एजेंसी/ नई दिल्ली। दिल्ली एमसीडी के 13 सीटों पर हुए उपचुनाव में भले ही आम आदमी पार्टी नंबर वन रही हो, लेकिन उसके लिए खतरे की घंटी भी है। संदेश ये है कि उसके लिए आगे की राह आसान नहीं है। इन नतीजों ने निश्चित ही आप नेताओं की आंखें खोल दीहोंगी। आप ने बढ़चढ़ कर दावे किए थे, लेकिन उसके हाथ 13 में से 5 सीटें ही आईं। अब भले ही आप नेता बधाई भरे ट्वीट करते रहें, नतीजे सुकूनभरे नहीं हैं।
2015 विधानसभा चुनाव में आप ने प्रचंड बहुमत हासिल कर 70 में से 67 सीटें हासिल की थीं। उम्मीद थी कि एमसीडी उपचुनाव में भी आप क्लीन स्वीप करेगी। लेकिन यहां पर कांग्रेस ने चौंकाते हुए 4 सीटें हासिल कर लीं। बीजेपी के हिस्से में 3 सीटें ही आईं। आप 5 सीटों पर जाकर अटक गई। आखिर कहां चूक गई आप। शायद ही किसी ने आप के ऐसे प्रदर्शन की उम्मीद की होगी। तो क्या दिल्ली में 2014 विधानसभा चुनाव में आया अरविंद केजरीवाल नाम का तूफान मंद पड़ रहा है?
दिल्ली एमसीडी के 13 सीटों पर हुए उपचुनाव में भले ही आम आदमी पार्टी नंबर वन रही हो, लेकिन उसके लिए संदेश भी है। आप ने बढ़चढ़ कर दावे किए थे लेकिन उसके हाथ 13 में से 5 सीटें ही आईं।
आखिर क्या वजह थी कि आधा बिजली बिल और मुफ्त पानी जैसे लोकप्रिय फैसले भी उसे अपेक्षित कामयाबी नहीं दिला पाए। कांग्रेस ने तो लगभग उसे पीछे कर ही दिया था। उपचुनाव के ये नतीजे पार्टी के लिए सबक है कि संभल जाओ नहीं तो औंधे मुंह गिरोगे। 2017 में दिल्ली में निगम चुनाव होने हैं, अगर पार्टी नहीं संभली तो झटका लगना तय है।
इन नतीजों ने साफ कर दिया है कि आप के लिए मैदान साफ नहीं है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों उसे चुनौती देने की स्थिति में हैं। इन्हें हल्के में लेने की कतई भूल ना करे। संदेश ये भी है कि सिर्फ शिकायतों का अंबार लगाने से काम नहीं चलेगा, न ही समस्याओं के लिए दूसरों को दोषी ठहराने से बात बनेगी। जनता ने अगर मौका दिया है तो उम्मीदों पर खरा भी उतरना होगा। सिर्फ लोक लुभावन फैसले से पार्टी की तकदीर नहीं बदल सकती। अपना तरीका भी बदलना होगा।