
किताब के राष्ट्रीय चुनाव चिन्ह के साथ पार्टी की घोषणा करने वाले संगमा ने तब से ही राजस्थान में फोकस करना शुरू कर दिया था। दरअसल, उनका मकसद प्रदेश के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारकर अपनी जड़े यहां मज़बूत करने का था।
नई पार्टी को अभी ज़्यादा वख्त नहीं हुआ था कि उनके सामने राजस्थान में विधानसभा चुनाव की चुनौती थी। संगमा ने अपनी पार्टी के लिए इस पल को परीक्षा घडी माना और उम्मीदवार उतारने का फैसला कर लिया।
राजस्थान विधानसभा के लिए पहली बार चुनाव मैदान में उतरी संगमा की एनपीपी पार्टी ने प्रदेश में 150 उम्मीदवार उतारे। उनकी इस नई पार्टी के उम्मीदवारों ने तो कई सीटों पर सियासी समीकरण बदल कर रख दिए। एनपीपी के उम्मीदवारों ने कांग्रेस और भाजपा जैसी प्रमुख सियासी पार्टियों के उम्मीदवारों का गणित बिगाड़ दिया।
संगमा ने राजस्थान में जाने-पहचाने और दिग्गज सियासी चहरे के तौर पर किरोड़ी लाल मीणा को चुना। मीणा को उन्होंने एनपीपी पार्टी का अध्यक्ष बना दिया। वहीं, प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता का ज़िम्मा निभा रहे सुनील भार्गव को एनपीपी में कार्यकारी अध्यक्ष और चुनाव समिति का अध्यक्ष की भूमिका में जोड़ा गया।
एनपीपी ने प्रदेश चुनाव में कई ऐसे नेताओं को भी जगह मिली जो कांग्रेस और भाजपा से बागी हो गए थे या फिर नाराज़ चल रहे थे।
राजस्थान में पहली बार विधानसभा चुनाव के नतीजे एनपीपी के लिए न ज़्यादा अच्छे और न ही ज़्यादा बुरे माने गए। पार्टी ने चार सीटों पर जीत दर्ज़ की।
किरोड़ी लाल मीणा ने लालसोट से, उनकी पत्नी गोलमा देवी ने राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ से, गीता वर्मा ने सिकराय से और नवीन पिलानिया ने जयपुर के आमेर सीट से पार्टी के लिए चुनाव जीता।
विधानसभा में चुनाव के नतीजे आने के बाद नेशनल पीपुल्स पार्टी अध्यक्ष पीए संगमा ने इसे नई पार्टी के लिए एक अच्छी शुरुआत बताया था। संगमा ने कहा था कि एनपीपी जनता की समस्याओं को सामने लाने में रचनात्मक विपक्ष की भूमिका अदा करेगी। एनपीपी राजस्थान की जनजातीय आबादी की समस्याओं को विशेष रूप से सामने लाएगी।