जन्म के बाद शुरुआती महीनों में शिशु को धूप और चांद की रोशनी से कई लाभ मिलते हैं। जन्म के बाद कुछ मिनट के लिए बच्चे को धूप में रखा जाता है। चार महीने तक कमरे से बच्चे को बाहर नहीं ले जाना है, तो कमरे में मौजूद खिड़की से भी धूप ली जा सकती है। इसी तरह चांद की रोशनी भी बच्चे के नर्वस सिस्टम के लिए फायदेमंद होती है और मां के मासिक चक्र को संतुलित करती है।
जीवनशैली : नवजात शिशुओं की देखभाल मां को बड़े ही ध्यान से करना चाहिए, ताकि शिशु को किसी तरह की परेशानी न होने पाये। बच्चों की मालिश का चलन नया नहीं है, लेकिन माता पिता अक्सर इस परेशानी से गुजरते हैं कि बच्चे की मालिश कब और कैसे की जाए। शिशु को दूध पिलाने के बाद या उससे पहले मालिश न करें। घी या बादाम तेल को हल्के हाथ से बच्चे के पूरे शरीर पर मलें, नहलाने से पहले मालिश करना बेहतर माना जाता है।
नवजात शिशुओं की त्वचा बेहद नाजुक होती है, बहुत ज्यादा देर तक पानी में रहने से वह सूख सकती है, ध्यान रखें कि पानी ज्यादा गर्म न हो, शुरुआती तीन हफ्ते में गीले कपड़े से बदन पोंछना अच्छा रहेगा। नहाने के बाद बच्चे बेहतर नींद सो पाते हैं। नहाते समय यदि बेबी शैंपू का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो एक हाथ से बच्चे की आंखों को ढक लेना ठीक रहेगा, अन्यथा झाग बच्चे की आंखों में जा सकता है। शिशु बोल नहीं सकता है लेकिन उसे भी डर और चिंता होती है। शिशु से बहुत प्यार से बात करनी चाहिए। जब बच्चा सो रहा हो, तो चिल्लाएं नहीं और न ही तेज बात करें।
कई बार बच्चे को हवा में उछालने पर, उसमें डर पैदा हो सकता है इसलिए ऐसा करने से बचें। एक साल के होने से पहले बच्चे को मधुर संगीत और लोरियां सुनाएं। कभी भी इतने छोटे बच्चे को अकेला न छोड़ें। बच्चे के सामने कटु शब्दों का प्रयोग न करें। प्राचीन समय में भी पारंपरिक रूप से नवजात शिशु को एक अलग कमरे में रखा जाता था, जहां सिर्फ मां या परिवार की किसी बड़ी महिला को ही जाने की अनुमति होती थी। शिशु को लोगों के स्पर्श से दूर रखने और इंफेक्शन से बचाने के लिए ऐसा किया जाता था।
जन्म के बाद तीसरे या चौथे महीने तक शिशु की इम्यूनिटी विकसित नहीं हुई होती है और इसलिए ही बच्चे को अलग रखा जाता है। जिस कमरे में शिशु रहता है, वहां से सभी तरह की नेगेटिविटी और धूल-मिट्टी को हटाने के लिए बच्चे के कमरे में धूप देने का भी रिवाज हुआ करता था। इसके लिए आयुर्वेदिक बूठयों से बच्चे के कमरे में धूप दी जाती थी। ब्राह्मी, हींग, गुग्गुल और जटामांसी से शिशु के कमरे में धूप दी जा सकती है। इससे हवा में मौजूद कीटाणु भी मर जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार जन्म के बाद चार महीने तक शिशु को कमरे के अंदर ही रखना चाहिए और उसके कमरे में ज्यादा लोगों को जाने नहीं देना चाहिए। पारंपरिक रूप से चार महीने पूरे होने पर बच्चे को नहलाकर नए कपड़े पहनाए जाते थे और उसे कमरे से बाहर लाया जाता था। घर के बड़े बच्चे को आशीर्वाद देते थे और फिर बच्चे को घर के बाकी कमरों में ले जाया जा सकता था।