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चीन के लोकतांत्रिक सिपाही की मौत, खौफ में थी कम्युनिस्ट सरकार

चीन में लोकतंत्र की मांग करने वाले लू श्याबाओ बहुत से लोगों के लिए एक हीरो की तरह हैं, लेकिन चीनी सरकार ने उन्हें हमेशा विलेन की तरह ही देखा और उनसे वैसा ही व्यवहार किया। साल 2010 में लू को शांतिपूर्ण तरीके से मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करने के बदले नोबेल पुरस्कार दिया गया। चीनी सरकार ने लू श्याबाओ को हमेशा सत्ता विरोधी के रूप में देखा जो सरकार को उखाड़ फेंकना चाहता हो। जिसके चलते उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। 61 साल के लू से चीनी सरकर इस कदर खुंदक खाती थी कि उन्हें लीवर का कैंसर होने के बाद भी इलाज की अनुमति नहीं दी।
चीन के लोकतांत्रिक सिपाही की मौत, खौफ में थी कम्युनिस्ट सरकार

लू हमेशा से अपने विद्रोही राजनीतिक विचार और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की आलोचना के लिए जाने जाते रहे हैं। वह हमेशा से चीन में लोकतांत्रिक सरकार चाहते थे और मुक्त चीन के लिए अभियान भी चलाया। उनके सामाजिक अभियान में नया मोड़ 1989 में थियानमेन नरसंहार के वक्त आया।

4 जून 1989 को थियानमेन स्क्वायर पर लोग लोकतंत्र की मांग को लेकर इकट्ठा हुए थे। लोकतंत्र समर्थको को खदेड़ने के लिए चीनी सरकार ने सैन्य कार्रवाई की, जिसमें सैकड़ों लोगों की मौत हो गई। उस वक्त प्रोफेसर लू न्यूयॉर्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय में विजिटिंग स्कॉलर थे।

उन्होंने उस वक्त चीन में चल रहे छात्रों के प्रदर्शन में भाग लेने का फैसला किया और वापस लैट आए। उस वक्त लू श्याबाओ और कुछ अन्य लोगों को सैकड़ों प्रदर्शनकारियों की जान बचाने की श्रेय दिया गया। लू उस वक्त ही सरकार की नजर में आ गए। हालांकि ऑस्ट्रेलिया ने लू को शरण देने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने इसे खारिज कर दिया।

​उन्होंने चीन में रहने का ही फैसला किया, जिसके बाद उन्हे गिरफ्तार कर लिया गया। 1991 में जेल से बाहर आने के बाद उन्होंंने थियानमेन घटना में गिरफ्तार लोगों की रिहाई के लिए अभियान चलाया। चीनी सरकार ने उन्हें एक बार फिर गिरफ्तार किया और तीन साल के लिए लेबर कैंप में रहने की सजा सुनाई।

1996 में जेल में रहते हुए ही उन्होंने लू शिया से शादी की, शादी के वक्त से ही सरकार ने शिया पर भी नजर बना ली। वह हमेशा सराकर के निशाने पर रहीं। चीनी सरकार ने उन्हें यूनिवर्सिटी में पढाने और उनकी किताबों पर रोक लगा दी, लेकिन उन्होंने अपना अभियान जारी रखा।

2008 में उन्होंने एक घोषणा पत्र बनाया, जिसे चार्टर 08 का नाम दिया गया। इस घोषणापत्र में चीन में लोकतांत्रिक सुधार लाने की बात थी, जिसमें चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के रुख को देश के लिए विनाशकारी बताया गया।

जिस दिन यह घोषणा पत्र ऑनलाइन प्रकाशित होना था, उससे दो दिन पहले पुलिस ने लू के घर पर छापा मारा और उन्हें गिरफ्तार कर लिया। मुकदमा चलाने से पहले उन्हें एक साल तक जेल में रखा गया। 2009 में उन्हें 11 साल के लिए कैद की सजा सुनाई गई। 

2010 में जब उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया तब भी चीनी सरकार ने इस पर नाराजगी जाहिर की। लू को पुरस्कार समारोह में शामिल होने की इजाजत नहीं दी गई। उस वक्त विश्वभर के मीडिया में खाली कुर्सी की तस्वीर ने सुर्खियां बटोरीं। इसके कुछ दिनों बाद ही लू की पत्नी को घर में नजरबंद कर दिया गया। सरकार ने उन्हें, उनके परिवार और समर्थकों से अलग कर दिया। चीनी अधिकारियों ने कभी शिया की नजरबंदी का कारण नहीं बताया। 

जेल में बार-बार ठूंसे जाने के बाद भी लू ने हमेशा लोकतांत्रिक चीन की उम्मीद बनाए रखी। 2009 में सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा था मुझे विश्वास है कि चीन का राजनीतिक विकास रुकेगा नहीं और एक दिन चीन में लोकतंत्र जरूर आएगा।

लू की मौत के बाद भी चीनी सरकार का रवैया उनके प्रति बिल्कुल भी नहीं बदला, इसका नजारा उस समय दिखा जब नोबेल पुरस्कार समिति की अध्यक्ष बेरिट रीस एंडरसन को लू के अं‌तिम संस्कार में जाने के लिए चीन की ओर से वीजा ही नहीं दिया गया। हालांकि सू की मौत के बाद अब उनकी पत्नी की रिहाई की मांग उठने लगी है।

 
 

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