दस्तक टाइम्स/एजेंसी: कोटा. पैर में गैंगरीन से पीड़ित 50 वर्षीय इरशाद को जो दर्द बीमारी ने दिया, उससे ज्यादा दर्द अस्पतालों की व्यवस्था दे रही है। समाजसेवी इमरान कुरैशी ने 10 दिन पहले उन्हें एमबीएस में भर्ती करवा तो उन्हें जयपुर एसएमएस में रैफर कर दिया गया। एसएमएस के डॉक्टरों ने कहा पैर काटना पड़ेगा और ये काम तो कोटा में ही हो जाएगा, इसलिए वहीं चले जाओ। परिजन उन्हें लेकर वापस एमबीएस पहुंचे। यहां कहा गया कि इसके डॉक्टर नहीं है।
अहमदाबाद जाना पड़ेगा। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण वहां जाने की बजाय वे निजी अस्पताल में चले गए। जहां दो-तीन दिन में काफी खर्च हो गया तो उन्हें नए अस्पताल भेज दिया। शनिवार की दोपहर 3.30 बजे परिजन उन्हें लेकर नए अस्पताल पहुंचे। वहां ड्यूटी डॉक्टरों ने यह कहते हुए भर्ती करने से मना कर दिया कि हमारे पास इस मर्ज का डॉक्टर ही नहीं है तो भर्ती करके क्या करेंगे, ले जाओ इसे। शाम 7.30 बजे परिजन उसे वापस घर ले गए।
आउटडोर का समय बीत जाने के बाद मरीज को एमबीएस अस्पताल या न्यू मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती करवाना कोई जंग जीतने से कम नहीं है। रात हो या दिन ड्यूटी डॉक्टर मिलते नहीं और नर्सिंग स्टाफ किसी भी तरह भर्ती करने को तैयार नहीं होता। ऐसे में भले ही मरीज की हालत बिगड़ती रहे। शुक्रवार की रात को और शनिवार की शाम को दो ऐसे मामले सामने आए जिसमें मरीज को दोनों अस्पतालों के बीच भटकाते रहे, लेकिन दोनों में से कोई भी अस्पताल उसे भर्ती करने को तैयार नहीं हुआ। दोनों ही मरीजों की हालत गंभीर है। भास्कर ने जब हस्तक्षेप किया तो रात वाले मरीज को तो जैसे-तैसे नेफ्रोलॉजी वार्ड में भर्ती कर लिया गया।
रात को 4 घंटे में 22 किमी दौड़ाया, फिर किया भर्ती
गुर्दा रोग से पीड़ित चंबल कॉॅलोनी निवासी 85 वर्षीय अब्दुल रहमान की शुक्रवार रात तबीयत बिगड़ गई। नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. विकास खड़ेलिया ने भर्ती करने के लिए कह दिया। परिजन लेकर एमबीएस गए तो वहां बताया कि यहां भर्ती नहीं होंगे, नए अस्पताल ले जाओ। नए अस्पताल पहुंचे तो बताया कि एमबीएस जाओ। फिर एमबीएस गए तो कहा कि आजकल नेफ्रोलॉजी यूनिट वहीं है और खंडेलिया वहीं बैठते हैं, इसलिए वहीं जाओ।
एक बार फिर नए अस्पताल पहुंचे तो कोई ड्यूटी डॉक्टर नहीं मिला। मरीज को सांस लेने में तकलीफ होने लगी तो वे नेफ्रोलॉजी वार्ड पहुंचे। जहां नर्सिंग स्टाफ ने सीधे भर्ती करने से मना कर दिया। बहस के बाद वे कहने लगे कि डॉक्टर के साइन नहीं हैं इसलिए भर्ती नहीं कर सकते। रात 2 बजे भास्कर के पास शिकायत पहुंची। भास्कर ने हस्तक्षेप किया तब वृद्ध को भर्ती किया गया। हालत गंभीर होने पर शनिवार सुबह उन्हें आईसीयू में शिफ्ट किया गया।
कोटा में हो सकता है इलाज
नए अस्पताल के ऑर्थोपेडिक सर्जन प्रो. डॉ. राजेश गोयल के अनुसार गैंगरीन या सेप्टीसिमिया में पैर का ऑपरेशन कर काटने की व्यवस्था नए अस्पताल में है और इस तरह के केस पूरे सालभर हैंडल किए जाते हैं। कुछ मामलों में ये ऑपरेशन जनरल सर्जरी व कुछ मामलों में ऑर्थोपेडिक सर्जरी विभाग द्वारा किए जाते हैं। मरीज दोनों विभाग के किसी भी सीनियर डॉक्टर के पास आए उसका इलाज किया जाएगा।
यदि मरीज को भर्ती करने से मना किया है तो गलत है। इन दोनों समय ड्यूटी डॉक्टर व नर्सिंग स्टाफ कौन था, पता करके उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। संबंधित डॉक्टर उस समय नहीं थे तो ऑन कॉल बुलाना चाहिए था। – डॉ. सीएस सुशील, अधीक्षक, एनएमसीएच
नए अस्पताल के ऑर्थोपेडिक सर्जन प्रो. डॉ. राजेश गोयल के अनुसार गैंगरीन या सेप्टीसिमिया में पैर का ऑपरेशन कर काटने की व्यवस्था नए अस्पताल में है और इस तरह के केस पूरे सालभर हैंडल किए जाते हैं। कुछ मामलों में ये ऑपरेशन जनरल सर्जरी व कुछ मामलों में ऑर्थोपेडिक सर्जरी विभाग द्वारा किए जाते हैं। मरीज दोनों विभाग के किसी भी सीनियर डॉक्टर के पास आए उसका इलाज किया जाएगा।