उत्तर प्रदेशलखनऊ

जन्मदिन: बेगम अख्तर की दिलकश आवाज का जादू आज भी है कायम

दस्तक टाइम्स / एजेंसी
1-07-10-2015-1444197564_storyimageमुंबई, अपनी दिलकश आवाज से श्रोताओं को दीवाना बनाने वाली ‘बेगम अख्तर’ ने कहा था, ‘मैं शोहरत और पैसे को अच्छी चीज नहीं मानती हूं। औरत की सबसे बड़ी कामयाबी है किसी की अच्छी बीवी बनना।’ उन्होंने शादी के बाद गुनगुना तक छोड़ दिया था। जानिए उनके जन्मदिन पर ऐसे ही दिलचस्प किस्से।बचपन में बेगम अख्तार उस्ताद मोहम्मद खान से संगीत की शिक्षा लिया करती थीं। उन दिनों बेगम अख्तर से सही सुर नहीं लगते थे। उनके गुरू ने उन्हें कई बार सिखाया और जब वह नहीं सीख पायी तो उन्हे डांट दिया। बेगम अख्तर ने रोते हुए उनसे कहा, ‘हमसे नहीं बनता नानाजी, मैं गाना नहीं सीखूंगी। उनके उस्ताद ने कहा, बस इतने में हार मान ली तुमने। नहीं बिट्टो ऐसे हिम्मत नहीं हारते, मेरी बहादुर बिटिया। चलो एक बार फिर सुर लगाने में जुट जाओ।’ उनकी बात सुनकर बेगम अख्तर ने फिर रियाज शुरू किया और सही सुर लगाए। उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में 7 अक्टूबर 1914 को जन्मी बेगम ने फैजाबाद में सारंगी के उस्ताद इमान खां और अता मोहम्मद खान से संगीत की शुरुआती शिक्षा ली। उन्होंने मोहम्मद खान अब्दुल वहीद खान से भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखा। तीस के दशक में बेगम अख्तर पारसी थियेटर से जुड़ गई। नाटकों में काम करने के कारण उनका रियाज छूट गया जिससे मोहम्मद अता खान काफी नाराज हुए । बतौर अभिनेत्री बेगम अख्तर ने ‘एक दिन का बादशाह ’ से अपने सिनेमा करियर की शुरुआत की। लेकिन इस फिल्म की असफलता के कारण अभिनेत्री के रूप में वह कुछ ख़ास पहचान नहीं बना पाईं। वर्ष 1933 में ईस्ट इंडिया के बैनर तले बनी फिल्म ‘नल दमयंती’ की सफलता के बाद बेगम अख्तर बतौर अभिनेत्री अपनी पहचान बनाने में सफल रही।इस बीच बेगम अख्तर ने ‘अमीना’, ‘मुमताज बेगम’, ‘जवानी का नशा’, ‘नसीब का चक्कर’ जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का जौहर दिखाया। कुछ वक्त के बाद वह लखनऊ चली गईं जहां उनकी मुलाकात महान निर्माता निर्देशक महबूब खान से हुई जो बेगम अख्तर की प्रतिभा से काफी प्रभावित हुए और उन्हें मुंबई आने का न्योता दिया।शादी के बाद पति की इजाजत नहीं मिलने पर बेगम अख्तर ने गायकी से रुख मोड़ लिया। गायकी से बेइंतहा मोहब्बत रखने वाली बेगम अख्तर को जब लगभग पांच साल तक आवाज की दुनिया से रुखसत होना पड़ा। वह इसका सदमा बर्दाश्त नहीं कर सकीं, हमेशा बीमार रहने लगी। हकीम और वैध की दवाइयां भी उनके स्वास्थ्य को नहीं सुधार पा रही वर्ष 1972 में संगीत के क्षेत्र मे उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा वह पद्मश्री और पद्म भूषण पुरस्कार से भी सम्मानित की गई। यह महान गायिका 30 अक्टूबर 1974 को इस दुनिया को अलविदा कह गईं। अपनी मौत से सात दिन पहले बेगम अख्तर ने कैफी आजमी की गजल गायी थी। यह गजल थी ‘सुना करो मेरी जान उनसे उनके अफसाने, सब अजनबी है यहां कौन किसको पहचाने।’

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