दस्तक-विशेष

तब राजनेता ठेकेदार नहीं होता था

शख्सियत : राम कुमार  सिंह

shakhsiyat_ashok singhशायद यह अपने ही देश यानि भारत में ही होता होगा, जहां राजनेताओं को मुक्तकंठ से अपशब्द कहने और उनकी निन्दा करने में जरा भी हिचक नहीं होती है और जहां राजनीति को कीचड़, दलदल और काजल की कोठरी जैसी उपमाएं दी जाती हों। जहां सौ में साठ फीसदी लोग राजनेताओं को भ्रष्ट और कदाचारी मानते हों, लेकिन वास्तव में तस्वीर इसके ठीक उलट है। आज भी ऐसे राजनेता हैं जिन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य जनसेवा और समाजसेवा के लिए अर्पित करने का निर्णय लिया था। हालांकि इससे रोटी-रोजी हासिल करने की बात तो उन्होंने कभी सोची ही नहीं, जैसी कि आज के दौर में खादी पहनकर लोग करते हैं। उनके पास अपना परिवार पालने के लिए और भी जरिए थे। साथ ही यह न तो जरूरी था और न ही बाध्यता कि वे जनसेवा जैसा कोई कठिन प्रण अपने जीवन में करते, लेकिन उन्होंने किया और आज भी उसे बखूबी निभा भी रहे हैं। ऐसे ही एक राजनेता हैं देश के सबसे बड़े प्रदेश उप्र के अशोक सिंह। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार के वंशज अशोक सिंह को किसी ने बाध्य नहीं किया कि वे जनसेवा के लिए राजनीति में कदम रखें। वर्तमान में वे राष्ट्रीय जनता दल की यूपी इकाई के मुखिया हैं और वे अब भी इस बात पर कायम हैं कि वे किसी सदन के माननीय सदस्य कहलाने मात्र के लिए राजनीति में नहीं आये थे। हालांकि उनके दादा यानि पिता के पिता स्व. ठाकुर गुप्तार सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम के बाद बकायदा विधानसभा में अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी (1952 से 1972 तक) किया। उनके पिता की राजनीति में कोई रुचि नहीं थी बल्कि उनकी प्राथमिकता समाज को शिक्षित करने में थी, इसलिए उन्होंने शिक्षण कार्य को चुना।

