अद्धयात्म
जानिए भगवान शिव के लाइफ मैनेजमेंट सूत्र
दस्तक टाइम्स/ एजेंसी. यदि ईश्वर से आपको मिलने का मौका दिया जाए, और उनसे जीने की कला (लाइफ मैनेजमेंट) सीखनी हो तो बेशक आप भगवान शिव का लाइफ मैनेजमेंट अपनी जिंदगी में उतार सकते हैं। शिव, बुराई और अज्ञानता के साथ ही अहंकार को नष्ट करने की सीख देते हैं। उनके पवित्र शरीर पर स्थित हर पवित्र चिन्ह जीवन जीने की शैली के लिए कुछ न कुछ सीख देता है।
- भगवान शिव के केश, एकता के प्रतीक हैं। उनके केश जूड़े के रूप में एकजुट रहते हैं। जोकि जीवन में एकता का पाठ पढ़ाते हैं।
- भोलेनाथ की तीसरी आंख, जिंदगी में आने वाली हर समस्या के पहलुओं पर ग़ौर करने की सीख देती है। कभी-कभी जो हम देखते हैं, वो गलत भी हो सकता है इसलिए हमें इसकी जांच अपने विवेक के जरिए करनी चाहिए।
- शंकर जी का त्रिशूल मस्तिष्क पर नियंत्रण करने की सीख देता है। मस्तिष्क पर नियंत्रण करने के बाद आप अच्छे-बुरे की पहचान और अहंकार से दूरी बनाए रख सकते हैं। ऐसा करने पर आपका हर कार्य सफल होगा।
- भगवान शिव की ध्यान अवस्था स्वच्छता का प्रतीक मानी गई है। ध्यान करने से हर मनुष्य अपने मन और मस्तिष्क को स्वस्थ्य और स्वच्छ रख सकता है।
- भोलेनाथ के शरीर पर स्थित भभूत, शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है। ठीक इसी तरह जिंदगी में हमें किसी तरह का भ्रम नहीं होना चाहिए। ऐसे में हमारे शरीर का तापमान क्रोध जैसे अन्य मानसिक विकारों में नहीं आएगा। वह नियंत्रित रहेगा। हमें जीवन में जुनून और प्रतिबद्धता अपनानी चाहिए। ऐसे में हम हर समस्या का हल जल्द ही निकाल सकते हैं।
- शंकर जी का नीला कंठ (नीली गर्दन) क्रोध को पीने की सीख देती है। कहा भी जाता है क्रोध बुद्धि को नष्ट कर देता है। यह एक चुनौती की तरह आता है जिसे आप अपने धैर्य से अपनी वाणी से बाहर न आने दें।
- शिव का डमरू कहता है कि अपने शरीर को डमरू की ध्वनि की तरह मुक्त कर दो। इससे सारी इच्छाएं, मुक्त हो जाएंगी। इस तरह हम कई मनोविकारों से भी मुक्त हो सकते हैं।
- शिव के सिर पर गंगाजी का होना अज्ञान को समाप्त कर देने का प्रतीक हैं। यह हमेशा हर काम की पहल करते हुए, पहले करने की सीख देती हैं।
- भोलेनाथ का कमंडल शरीर की हर उस बुराई को खत्म कर देने का प्रतीक है जो नकारात्मकता से पैदा होती है। इससे छुटकारा पाने की सीख कमंडल देता है।
- भोलेनाथ के गले में सुशोभित सांप कहता है जिंदगी में शारीरिक और मानसिक रूप से स्वतंत्र होना चाहिए यानी आलस्य को त्याग देना चाहिए। और किसी भी तरह का अहंकार मन में नहीं पालना चाहिए।