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दलित आंदोलन पर कांग्रेस-सरकार में आर-पार, अब सुप्रीम कोर्ट पर सभी की निगाहेंदलित आंदोलन पर कांग्रेस-सरकार में आर-पार, अब सुप्रीम कोर्ट पर सभी की निगाहें

अनुसूचित जाति एवं जनजाति एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में दलित संगठनों के भारत बंद के दौरान सोमवार को जब जमकर तांडव मचा तो सरकार के मानो कान खड़े हो गए. दलितों के गुस्से को शांत करने के लिए हालांकि सरकार सोमवार को ही पुनर्विचार याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई.

सूत्रों का कहना है कि मंगलवार को अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल रिव्यू पिटीशन पर सुप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई करने की गुहार लगाएंगे. गौरतलब है कि सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को तत्काल सुनवाई करने से साफ इनकार कर दिया था. हालांकि कोर्ट पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करने को तैयार है. दरअसल, केंद्र सरकार ने रिव्यू पीटीशन में सुप्रीम कोर्ट से पूर्व की स्थिति को बहाल करने की मांग की है.

जिसके तहत एससी/एसटी ऐक्ट के तहत कोई भी अपराध गैर-जमानती श्रेणी में माना जाएगा. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस ऐक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी ना करने का आदेश दिया था. इसके अलावा एससी/एसटी ऐक्ट के तहत दर्ज होनेवाले मामलों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दे दी थी. दलित संगठन इसी फैसले का विरोध कर रहे हैं.

कांग्रेस इस हालात के लिए मोदी सरकार को दोषी ठहरा रही है, कांग्रेस के मुताबिक सरकार ने सर्वोच्च अदालत में ठीक से पैरवी नहीं की. हालांकि बीजेपी इससे सहमत नहीं है.

कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि अगर सरकार पहले ही सुप्रीम कोर्ट चली जाती तो आज जो हुआ वो नहीं होता. आजाद केंद्र सरकार को दलितों के हित को लेकर कोई रुचि नहीं है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट की बजाय सरकार के कारण ये SC-ST एक्ट कमजोर हुआ. अटॉर्नी जनरल को भेजते तो ऐसा नहीं होता. बहरहाल, सामाजिक न्याय मंत्रालय की तरफ से जारी पुनर्विचार याचिका में सरकार ने केस को पुख्ता तरीके से पेश किया है.

मामले में सरकार ने कहा है कि SC/ST एक्ट पर जिस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला दिया है उसमें सरकार पार्टी नहीं थी. मंत्रालय ने कहा है कि क़ानून बनाना सुप्रीम कोर्ट का नहीं बल्कि संसद काम है.

– पहला, मौलिक अधिकार का हनन हों.

– दूसरा, कानून गलत बनाया गया हो.

– तीसरा, अगर कोई कानून बनाने का अधिकार संसद के अधिकार क्षेत्र में ना आता हो.

सरकार की ये भी दलील हैं कि कोर्ट ये नहीं कह सकता हैं कि कानून का स्वरूप कैसा हो क्योंकि कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है. साथ ही किसी भी कानून को सख़्त बनाने का अधिकार भी संसद के पास ही है.

समसामयिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कैसा कानून बने ये संसद या विधानसभा तय करती है. जाहिर है सरकार पुख्ता तरीके से अपना रुख साफ कर दिया है. उधर, अखिल भारतीय एससी-एसटी फेडरेशन ने भी सोमवार को एक अर्जी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर दी. कल की हिंसा, हंगामे और बवाल के बाद अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर हैं कि आज कोर्ट पुनर्विचार याचिका पर क्या तय करती है.

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