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ताहिर अहमद: हर तलाक के बाद 90 दिन का समय होता है रजामंदी के लिए

अमृतसर.इस्लाम में तीन तलाक के मुद्दे पर इस समय पूरे देश में बहस छिड़ी हुई है। जिसे इस्लाम की समझ और जिसे नहीं है, दोनों ही तरह के लोग आए दिन अपनी राय सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं। लेकिन इसी बीच अहमदिया मुस्लिम जमात भी कुरान के अनुसार तलाक को सही ठहरा रहा है। लेकिन उनका कहना है कि जिस तरह से तलाक को इस समय लोगों के सामने रखा जा रहा है, वे गलत है। कुरान में जहां पुरुषों को तलाक देने का अधिकार है, वहीं महिलाएं भी खुलअ दे सकती हैं। महिलाओं को यह भी अधिकार है कि खुलअ देते समय उन्हें इसके कारणों के बारे में भी नहीं पूछा जाता। इसके अलावा तीन तलाक केे बजाए मात्र एक बाद खुलअ देने पर महिलाएं पति से अलग होे सकती हैं। ये है मुस्लिमों में तलाक का मतलब…
 
मिशनरी ऑफ अहमदिया मुस्लिम अमृतसर के मिशनरी ताहिर अहमद शमीम ने बताया कि अलबकरा 229 के अनुसार महिलाओं का पुरुषों पर उतना ही अधिकार है, जितना पुरुषों का उन पर। वहीं अलबकरा 230 के अनुसार एक साथ तीन बार तलाक, तलाक, तलाक कहना एक ही बार गिना जाएगा। तलाक देने वाला पुरुष होश में हो और क्रोध से खाली होकर दो गवाहों की उपस्थिति में तलाक दे तभी वह तलाक माना जाएगा। लेकिन पहली बार ऐसा होने पर भी पुरुष महिला को छोड़ नहीं सकता। उन्हें तीन माह इकट्ठा रहना होगा। तीन माह के अंदर अगर सलाह नहीं होती तो उसे पत्नी को उसके मायके छोड़कर आना होगा और इसे पूर्ण तलाक माना जाता है। अगर 90 दिनों में दोनों के बीच सलाह हो जाती है तो बिना किसी की दखलअंदाजी के वे इकट्ठे रह सकते हैं। ऐसा दूसरी बार तलाक देने के बाद भी होता है। लेकिन अगर पति तीसरी बार तलाक शब्द का प्रयोग कर लेता है तो इस स्थिति में महिला अब अपने पति के पास वापिस नहीं सकती और तीन माह की प्रक्रिया से भी उसे नहीं गुजरना होगा।
 
हलाला का सही अर्थ नहीं जान पा रहे लोग…
तीनबार तलाक प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद पत्नी अपने पति के पास नहीं जा सकती। ऐसे में महिला किसी अन्य व्यक्ति से विवाह कर सकती है। लेकिन दूसरे पति के तलाक देने या उसके मर जाने के बाद चाहे तो पहला पति उससे दोबारा निकाह कर सकता है। इस पूरी प्रक्रिया को हलाला कहा जाता है। अब जिस तरह से हलाला को दिखाया जा रहा है या इसका प्रयोग किया जा रहा है, वे कुरान के अनुसार पूरी तरह से गलत है।

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