रायपुर। पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर में नागार्जुन दर्शन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के तीसरे और समापन क दिन देश के 23 विश्वविद्यालय के 5० विद्वानों ने हिस्सा लिया। अंतिम और समापन सत्र के विशेष आकर्षण तिब्बत के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा रहे। उन्होंने आत्मा एवं मोक्ष संबंधी दार्शनिक अवधारणा की विवेचना शून्यवाद के परिपे्रक्ष्य में किया। आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने कहा संपूर्ण विश्व में मानवता एवं सहिष्णुता का वातावरण बने और हम दोषारोपण की प्रवृत्ति को इससे दूर कर पाएं यही भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। ध्यान से हम आत्मा एवं शारीरिक विकृति को दूर कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि जितने भी महान दार्शनिक एवं चिंतक हुए वे सभी भारतीय थे। हम सभी तिब्बती भारत को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते हैं। दलाई लामा ने सभा का संबोधन भाई-बहनों से करते हुए भाई-चारे का संदेश दिया और कहा कि हम सभी पहले मानव बने और मस्तिष्क और हृदय का संबंध करुणा से है और यही मानवता का प्रथम सोपान है। एक बच्चा जब मां की गोद में रहता है तो वह अपने आपको अत्यंत सुरक्षित महसूस करता है वह जैसे ही मां की गोद से अलग होता है तो असुरक्षित महसूस करने लग जाता है। इसी असुरक्षा के भाव से अनेक विकार उत्पन्न होने लगते हैं। इस स्थिति को दूर करने के लिए प्रेम और स्नेह की शिक्षा दी जाए। इस सत्र के प्रमुख वक्ताओं में लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो. एस.एल. कपूर बीएचयू (वाराणसी) के प्रो. सीताराम दुबे दिल्ली विवि के प्रो. एच.डी. प्रसाद रहे और इनके साथ-साथ अन्य 1० वक्ताओं ने अपना शोध-पत्र भी प्रस्तुत किया। इस सत्र में विशिष्ट अतिथि पर्यटन मंत्री अजय चंद्राकर थे। उन्होंने संगोष्ठी को अत्यंत प्रासंगिक बताया और नागार्जुन के माध्यम से छत्तीसगढ़ का प्राचीन गौरव एवं संस्कृति प्रकांिशत होगा जिससे यहां के पर्यटन को बढ़ावा मिलगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय प्रो. शिव कुमार पांडेय ने की। अन्य गणमान्य अतिथियों में सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ तिब्बती अध्ययन के कुलपति प्रो. ग्वांग सेंटेन महापौर किरणमयी नायक एवं विश्वविद्यालय के कुलसचिव के.के. चंद्राकर थे।