नई दिल्ली। भारत की आबादी में करीब 14.23 संख्या करीब मुस्लिमों की है। हालांकि, कुल भिखारियों में करीब 25 फीसद यानी 3.7 लाख भिखारियों में से 92 हजार 760 मुस्लिम लोगों को भारत सरकार द्वारा भिखारियों की श्रेणी में रखा गया है।
एक्िटविस्ट्स ने दावा किया कि यह डाटा पिछले महीने जारी किया गया था। धर्म के आधार पर की गई 2011 की जनगणना में उन्हें गैर-कर्मचारियों की श्रेणी में रखा गया है। यानी समाज के कुछ खास वर्ग सरकार की योजनाओं तक नहीं पहुंच पाती है और इस तरह से उन्हें बदहाल जिंदगी जीने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, जनगणन में गैर-कर्मचारियों को ऐसे व्यक्ितयों के रूप में रखा गया है, जो किसी भी आर्थिक गतिविधि में शिरकत नहीं करते हैं। फिर चाहें वह वेतनिक हो या अवैतनिक, घरेलू काम हो या खेती। जनगणना के डाटा के अनुसार, 72.89 करोड़ लोग नॉन वर्कर हैं, जिसमें से 3.7 लाख भिखारी हैं।
इस आंकड़े में वर्ष 2001 की जनगणना की तुलना में 41 फीसद की गिरावट हुई है, जिसमें भिखारियों की संख्या 6.3 लाख बताई गई थी। भिखारियों के रूप में वर्गीकृत किए गए मुस्लिमों का प्रतिशत असमान रूप से अधिक है। देश की कुल 3.7 लाख भिखारियों की आबादी में मुस्लिमों की संख्या एक चौथाई यानी 92 हजार 760 है।
देश में हिंदुओं की आबादी 79.8 फीसद है, लेकिन इसमें से 2.68 लाख लोग भिखारी हैं, जो कुल भिखारियों की संख्या का 72.22 फीसद है। देश में इसाईयों की संख्या 2.3 फीसद है और उनमें से 0.88 फीसद यानी करीब 3303 लोग भीख मांगते हैं।
भीख मांगने वाले लोगों के प्रतिशत की बात करें तो 0.52 फीसद बुद्ध, 0.45 फीसद सिख, 0.06 फीसद जैन और 0.30 फीसद अन्य धर्मों के लोग इस पेशे में लिप्त हैं। चौंकाने वाली बात यह सामने आई है कि मुस्लिम पुरुष भिखारियों की तुलना में मुस्लिम महिला भिखारियों की संख्या अधिक है।
यह चलन सभी समुदायर में भीख मांगने वाले महिलाओं और पुरुषों की संख्या से उल्टा है। देश के भिखारियों में औसतन करीब 53.13 फीसद पुरुष भिखारी और 46.87 फीसद महिला भिखारी हैं। वहीं, मुस्लिमों में यह अनुपात 43.61 फीसद पुरुष भिखारी और 56.3 फीसद महिला भिखारियों का है।
गौरतलब है कि देश में भीख मांगना गैरकानूनी है और इसके लिए तीन से 10 साल तक कैद की सजा मिल सकती है। बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट 1959 का करीब-करीब देश के हर राज्य में पालन किया जाता है।
बिहार जैसे कुछ राज्यों में भिखारियों के पुनर्वास का कार्यक्रम शुरू किया गया है। मगर, महाराष्ट्र और पश्िचम बंगाल जैसे राज्यों में सड़क पर मिलने वाले भिखारियों को जेल में डाल दिया जाता है।