मनोरंजन

फिल्म समीक्षा/हाउसफुल3: विकलांग सोच का सिनेमा

housefull_1464944918निर्माताः साजिद नाडियाडवाला
निर्देशकः साजिद-फरहाद
सितारेः अक्षय कुमार, रितेश देशमुख, अभिषेक बच्चन, बोमन ईरानी, जैकी श्रॉफ, जैकलीन फर्नांडिस, लीजा हेडन, नर्गिस फाखरी, चंकी पांडे
रेटिंग *

शारीरिक विकलांगता से ज्यादा घातक सोच की विकलांगता होती है। आश्चर्य कि हाल के वर्षों में देशभक्ति का सिनेमा करके प्रशंसा बटोरने वाले अक्षय कुमार हाउसफुल 3 में काम करते हुए यह बात भूल गए। रितेश देशमुख को याद नहीं रहा कि उनके पिता राजनेता थे और वर्षों तक सामाजिक कल्याण के कामों से जुड़े रहे। अभिषेक बच्चन की मां सांसद हैं और पिता पोलियो, टीबी, हेपेडाइटिस बी और तमाम बीमारियों/विकलांगता के विरुद्ध समाज को जागृत करते रहे हैं।

अपनी मानसिक विकलांगता से कैसे तथाकथित मनोरंजन रचा जा सकता है, यह आप लेखक-निर्देशक साजिद-फरहाद और निर्माता साजिद नाडियाडवाला की फिल्म हाउसफुल 3 में देख सकते हैं। खरबपति पिता की तीन लड़कियों को पाने के लिए फिल्म के तीन हीरो खुद को विकलांग बताते हुए उसके सामने पहुंच जाते हैं। एक चल नहीं सकता, दूसरा देख नहीं सकता और तीसरा बोल नहीं सकता। किसी की शारीरिक कमजोरी दूसरों के लिए हंसी का मसाला कैसे बनती है यह हाउसफुल 3 दिखाती है।

हर फिल्म से सामाजिक सरोकार की उम्मीद करना सही नहीं है, परंतु सिनेमा फूहड़ता के कीचड़ में कैसे गिरता है, वह इस फिल्म से पता चलता है। अगर आप किसी की शारीरिक कमजोरियों पर हंस सकते हैं तो यह फिल्म आपके लिए है।

हाउसफुल 3 के लिए यह कहना बेकार है कि यह पिछली दो कड़ियों की तरह ऐसी तथाकथित कॉमेडी है जिसके लिए दिमाग को सिनेमाघर से बाहर रखा जाए। गुजरी फिल्मों की तरह कहानी के नाम पर यहां बेसिर-पैर की बातें गढ़ ली गई हैं। कुछ पुराने सिनेमाई फार्मूले इस्तेमाल कर लिए गए हैं। हाउसफुल 3 उदाहरण है कि कैसे कॉमेडी को लेकर हमारे बड़े और धनवान निर्माता-निर्देशकों की समझ समय बढ़ने के बावजूद अविकसित रह गई। इनके लिए हंसाने का मतलब कमजोरों का मजाक उड़ाना, हीरोइनों के पिता को कार्टून की तरह पेश करना, द्विअर्थी बातें बनाना, लड़कियों को ‘माल’ कहना, संवादों-गीतों में भाषा का भद्दा इस्तेमाल करना है। समझ, संवेदना, संस्कृति से इनका कोई लेना-देना नहीं।

कहानी का मैदान लंदन है। अक्षय कुमार ऐसे गरीब/बेरोजगार हैं जिनका व्यक्तित्व ‘इंडियन’ शब्द सुनते ही खंडित हो जाता है। वह सैंडी से सुंडी बन जाते हैं। दोनों ही किरदारों में वह अजीबोगरीब ढंग से हाथ-पैर हिलाने तथा मुंह बनाने के अलावा कुछ खास नहीं करते। सैंडी/सुंडी का इलाज यही है कि एक दिन उसके पास ढेर सारा पैसा आ जाए। तब ‘इंडियन’ शब्द सुनकर भी उसे गरीबी/बेरोजगारी की बात याद नहीं आएगी। रितेश देशमुख यहां कार रेसर बनने का ख्वाब पाले हुए हैं और अभिषेक बच्चन कामयाब रैपर बनना चाहते हैं।

ऐक्टर अभिषेक क्यों अविकसित रह गए, इसका पता ऐसे चलता है कि वह अपनी भूमिकाएं चुनते वक्त विविधता नहीं देखते। हाउसफुल 3 करते हुए वह भूल गए कि अपनी पिछली (फ्लॉप) फिल्म ऑल इज वेल में भी वह पंजाबी म्यूजिक एलबम बनाने को संघर्ष कर रहे गायक बने थे! रितेश देशमुख कुछ ठीक लगे हैं मगर अक्षय-अभिषेक बहुत निराश करते हैं। तीनों हीरोइनों (जैकलीन फर्नांडिस, लीजा हेडन, नर्गिस फाखरी) ने ऐसा कुछ नहीं किया कि उनके बारे में कुछ कहा जाए। बोमन, चंकी और जैकी के हिस्से कुछ नया नहीं आया। वे कोल्हू के बैल की तरह घूम रहे हैं और उनकी प्रतिभा दुह ली जा चुकी है। यह फिल्म उन दर्शकों के लिए है जो अपनी संवेदना, मस्तिष्क और अस्तित्व को महसूस किए बगैर किसी भी सोच से अपना मनोरंजन कर सकते हैं।

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