. यही वजह है कि हवाई पट्टी बनाने का विचार किया गया ताकि पड़ोसी देशों द्वारा कोई भी हिमाकत करने पर तुरंत एक्शन लेते हुए सेना तैनात करने में मदद मिले.
एयरफोर्स की टीम आसपास के इलाकों का मुआयना कर रही है, जहां जरूरत पड़ने पर बड़े ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट लैंड और टैक ऑफ करवाए जा सकें. सोर्स के अनुसार डोकलाम विवाद के समय चीन और भारत ने उस इलाके में 9 हजार से ज्यादा सैनिक तैनात किए थे. यह जवान की संख्या के मामले में यह एक इंफ्रेंट्री डिवीजन के बराबर थे.
विवाद के दौरान भारतीय सेना ने ऑपरेशनल अलर्ट जारी किया था, इस वजह से वहां नए बने माउंटेन स्ट्राइक कॉर्प्स के जवान तैनात किए गए थे. हालांकि अलर्ट समाप्त होने के बाद अब वहां से लगभग 2 ब्रिगेड यानी 6 हजार जवान वापस बुलाए जा चुके हैं और उन्हें उनके वास्तविक जगहों पर भेजा जा चुका है.
सूत्र बताते हैं कि भयंकर सर्द मौसम और स्नोफॉल की शुरुआत वजह से टुकड़ी को वहां तैनात नहीं रखा जा सकता था. अगर उन्हें वहां तैनात रखना पड़ता तो जरूरत के समय बस हवाई मदद से ही उन्हें बाहर निकाला जा सकता था. वहीं खुफिया सूत्रों के अनुसार चीन की सेना ने भी अपने जवान उस इलाके से हटाने शुरू कर दिए हैं.
न्योमा एयरफिल्ड प्रोजेक्ट
एयरफोर्स द्वारा नई हवाई पट्टी की खोज में शुरू किए गए अभियान से बहुत सालों से अटके न्योमा एयरफिल्ड प्रोजेक्ट के दोबारा पुनर्जीवित होने की संभावना है. न्योमा एयरफिल्ड प्रोजेक्ट की हवाई पट्टी पर हर तरह के ट्रांसपोर्ट विमान उतर सकते हैं. इंडियन एयरफोर्स यहां एटनॉव 32 एयरक्राफ्ट उतार चुका है. भारत हमेशा से चीन सीमा के पास हवाईपट्टी बनाने की योजना बना रहा है. सूत्र के अनुसार आईएएफ की चुशुल में हवाई पट्टी बनाने की योजना थी, लेकिन वह व्यवहार्य नहीं लगी. ऐसे में एयरफोर्स न्योमा में ही हवाई पट्टी के विकास की योजना बना रहा है, जहां आखिरी बार 1960 में विमान उतरा था.
न्योमा 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. चीन से युद्ध के बाद इसका इस्तेमाल बंद हो चुका था, लेकिन 2009 में दोबारा शुरू किया गया था. भारत अरुणाचल प्रदेश में भी अपने 7 एडवांस लैंडिंग ग्राउंड को अपग्रेड कर रहा है. कुछ को दोबारा शुरू भी कर दिया गया है. C-130J सुपर हर्लकुलस विमान की वहां लैंडिंग भी हो चुकी है. सूत्र के अनुसार यह एडवांस लैंडिंग ग्राउंड एयर बेस नहीं हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल लैंडिंग स्ट्रीप के तौर पर किया जा सकता है. ट्रांसपोर्ट विमान उतारने, टुकड़ियों और सप्लाई को लाने ले जाने के लिए और जेट विमानों के रिफ्युलिंग में इस्तेमाल किया जा सकता है.