कोरोना और लॉकडाउन के चलते आर्थिक संकट झेल रहे प्रवासी मजदूरों को राहत के मामले में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट केंद्र और राज्यों को निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका पर अपना फैसला सुनाएगा. जज अशोक भूषण और जज एमआर शाह की पीठ ने 11 जून को एक्टविस्ट अंजलि भारद्वाज, हर्ष मंदर और जगदीप छोकर की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
नई याचिका 2020 के एक लंबित स्वत: संज्ञान मामले में दायर की गई थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल मई में प्रवासी मजदूरों की समस्याओं और दुखों का संज्ञान लिया था और राज्यों को प्रवासी श्रमिकों से किराया नहीं लेने और ट्रेन या बसों में चढ़ने तक मुफ्त भोजन प्रदान करने समेत कई निर्देश पारित किए थे. आदेश को सुरक्षित रखते हुए बेंच ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ (ONORC) योजना लागू करने के लिए कहा था, क्योंकि ये प्रवासी श्रमिकों को दूसरे राज्यों में उनके काम के स्थान पर राशन प्राप्त करने की अनुमति देता है, जहां उनके राशन कार्ड रजिस्टर्ड नहीं हैं.
‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ को चार राज्यों ने नहीं किया लागू
केंद्र ने कहा था कि अधिकांश राज्य ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ लागू कर रहे हैं, उनमें से चार असम, छत्तीसगढ़, दिल्ली और पश्चिम बंगाल ने ऐसा नहीं किया है और इसे लागू करना उनकी तकनीकी तैयारी पर निर्भर करेगा. केंद्र ने बाद में ये भी कहा कि ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ योजना शुरू करने के संबंध में दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार का दावा भ्रामक है, क्योंकि बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक दिल्ली में सब्सिडी वाले राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के खाद्यान्न का लाभ लेने में असमर्थ हैं.
बेंच ने असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को राष्ट्रीय डेटाबेस बनाने के लिए पंजीकृत करने के लिए एक सॉफ्टवेयर बनाने में देरी का कड़ा संज्ञान लिया था और केंद्र से सवाल किया था कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत इस साल नवंबर तक मुफ्त खाद्यान्न का लाभ बिना राशन कार्ड वाले प्रवासी मजदूरों तक कैसे पहुंचेगा.