कांग्रेसी विचारधारा से ओतप्रोत परिवार में आजादी के बाद तीन फरवरी 1957 को उप्र के रायबरेली जिले की लालगंज तहसील के सरैनी ब्लाक के रामपुर कला गांव में जन्मे अशोक सिंह ने जब राजनीति में कदम रखा तो उनके आदर्श रहे राजा माण्डा यानि विश्वनाथ प्रताप सिंह यानि वीपी सिंह, जिन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत भी कांग्रेस से की थी लेकिन बाद में पार्टी से मतभेद होने के बाद वे अलग हुए और देश के प्रधानमंत्री बने। चूंकि अशोक सिंह ने सदैव वीपी सिंह की राह पर चलने का प्रण कर रखा था इसलिए उन्होंने भी कांग्रेस को अलविदा कह दिया। हालांकि कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने 1975-76 में यूथ कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करने के साथ ही 1985 में बीस सूत्री कार्यक्रम के उपाध्यक्ष पद पर भी रहे। लेकिन वीपी सिंह की प्रेरणावश उन्होंने 1989 में अपना पहला विधानसभा चुनाव रायबरेली जिले की सरैनी सीट से जनता दल के टिकट पर लड़ा। लेकिन मात्र एक हजार मतों से वे कांग्रेस के हाथों हार कर विधानसभा के सदन तक पहुंचने से चूक गए। यह भी सच ही था कि उन्हें विधानसभा अथवा संसद का सदस्य बन जाने की कोई लालसा नहीं थी। इसके बाद उन्होंने 1996 में एक बार फिर जनता दल के टिकट पर रायबरेली लोकसभा सीट पर ताल ठोंकी। लेकिन इस बार भी वे अपने नामाराशि भाजपा प्रत्याशी अशोक सिंह से चुनाव रण हार गए।
कभी भी छात्रसंघ चुनाव न लड़ने वाले अशोक सिंह परदे के पीछे रहकर कई युवा नेताओं को छात्रसंघ का चुनाव जिताने में सफल भूमिका निभाई। 1997 में जब जनता दल में फूट हुई और शरद यादव व लालू यादव अलग हुए तो अशोक सिंह ने एक बार फिर अपने नेता वीपी सिंह के निर्देश पर लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल का हाथ थामा और दल के राष्ट्रीय महासचिव बने। साथ ही उनके पास युवा प्रकोष्ठों का प्रभार रहा। इस दौरान उन्होंने नार्थ ईस्ट के मणिपुर में अपनी रणनीति के आधार पर चुनावी मैदान में ताल ठोंकी। यहां राजद ने 14 प्रत्याशी मैदान में उतारने के साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री नीपा माचा सिंह को दल का हिस्सा भी बनाया। यह अशोक सिंह का ही चुनावी रणकौशल था कि उन्होंने अंजान प्रदेश में 14 में चार सीटों पर कब्जा जमाया। इसके बाद नागालैण्ड और फिर बंगाल की एक सीट पर चुनाव लड़ाया और जीत भी हासिल की। इसी तरह दिल्ली प्रदेश की ओखला सीट भी लड़कर जीती। इतना ही नहीं, पोर्ट ब्लेयर में कारपोरेशन के चुनाव में ताल ठोंकी और 17 में से सात पार्षद जिताये।
विभिन्न केन्द्रीय समितियों तथा विदेश भ्रमण करने वाले प्रतिनिधिमण्डलों के सदस्य रहे शाकाहार प्रिय अशोक सिंह इतना सब कुछ हासिल करने के बाद भी बेदाग छवि के नेता माने जाते हैं।
इस सन्दर्भ में बात करने पर वे कहते भी हैं कि पहले राजनेता सिर्फ राजनीति पर ही चर्चा करते थे और इस चर्चा में ही जनहित छिपा होता था लेकिन आज सब कुछ आर्थिक हो गया है। तब राजनेता ठेकेदार नहीं होता था और न ही उसके सगे संबंधी। वह सिर्फ अपने वाह्य अंगों को ही मजबूत करता था। परन्तु अब नेता पहले अपना आर्थिक पक्ष मजबूत करने में जुट जाता है। इसीलिए राजनेताओं की सेकेण्ड व थर्ड लाइन आर्थिक पक्ष के पीछे अधिक भाग रही है। सभी के निशाने पर ठेका, पट्टा हैं। अब के राजनेताओं में पैसे की हवस हो गयी है। वे कहते हैं कि उन्होंने धन कमाने के लिए राजनीति में कदम नहीं रखा था। एक जमाना वह भी था जब वे वीपी सिंह के साथ एक ही कार में बैठकर उस समय राष्ट्रपति भवन तक गये थे जब राजा साहब को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलायी जानी थी। उनके पीएम बनने के बाद भी अशोक सिंह का पीएमओ आना जाना कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी। वे जब चाहते नि:स्वार्थ भाव से आते-जाते थे। आईएएस पत्नी के साथ 1987 में फेरे लेने के बाद गृृहस्थ आश्रम में प्रवेश करने वाले अशोक सिंह कहते हैं कि जनसेवा और राजनीति करने में उन्हें उनकी पत्नी ने भरपूर सहयोग दिया।
राजनीति में कदम रखने वाले युवाओं को संदेश देते हुए अशोक सिंह कहते हैं कि धैर्य, निष्ठा, लगन, विश्वसनीयता ये सब चीजें राजनीति में खो गयी हैं। इसे कायम रखना जरूरी है, साथ ही भावी राजनेताओं की सोच आर्थिक नहीं बल्कि राजनैतिक होनी चाहिए। वे उदाहरण देते हुए कहते हैं कि राजद जिसके कि वे प्रदेश अध्यक्ष हैं, आज भी उनका प्रदेश पार्टी कार्यालय सहकारिता के सिद्धान्त पर चलता है। जहां रोज शाम को चना-चबेना का खर्च कोई तो कार्यालय के कर्मियों का वेतन चंदे से जुटाया जाता है।

ताजा राजनैतिक घटनाक्रम पर राजद नेता अशोक सिंह से बातचीत के कुछ अंश-
दस्तक टाइस्स-पिछले दिनों छह दलों के बीच आपस में विलय कर एक दल बनाने पर सहमति हुई, इसे आप कैसे देखते हैं?
अशोक सिंह- सभी छह दलों की विचारधारा एक है। भाजपा और उसके मुखिया नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह लोकसभा का चुनाव लड़ा और आम जनता को ठगा, उसके बाद सभी ने एक मंच पर आने की सोची। अब सभी एक झंडे, एक निशान और एक पार्टी बन गए हैं। जल्द ही दल का नाम, झण्डा और निशान निर्वाचन आयोग की औपचारिकतायें पूरी करने के बाद सबके सामने आ जायेगा। समाजवादी विचारधारा के लोगों के बीच जब-जब एकता होती है, सफलता कदम चूमती है। यह एका भी बहुत सफल होगा।

दस्तक टाइम्स- सभी दलों ने मुलायम सिंह यादव पर ही एका की जिम्मेदारी क्यों सौंपी?

