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नागपुर के दीयों की देश-विदेश में धूम, दुबई और ऑस्ट्रेलिया में हो रहे हैं एक्सपोर्ट

दस्तक टाइम्स/एजेंसी- महाराष्ट्र:
b1_1446686616नागपुर. दीपावली पर्व के लिए शहर में कोलकाता और अहमदाबाद के दीयों की खासा मांग हो रही है, जबकि अमरावती मार्ग स्थित नागपुर तहसील के ​व्याहाड पेठ और कालडोंगरी पेठ कुम्हार कारीगरों के हाथों तैयार किए गए दीये देश ही नहीं विदेशों में भी धूम मचाए हुए हैं। उनकी मांग बराबर बनी रहती है। इस गांव में अमूमन 50 घर होंगे, जिसमें 40 घर कुम्हारों के हैं। इस गांव के कुम्हार केवल दीप ही नहीं बल्कि दीपावली के दौरान कलश, पंच व सप्त दीप, कछुए का मैजिक दीप, लक्ष्मीपाद, लालटेन और इसी तरह के विभिन्न दीये तैयार करते हैं। इसके बावजूद इन स्थानीय कलाकारों के विकास के प्रति शासन-प्रशासन का रवैया उदासीन है। इन कलाकारों को अपने उत्पाद बनाने के लिए जरूरी मिट्टी प्राप्त करने में भी कड़ा संघर्ष करना पड़ता है।
दो दशक से मिट्टी के लिए संघर्ष : गांव के वरिष्ठ कुम्हार व टेराकोटा, हस्तकला और शिल्पज्ञ मोतीराम खांदारे हाथ से चाक घुमानेवाले दौर से लेकर आधुनिक सौर ऊर्जा आधारित चाक तक के आधुनिक युग का सफर तय कर चुके हैं। श्री खांदारे दीये बनाते हुए कहते हैं कि दो दशक बीत गए, लेकिन गांव के कुम्हारों की मिट्टी प्राप्त करने की समस्या अब तक खत्म नहीं हुई है। पहले गांव के पास से ही आष्टी-निमजी परिसर के 50 एकड़ जमीन से मिट्टी लाई जाती थी। यहां बेहतरीन मिट्टी िमलती थी। लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहराव के दौर में झुड़पी जंगल का नियम बनने से यह जमीन वनाधिकार क्षेत्र में चली गई। अब कुम्हार इस मिट्टी के लिए तरसते हैं। किसी को यहां से मिट्टी लाते हुए पकड़े जाने पर 30 हजार रुपए तक जुर्माना भरना पड़ता है। तीन साल पहले वर्धा में आयोजित प्रदर्शनी के दौरान तत्कालीन विधायक देवेंद्र फडणवीस को भी बताया गया था। जिस पर उन्होंने सरकार आने पर समस्या हल करने का आश्वासन दिया था, लेकिन सरकार बदलने के बाद भी कोई राहत नहीं है।
 
कुंए और नालियों से लाते हैं मिट्टी
 
श्री खांदारे बताते हैं कि वर्तमान में उन्हें दीये तैयार करने लायक मिट्टी पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। कुम्हार कुंए से लेकर नालियों से निकलने वाली मिट्टी तक लेने पर मजबूर हो रहे हैं। वन विभाग से भी इस संबंध में रियायत देने के लिए निवेदन िकया गया, लेकिन उचित मार्गदर्शन के आभाव में सही विभाग को ज्ञापन आज तक नहीं दे पाए।
 
विशेष तकनीक बनाती है खास
 
श्री खांदारे तीन घंटे से लेकर सात घंटे तक जलने वाले दीप तैयार करते हैं। वे कहते हैं कम तेल पीने वाले इन दीयों के लिए विशेष तकनीक व मिट्टी गोड़ने की प्रक्रिया विशेष मायने रखती है। मिट्टी को इस ढंग से छान कर गूंथा जाता है कि वह अधिक तेल ना पीये और दीये को अधिक देर तक तेल की आपूर्ति होती रहे।

 

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