पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा का अच्छा प्रदर्शन आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने में भी सहायक सिद्ध होगा। इससे गुड्स एंड सर्विस टैक्स यानी जीएसटी बिल पास होने का रास्ता साफ होता नजर आ रहा है, क्योंकि अब सरकार बगैर कांग्रेस और लेफ्ट के भी जीएसटी बिल पास करा सकती है।
जीत का जश्न भले ही सिर्फ भाजपा नेता और कार्यकर्ता मना रहे हैं, लेकिन ये जीत उन लोगों के लिए भी जश्न का मौका दे सकती है, जो लंबे समय से गुड्स एंड सर्विस टैक्स यानी जीएसटी के इंतजार में बैठे हैं। राज्य विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद बदले राजनीतिक माहौल में जीएसटी से जुड़े संविधान संशोधन बिल को पास करा पाना आसान हो जाएगा। यही वजह है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली अब ज्यादा भरोसेमंद दिख रहे हैं।
ये बात सही है कि असम में जीत की वजह से राज्यसभा में भाजपा की संख्या तत्काल नहीं बढऩे वाली है, लेकिन जीएसटी का विरोध करने वाली कांग्रेस और लेफ्ट की संख्या में संभावित बढ़ोतरी जरूर रुक जाएगी। दूसरी ओर अलग-अलग वजहों से आने वाले दिनों में राज्यसभा की कुल 57 सीटें खाली हो रही हैं और इन पर नए सदस्य चुने जाएंगे।
अभी तक राज्यसभा में एनडीए के पास 69 सीट हैं, जो चुनाव के बाद बढ़कर 76 सीट हो जाएगी, जबकि जीएसटी का विरोध करने वाली कांग्रेस के पास 64 सीट हैं, जो घटकर 60 हो जाएगी। इसके अलावा जीएसटी का समर्थन करने वाले दूसरे गैर एनडीए दलों की संख्या में बढ़ोतरी होगी। ऐसे में सरकार बगैर कांग्रेस और लेफ्ट के समर्थन के भी जीएसटी बिल पास कर सकती है, जो अब तक संभव नहीं था।
सरकार को अब कांग्रेस और लेफ्ट की बजाय जो दूसरी क्षेत्रीय गैर एनडीए पार्टियां हैं उनका समर्थन हासिल करना होगा। ये अब और आसान इसलिए हो जाएगा, क्योंकि ममता बनर्जी ने साफ कर दिया है कि वो जीएसटी का समर्थन करेंगी।
इनके पास खुद राज्यसभा में 12 सीट हैं। इस बदले माहौल में सरकार दावा तो कर रही है कि वो मानसून सत्र में जीएसटी बिल पास कराने की कोशिश करेगी, लेकिन जीएसटी लागू होने के तुरंत बाद महंगाई बढऩे का खतरा क्या सरकार मोल लेगी कहना मुश्किल है, क्योंकि उस वक्त उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले रहेंगे।