अशोक सिंह- मुलायम सिंह यादव पर सभी की आस्था है। वे सबको जोड़कर चलने वाले नेता हैं। साथ ही वे जो कहते हैं, वो करते हैं। मुख्यमंत्री व केन्द्रीय मंत्री तक का अनुभव उनके पास है और उनकी देश में एक पहचान है। दल के अन्य लोगों लालू यादव, नीतीश कुमार व शरद यादव की भी राष्ट्रीय स्तर पर नाम और पहचान है।

दस्तक टाइम्स- मोदी से एक साल के भीतर ही इतनी नाराजगी हो गयी या फिर उनकी आंधी का डर था, इस एका के पीछे?

अशोक सिंह- नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। उनकी कोई आंधी-वांधी नहीं है। दरअसल नरेन्द्र मोदी ने पूरा चुनाव ‘ग्लैमराइज’ करके लड़ा। हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार, महंगाई व भ्रष्टाचार पर काबू तथा काले धन की वापसी जैसे झूठे वादे किए। छह दलों के एक झण्डे के नीचे आने और मुलायम सिंह यादव का नेतृत्व के जरिए सबसे पहले इसी साल अक्टूबर में बिहार विधानसभा चुनाव में मोदी का दम्भ टूटेगा। उसके बाद उप्र में।

दस्तक टाइम्स- बिहार में संभव है इस एकता का लाभ मिले और जनता परिवार एक बार फिर सत्तासीन हो, लेकिन क्या यही बात यूपी में लागू हो सकेगी?

अशोक सिंह-क्यों नहीं, उप्र सरकार ने अखिलेश यादव के नेतृत्व में इतने कम समय में जो उपलब्धियां हासिल की हैं, वैसी किसी भी प्रदेश की सरकार ने नहीं की। उन्होंने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि आने वाले दो सालों में यूपी में अद्भुत तरह से उन्नति होगी। बिहार चुनाव के बाद लालू, नीतीश, शरद, मुलायम, अखिलेश, शिवपाल सभी मिलकर सरकार की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए जुटेंगे।

दस्तक टाइम्स- पर, अखिलेश सरकार की कानून-व्यवस्था को लेकर जबरदस्त आलोचना होती है। फिर कैसे इतिहास दोहराया जा सकेगा?

अशोक सिंह- कोई और नहीं बल्कि सत्तापक्ष का झण्डा लगाकर घूम रहे गुण्डे बदमाश ही सरकार की छवि खराब कर रहे हैं। इन्हीं लोगों ने वातावरण खराब कर दिया है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अब ऐसे लोगों पर लगाम लगाने की ठान ली है और इसके परिणाम भी जल्द ही दिखने लगेंगे।

स्तक टाइम्स- आप पहले बिहार और फिर यूपी में समाजवादियों की जीत के प्रति आश्वस्त हैं?

अशोक सिंह-बिल्कुल, इसके पीछे कारण भी है। बिहार जीतने के सपने देख रही भाजपा अभी तक वहां अपना मुख्यमंत्री तक तय नहीं कर पायी है। दरअसल उनके पास वहां कोई चेहरा है ही नहीं। यही हाल यूपी में है। जहां चेहरे होते हैं, वहां ही विश्वसनीयता होती है। कांग्रेस व भाजपा के पास ‘वैक्यूम’ है।
दस्तक टाइम्स- अब जबकि सभी एक मंच पर आ गए हैं और आप राजद के प्रदेश अध्यक्ष हैं तो 2017 में आपकी भूमिका क्या होगी?
अशोक सिंह- यह तो पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर निर्भर है, वे जहां और जैसा मेरा उपयोग करना चाहें। मैं हर परिस्थिति के लिए तैयार हूं। (साथ में जितेन्द्र शुक्ला ‘देवव्रत’)

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