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‘देश की एकता’ के सूत्रधार थे सरदार पटेल, यूं ही नहीं बन गए थे लौह पुरुष!

मुंबई| अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई से लेकर एकीकृत भारत के निर्माण में सरदार वल्लभभाई पटेल का अहम योगदान रहा है. लौह पुरुष के नाम से मशहूर सरदार पटेल ने युवावस्था में ही राष्ट्र और समाज के लिए अपना जीवन समर्पित करने का निर्णय लिया था. इस ध्येय पथ पर वह नि:स्वार्थ भाव से लगे रहे. 31 अक्टूबर 1875 को उनका जन्म हुआ था और वे साल 1950 में 15 दिसम्बर के दिन दुनिया से रुखसत हुए थे.
'देश की एकता' के सूत्रधार थे सरदार पटेल, यूं ही नहीं बन गए थे लौह पुरुष!

सरदार पटेल पेशे से वकील थे और पूरी लगन और ईमानदारी से वकालत करते थे. एक बार जब वह जज के सामने जिरह कर रहे थे, तभी उन्हें एक टेलीग्राम मिला, जिसे उन्होंने देखा और जेब में रख लिया. तार में उनकी पत्नी के निधन की सूचना थी. उन्होंने पहले अपने वकील धर्म का पालन किया, उसके बाद घर जाने का फैसला लिया. वे 1917 में स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े. उनके लिए राष्ट्र हमेशा से ही सर्वोपरि था. देश को आजाद करने में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया. वे राजनीति के साथ-साथ कूटनीति में भी माहिर माने जाते थे.

आइए जानते हैं कि आखिर सरदार पटेल को लौह पुरुष क्यों कहा जाता था.

हमेशा लोगों से जुड़े रहे

थोड़ी सी सफलता और प्रसिद्धि मिलते ही कई लोग बदल जाते हैं. कई बार लोग अपना अतीत भूल जाते हैं. मगर सरदार पटेल ने हमेशा अपना अतीत याद रखा. खुद एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखने के कारण वे हमेशा ही देश की आम जनता के सुख-दुख में भागीदार रहे.

देश की एकता को सर्वोपरि माना

आजादी के बाद देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती इतनी रियासतों को एक रखने की थी. सरदार पटेल ने बड़ी कुशलता से एकीकरण का कार्य संपन्न कराया. इसमें उनका लौहपुरुष व्यक्तित्व दिखाई देता है. उन्होंने देशी रियासतों की कई श्रेणियां बनाईं. सभी से बात की.अधिकांश को सहजता से शामिल किया. कुछ के साथ कठोरता दिखानी पड़ी. सेना का सहारा लेने से भी वह पीछे नहीं हटे.

संविधान निर्माण में योगदान

संविधान निर्माण में भी उनका बड़ा योगदान था. इस तथ्य को डॉ. अंबेडकर भी स्वीकार करते थे. सरदार पटेल मूलाधिकारों पर बनी समिति के अध्यक्ष थे. इसमें भी उनके व्यापक ज्ञान की झलक मिलती है. उन्होंने अधिकारों को दो भागों में रखने का सुझाव दिया था. एक मूलाधिकार और दूसरा नीति-निर्देशक तत्व.

सच्चे मित्र

सरदार पटेल दोस्तों के लिए जान देने वाले व्यक्ति थे. 1930 में गुजरात में प्लेग फैला तो वो अपने पीड़ित मित्र की सेवा में लग गए. लोगों ने उन्हें ऐसा करने से मन किया था मगर वह नहीं रुके. परिणामस्वरूप वे भी इस बीमारी की चपेट में आ गए.

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