फेसबुक का कमाल, 20 साल बाद भाई को भाई से मिलाया
नई दिल्ली: अपने छोटे भाई को ढ़ूंढने के लिए केंद्र सरकार के एक कर्मचारी के मिशन का सुखद अंत बीते सप्ताह हुआ. वह बीते 20 वर्षो से अपने छोटे भोई को ढूंढ़ रहे थे. इस अभियान में उन्हें सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक ने मदद की. किसी बालीवुड फिल्म जैसी यह कहानी विजय नित्नावरे की है जिसमें कई मोड़ आए. विजय नित्नावरे प्रेस इंफोरमेशन ब्यूरो की लाइब्रेरी में काम करते हैं. उन्होंने अपने छोटे भाई हंसराज नित्नावरे को अंतिम बार मई,1996 में देखा था. छोटा भाई मैट्रिक की परीक्षा में फेल हो गया था. इसके बाद वह दबाव में था और बिना किसी को बताए घर छोड़ कर चला गया था. विजय का कहा है कि, “हंसराज बचपन में अच्छा विद्यार्थी था, लेकिन 1995 में मां की मृत्यु के बाद वह परेशान हो गया.
मैट्रिक की परीक्षा में फेल होने के कुछ दिनों के बाद उसने घर छोड़ दिया था. उस वक्त वह 15 साल का था.” विजय ने बताया कि हंसराज तीनों भाइयों और एक बहन में से सबसे छोटा है. वह नौ महीने का था जब पिता की मृत्यु हो गई थी. विजय परिवार में सबसे बड़े हैं. पिता की मौत के बाद परिवार उनके साथ रहने लगा. वह मूल रूप से महाराष्ट्र के वर्धा जिले के रहने वाले हैं. जब हंसराज ने घर छोड़ा तो परिवार भी वर्धा में ही था. विजय ने कहा कि उन्होंने हंसराज की गुमशुदगी की शिकायत पुलिस में दर्ज कराई थी. लेकिन, उन्हें तब आश्चर्य हुआ जब पंद्रह दिनों के बाद हंसराज की एक चिट्ठी मिली. चिट्ठी में हंसराज ने लिखा था, “कृपया मेरी तलाश न करें. मैं ठीक हूं और कुछ बड़ा करने के बाद ही लौटूंगा.” विजय ने कहा कि वह यह जानकर बहुत खुश हुए थे कि उनका भाई जिंदा है. लेकिन, हंसराज को ढूंढने की उनकी उम्मीद नहीं छोड़ी लेकिन जल्द ही यह खुशी गायब हो गई क्योंकि चिट्ठी पर लिखे पिनकोड के लास्ट के दो अंक साफ नहीं थे. इससे यह पता नहीं चल सका कि चिट्ठी किस शहर से आई है. विजय ने कहा, “पिन कोड के शुरू के चार अंकों से यह पता चल गया कि पत्र गुजरात से आया था. मैं गुजरात गया और वहां अपने दोस्तों से संपर्क किया. मैंने गुजरात के लोकल अख़बारों और टीवी चैनलों में हंसराज की गुमशुदगी का विज्ञापन दिया. लेकिन, मेरे सारी कोशिशे बेकार हो गईं.” दुखी होने के बावजूद विजय ने धैर्य नहीं खोया और अपने भाई को खोजते रहे. परिवार का तलाशी अभियान विजय और उनके अन्य भाइयों और बहन की शादी के बाद तक जारी रहा.
अपने छोटे भाई को खोजने के लिए विजय ने इंटरनेट और सोशल मीडिया साइट फेसबुक और ट्विटर का सहारा लिया. इस काम में मदद के लिए उन्होंने 2016 में फेसबुक से संपर्क किया. विजय ने कहा कि फेसबुक को महाराष्ट्र के पुणे में हंसराज नामक का एक व्यक्ति मिला. मेसेज के ज़रिए उस व्यक्ति से संपर्क किया गया तो उसने विजय को अपने बड़े भाई के रूप में पहचानने से इनकार कर दिया. बड़े भाई के रूप में पहचानने से इनकार किए जाने के बावजूद विजय ने अपनी तलाश जारी रखी. उन्होंने हंसराज के कुछ फेसबुक दोस्तों की जानकारी लेने के लिए फेसबुक से रिक्वेस्ट की. विजय ने कहा कि फेसबुक ने उन्हें हंसराज के 6 दोस्त के बारे में जानकारियां दे दीं. इन पर नजर दौड़ाते हुए उन्होंने पाया कि उनमें तीन पुणे के भोसारी में टोयटा कंपनी में काम कर रहे हैं. विजय ने इन तीनों में से एक से ईमेल के जरिए संपर्क किया. उस व्यक्ति ने हंसराज से संपर्क किया और विजय के हाल के बारे में उसे बताया. लेकिन, हंसराज ने एक बार फिर विजय को अपना भाई मानने से इनकार कर दिया. विजय ने कहा कि उन्हें पता था कि पुणे वाला व्यक्ति ही उनका भाई है. विजय ने कहा, ” 5 अप्रैल की शाम को मैं हंसराज के बारे में जानकारी पाने के लिए टोयटा कंपनी के मैनेजर को मेल टाइप कर रहा था. मेल भेजने ही वाला था कि मेरे फोन की घंटी बजी और मैंने फोन उठाया. दूसरी तरफ लाइन पर हंसराज था.
हम लोगों ने ज्यादा बातें नहीं कीं. फोन पर हम लोग रोते रहे.” 12 अप्रैल को विजय पुणे गए अैर हंसराज के परिवार के साथ वापस दिल्ली लौट आए. हंसराज ने विजय से कहा कि घर छोड़ने के बाद वह गुजरात गया. उसने एक दिन कुएं में कूद कर आत्महत्या करने की कोशिश की, लेकिन वहां से गुजर रहे एक व्यक्ति ने उसे बचा लिया. उस व्यक्ति ने हंसराज का पांच वर्षो तक पालन पोषण भी किया. इसके बाद हंसराज नौकरी की तलाश में मुंबई चला गया और वहां महिन्द्रा कंपनी के शोरूम में काम करने लगा. काम करने के दौरान उसे अपनी एक कॉलीग से प्यार हो गया. हंसराज के बैग्राउंड को लेकर लड़की के परिवार विरोध के बावजूद दोनों ने शादी कर ली. हंसराज ने विजय को बताया कि वह मुंबई के पुलिस कमिशनर और ए.सी.पी का ड्राइवर भी रह चुका है.