ज्ञान भंडार

पाकिस्तान के बाद अब चीन को घेरने में जुटा भारत

17_49_345719686india-china-llनई दिल्ली  :चीन बीते कुछ समय से भारत के कई मामलों में अडंगा लगा चुका है। चाहे वह जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया मसूद अजहर को आतंकी घोषित करने के भारतीय प्रस्ताव का चीन का संयुक्त राष्ट्र में विरोध करना हो या न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत की एंट्री का विरोध। लेकिन अब लगता है कि भारत ने इस पर ‘बदला’ लेने का फैसला कर लिया है। चीन की वजह से ही भारत मसूद अजहर को आतंकी घोषित करान में असफल हो गया और भारत को अभी तक न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में एंट्री नहीं मिल पाई। लेकिन अब भारत चीन से बदला लेने मूड में है।

खबरों के मुताबिक भारत ने पिछले महीने ही सिंगापुर को प्रस्ताव दिया था कि दोनों देशों को इंटरनैशनल ट्रिब्यूनल के जुलाई में दिए उस फैसले पर टिप्पणी करनी चाहिए जिसमें उसने दक्षिण चीन सागर पर चीन के ‘ऐतिहासिक’ दावे को खारिज किया था। भारत का यह प्रस्ताव सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सेन लुंग की यात्रा से पहले तैयार किया गया था। सिंगापुर ने हालांकि इस प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया था। इस प्रस्ताव में अंतरराष्ट्रीय कानूनों को न मानने के चीनी रवैये का कड़ा विरोध करने की बात थी। चीन ने हालांकि परमाणु अप्रसार संधि पर भारत द्वारा हस्ताक्षर न किए जाने की बात को आधार बनाकर ही एनएसजी में उसकी दावेदारी का विरोध किया था।

सिंगापुर हालांकि दक्षिण चीन सागर के हिस्से का दावेदार नहीं है। इसने इस विवाद में चीन, वियतनाम, मलयेशिया, फिलीपीन्स और ब्रूनेई आदि किसी का भी पक्ष नहीं लिया है। इसी वजह से उसने भारत का प्रस्ताव ठुकरा दिया, क्योंकि वह किसी देश विशेष का नाम नहीं लेना चाहता था। भारत अब ट्रिब्यूनल के फैसले सहित उन कई मुद्दों पर चर्चा कर रहा है जिन्हें चीन ने खारिज कर दिया था। इस मुद्दे पर अगले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापानी प्रधानमंत्री शिनजो बे की मुलाकात के बाद दोनों देश एक संयुक्त बयान भी जारी करेंगे।

भारत वियतनाम के साथ सितंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के बाद जारी किए गए संयुक्त बयान को उदाहरण बनाकर इसी तरह के दस्तावेज क्षेत्र के अन्य देशों के साथ भी तैयार करना चाहता है।

वियतनाम के साथ जारी किया गया दस्तावेज कई मामलों में महत्वपूर्ण था, क्योंकि इसमें पानी व हवाई जहाजों के नेविगेशन के साथ अंतरराष्ट्रीय कानूनों के प्रति सम्मान दिखाने की बात कही गई थी। साथ ही अंतरराष्ट्रीय ट्रिइब्यूनल के 12 जुलाई 2016 के फैसले का भी जिक्र किया गया था।

 

Related Articles

Back to top button