पत्नी के पास हमेशा बना रहता है गुजारा-भत्ता मांगने का अधिकार: उच्च न्यायालय
बंबई उच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा है कि अगर कोई महिला अपने पति से गुजाराभत्ता पाने के अधिकार को छोड़ भी देती है तो भी आपराधिक दंड प्रक्रिया के तहत यह मांग करने का उसका अधिकार बरकरार रहता है.
न्यायाधीश एम एस सोनाक ने पिछले सप्ताह एक फैसले में कहा कि पत्नी को गुजाराभत्ता दिलाने वाली सीआरपीसी की धारा 125 को जनहित में जोड़ा गया है.
महाराष्ट्र के सांगली के एक निवासी की ओर से दाखिल याचिका पर उच्च न्यायालय सुनवाई कर रहा था. यचिका में निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें परित्यक्त पत्नी को गुजाराभत्ता देने को कहा गया था.
याचिका के अनुसार, एक दंपति ने 2012 में एक लोक अदालत में विवाह संबंध समाप्त करने के लिए एक संयुक्त याचिका दाखिल की थी. उन्होंने एक दूसरे से गुजाराभत्ता का दावा करने का अधिकार छोड़ने के लिए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर भी किए थे.
घटना के एक साल बाद पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम तथा सीआरपीसी के तहत कार्रवाई शुरू करते हुए दावा किया कि उसके पति ने गलत तरीके से उससे सहमति हासिल कर ली थी. साथ ही महिला ने पति से प्रति माह गुजारा भत्ता की मांग की.
मजिस्ट्रेट और सत्र अदालत ने महिला की याचिका बरकरार रखी जिसके बाद याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय की शरण ली. उसने दावा किया कि पत्नी ने पहले अपनी मर्जी से गुजाराभत्ता का अधिकार छोड़ दिया था. इस पर न्यायमूर्ति सोनाक ने यह फैसला सुनाया.