जीवन के सभी मुश्किलों से उबारता है भगवान का यह चमत्कारी महामंत्र…
सनातन परंपरा में गौ, गीता और गायत्री का अत्यधिक महत्व है। गीता के माहात्म्य में उपनिषदों को गौ और गीता को उसका दुग्ध कहा गया है। महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में अर्जुन को जो उपदेश दिया था वह आज श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से प्रसिद्ध है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है।
‘महाभारत’ में यह ज्ञान 18 अध्यायों और 700 श्लोकों में वर्णित हैं। भीष्मपर्व के अध्याय 25 से 42 में वर्णित इस उपदेश को ‘गीता’, ‘भगवद्गीता’ या ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ नामों से जाना जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता भगवान का गाया हुआ वह ज्ञान है जो आज भी लोगों को सही दिशा दिखाता है। जिस तरह आज हम कई बार तमाम कारणों के चलते अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाते हैं और हारकर समस्याओं से पलायन करने लगते हैं, उसी प्रकार महाभारत के युद्ध के समय निराश असमंजस की स्थिति में दिखाई देते हैं तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें जो दिव्य ज्ञान दिया वह गीता के रूप में हमारे सामने है।
जीवन के लिए क्यों जरूरी है गीता
कलयुग की आपाधापी भरी जिंदगी में आखिर क्यों जरूरी हैं गीता का पाठ, इसे जानने के लिए आपको गीता का सिर्फ पठन नहीं बल्कि मनन करना होगा। दरअसल, जब कभी कोई व्यक्ति कर्तव्य पथ पर चलते हुए व्यक्तिगत, पारिवारिक, व्यावसायिक या ऐसे किसी विचारव्यूह में उलझता है तो उसे इसके माध्यम से सही रास्ता प्राप्त होता है। जीवन के उस मोड़ पर जब व्यक्ति को कोई रास्ता नहीं सूझता और वह खुद को तमाम समस्याओं से घिरा पाता है तो कर्तव्य-अकर्तव्य के असमंजस में फंस जाता है। उस मुश्किल समय में श्रीमद्भगवद्गीता उसका हाथ थामती है और मार्गदर्शन करती है।
भारत की सभी परंपराओं में है स्वीकार्य
श्रीमद्भगवद्गीता जिसे सम्मान से गीतोपनिषद् भी कहा जाता है, भारतीय धर्म, दर्शन और अध्यात्म का सार है। जो वेदज्ञान नहीं पा सकते, दर्शन और उपनिषद् का स्वाध्याय नहीं कर सकते; भगवद्गीता उनके लिए अतुल्य सम्बल है। सबसे बड़ी बात यह कि यह भारत की सभी धार्मिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक परम्पराओं में सहज स्वीकार्य है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह वेद से लेकर दर्शनों के सिद्धान्तों और उपनिषद से पुराणों तक की कथावस्तु को अपने में समेटे हुए है। न इसका किसी मत से विरोध है और न किसी सिद्धान्त से वैमनस्य। अपने तार्किक सिद्धान्तों और व्यावहारिक उपदेशों से गीता भारत से बाहर भी मान्य और सम्मानित है।
विद्वानों ने अलग-अलग तरीके से की है व्याख्या
श्रीमद्भगवद्गीता के दिव्य ज्ञान को लोगों ने अपने-अपने तरीके से व्याख्या की है। यही इसकी खूबी है कि इसे आप जितनी बार पढ़ते हैं, आपको उसका एक अलग ही आध्यात्मिक अर्थ समझने-जानने को मिलता है। शायद यही कारण है कि गीता के अमृत वचन को आम लोगों के लिए सरल रूप में उपलब्ध कराने के लिए कभी आदिशंकराचार्य, रामानुजाचार्य, चैतन्य महाप्रभु, भास्कराचार्य, वल्लभाचार्य, मध्वाचार्य, बालगंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, विनोबा भावे जैसे मूर्धन्य विद्वानों ने एक अलग तरीके से व्याख्या की थी। तब से लेकर आज तक यह क्रम जारी है।
विश्व में अपने प्रकार की अनोखी है ये गीता
महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए दिव्य ज्ञान वाली श्रीमद्भगवद्गीता आज हमारे सामने कई स्वरूपों में मौजूद है। मसलन कहीं किसी ने उसे काव्य रूप में प्रस्तुत किया है तो किसी ने दुनिया की सबसे बड़ी गीता बनाकर अपनी भक्ति को भगवान के समक्ष प्रस्तुत किया है। दुनिया की सबसे बड़ी और भारी श्रीमद्भगवद्गीता की बात करें तो यह इटली के मिलान शहर में बनी है। इसका वजन 800 किलो है। संस्कृत भाषा में तैयार इस किताब में कुल 670 पेज हैं। इसे बनाने में करीब 2.5 साल का लंबा वक्त लगा है। यह इतनी भारी है कि इसके एक पन्ने को ही पलटने के लिए 4 लोगों की जरूरत होती है। इसे बनाने में तकरीबन 1.5 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं।
किसी भी रचना अथवा कृति का एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद होना तो साहित्य-सृजन की दृष्टि से एक आम बात है लेकिन भाषा के बगैर उसका भावार्थ बदले उसे दुनिया भर के लोगों के लिए प्रस्तुत करना एक अद्भुत कार्य है। श्रीमद्भगवद्गीता को हर आम और खास तक एक सरल-सहज काव्य में पहुंचाने का कार्य एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के तौर पर सेवारत पं. जुगुल किशोर तिवारी ने किया है। श्रीकृष्ण के द्वारा दिए गए दिव्य वचनों को उन्होंने सात सौ दोहों में “आत्मतोषिणी गीता” नाम से प्रस्तुत किया है।
श्रीमद्भगवद गीता के प्रति अपनी अगाध श्रद्धा को प्रकट करते हुए पीयूष गोयल ने उलटी गीता ही लिख डाली। यह एक ऐसी गीता है जिसे सामान्य रूप से देखने में भले ही आपको कुछ समझ नहीं आए, लेकिन आईने के सामने ले जाते ही सब कुछ स्पष्ट पढ़ने को मिलने लगता है। इसके सारे अक्षर सीधे नजर आने लगते हैं। पीयूष गोयल ने गीता के सभी 18 अध्याय 700 श्लोक अनुवाद सहित हिंदी व अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में लिखा है।
मुश्किलों से उबारने वाले गीता के महामंत्र
कहते हैं कि जिसने गीता के अर्थ को समझ लिया वो जीवन में किसी भी परिस्थिति का मुकाबला करने से नहीं घबराता है। आइए जानते हैं गीता के उन प्रमुख श्लोकों को जो आज भी हमें मुश्किल समय में सही राह दिखाने का कार्य करते हैं –
नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥
भावार्थ : आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
भावार्थ :
श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जब-जब धर्म की हानि होती है या फिर कहें लोप होता है तो मैं प्रकट होता हूं, जब-जब अधर्म बढ़ता है, तब-तब मैं सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और प्रत्येक युग में जन्म लेता हूं।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू कर्मों के फल के लिए मत करो औ न ही काम करने में भी तुम्हारी आसक्ति हो।