कोलकाता : कहते हैं दुनिया में सबसे ऊंची उड़ान वे भरते हैं जिनके हौसले बुलंद होते हैं। ऐसा ही एक नाम है कोलकाता के सत्यरूप सिद्धांत का। उन्होंने दुनियाभर के सातों महादेशों के सर्वोच्च शिखरों और सातों महाद्वीपों का सर्वोच्च ज्वालामुखी शिखर सबसे कम उम्र में फतह का विश्व रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज करा लिया है। बुधवार सुबह उन्होंने अंटार्कटिका के माउंट सिडली के सर्वोच्च ज्वालामुखी शिखर पर चढ़ाई पूरी की है। उल्लेखनीय है कि सत्यरूप की उम्र 35 साल 228 दिन है। इसके पहले इतने कम उम्र में सातों महादेशों और सातों महाद्वीपों के सर्वोच्च शिखरों की चढ़ाई किसी ने भी पूरी नहीं की थी। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में उनका नाम दर्ज कर लिया गया है। इसके पहले ऑस्ट्रेलिया के पर्वतारोही डैनियल बुल के नाम यह रिकॉर्ड दर्ज था।
सत्यरूप का बचपन दोस्तों से दूर बीता क्योंकि उन्हें दमे की बीमारी थी। जब सारे दोस्त फुटबॉल या क्रिकेट खेलते थे तब उन्हें इनहेलर का इस्तेमाल करना पड़ता था। लेकिन जज्बातों ने उन्हें इतनी ताकत दी कि उन्होंने न सिर्फ दमा को मात दी बल्कि आज दुनिया के सातों महादेशों के सर्वोच्च शिखर की फतह कर चुके हैं। इसके साथ ही छह ज्वालामुखी शिखरों पर भी चढ़ाई की थी। पिछले साल 21 दिसम्बर को मैक्सिको के ‘पीको द उड़िजारा’ की चढ़ाई पूरी की थी। सातवें ज्वालामुखी शिखर अंटार्कटिका के ‘माउंट सिडली’ के ज्वालामुखी पर्वत शिखर की चढ़ाई करने के बाद वे विश्व रिकॉर्ड बनाने वाले थे जो बुधवार को पूरा हो गया है।
सत्यरूप ने बुधवार को बताया कि उन्होंने 35 साल 228 दिन के उम्र में ही इन सभी पर्वत शिखरों की चढ़ाई पूरी कर ली है| इससे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में उनका नाम दर्ज हो गया है। उनके परिजनों ने बताया कि इस रिकॉर्ड को अपने नाम दर्ज करने के लिए सत्यरूप ने काफी मेहनत की थी। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिला अंतर्गत बरहमपुर में जन्मे सत्यरूप ने कभी भी पर्वत शिखर चढ़ाई के बारे में नहीं सोचा था क्योंकि उन्हें बचपन से ही दमा की बीमारी थी। उन्होंने बताया कि ‘2001 में जब मैं सिक्किम में पढ़ाई करने के लिए गया था, तब वहां एक दिन जब मैं क्लास से बाहर निकला तो सांस लेने में समस्या होने लगी। जब मैंने जेब में हाथ दिया तो पता चला कि मेरे पास इनहेलर नहीं था। ऐसा लगा जैसे उस दिन मेरी जान जाने वाली है। उस दिन मैं संयोग से बच गया|
उसके बाद मैंने तय किया कि दमा से हर हाल में मुक्ति पानी है। दवा के जरिए नहीं बल्कि प्राकृतिक उपायों से।’ वे 2008 में सबसे पहले तमिलनाडु में पर्वत की चढ़ाई करने के लिए गए थे। तब पहली बार ऐसा हुआ था कि चढ़ाई करने पर उन्हें इनहेलर की जरूरत नहीं पड़ी थी। उसके बाद ही उन्होंने तय कर लिया था कि अब समतल का नहीं बल्कि पहाड़ों का सफर तय करेंगे और अब विश्व रिकॉर्ड गढ़ चुके हैं।