एजेंसी/ सिगरेट, बीडी और दूसरे तम्बाकू प्रोडक्ट्स के पैकेट्स के 85 फीसदी हिस्से पर वैधानिक चेतावनी छापने संबंधी केंद्र सरकार की अधिसूचना पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने देशभर की अदालतों में चल रहे सभी 27 मामलों को कर्नाटक हाईकोर्ट में स्थानांतरित किए जाने के आदेश भी जारी किए हैं.
जस्टिस पीसी घोष की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट सभी मामलों पर एक साथ सुनवाई करते हुए मामले का निपटारा 8 हफ्ते के अन्दर करेगी. वहीं, जब तक कोर्ट इस मामले का निपटारा कर अपना अंतिम आदेश जारी नहीं कर देती, तब तक सिगरेट निर्माता कंपनियों को केंद्र सरकार की अधिसूचना के तहत सिगरेट पैकेट के 85 फीसदी हिस्से पर वैधानिक चेतावनी देनी होगी.
कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले पर रोका
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट की धारवाड़ बेंच के फैसले पर भी रोक लगा दी है. धारवाड़ बेंच ने एक मामले में केंद्र सरकार की अधिसूचना पर रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने टिपण्णी करते हुए कहा “तम्बाकू उत्पाद बनाने वाली कंपनियों की समाज की तरफ कुछ जिम्मेदारी भी है. जितना ज्यादा तम्बाकू उत्पाद के इस्तेमाल से होने वाले नुकसान को प्रचारित किया जाएगा उतना ही ज्यादा भारतीयों के जीवन को बचाया जा सकता है.”
सिर्फ तीन कंपनियां कर रही हैं पालन
गौरतलब है कि अभी तक इस आदेश का पालन केवल तीन कंपनियां ही कर रही थीं. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सिगरेट एवं तंबाकू उत्पाद बनाने वाली कंपनियों की ओर से दलील दी गई कि देश भर की अदालतों में इस मामले को लेकर अलग-अलग अदालतों में 27 याचिकाएं लंबित हैं. सभी याचिकाओं का निपटारा जल्द किया जाना चाहिए. केंद्र सरकार की अधिसूचना रद्द की जानी चाहिए, यह पूरी तरह से अव्यवहारिक है.
हर साल 10 लाख लोगों की जान लेता है तंबाकू
इस मामले में याचिकाकर्ता एक स्वयंसेवी संस्था ‘हेल्थ फॉर मिलियंस’ की ओर से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि बीएमजे ग्लोबल हेल्थ की ओर से किए गए सर्वे के मुताबिक सिगरेट पीने की लत की वजह से भारत में हर साल 10 लाख लोगों की मौत होती है. वहीं, इस मामले में वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन का कहना है कि तंबाकू उत्पादों की वजह से होने वाली बीमारियों पर भारत में सालाना 16 अरब रुपये लोगों के उपचार पर खर्च किए जाते हैं. ऐसे में केंद्र सरकार की तरफ से जारी की गई अधिसूचना बिलकुल सही है.
पिछली सुनवाई पर याचिकाकर्ता कंपनियों की ओर से दलील दी गई थी कि केंद्र सरकार ने यह निर्णय जल्दबाजी में लिया है. अगर सिगरेट या तंबाकू उत्पाद के पैकेट के 85 फीसदी हिस्से पर यह वैधानिक चेतावनी दी जाती है तो उनके लिए पैकेट पर संबंधित उत्पाद का नाम, मैन्युफैक्चरर का नाम व पता और अन्य जानकारियां छापने के लिए जगह ही नहीं बचेगी. इतना ही नहीं, केंद्र सरकार की इस अधिसूचना से उनके कारोबार पर भी असर पड़ेगा. इसलिए इस अधिसूचना को रद्द किया जाए.