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देहरादून निवासी दिवाकर चमोली और दिनकर बाबुलकर ने याचिका में कहा था कि आठ जून को सचिव धर्मस्व ने समिति को दोबारा भंग कर दिया है। इससे पहले भी धर्मस्व सचिव शैलेश बगौली की ओर से एक अप्रैल को समिति को भंग किया था।
पूर्व में न्यायालय की एकलपीठ ने 30 मई को आदेश पारित कर समिति को बहाल करने के आदेश दिए थे। याचिका में कहा कि सरकार ने दोबारा समिति को भंग कर दिया। पक्षों की सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एकलपीठ ने सरकार के आदेश पर रोक लगा दी।
सत्ता में आने के तुरंत बाद ही भाजपा सरकार ने इस समिति को एक अप्रैल को भंग कर दिया था। उस समय समिति का कहना था कि समिति को इस तरह से भंग नहीं किया जा सकता है। मामला हाइकोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने शासन के आदेश पर रोक लगा दी थी।
इसके बाद आठ जून को फिर समिति को भंग किया जाना बता रहा है कि समिति को लेकर खींचतान खासी तेज है। समिति का गठन पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में हुआ था। भाजपा के कुछ नेताओं को यह रास नहीं आ रहा है। ऐसे में शासन ने फिर समिति को भंग करने का आदेश जारी किया, लेकिन शासन के इस आदेश पर हाइकोर्ट की ओर से रोक लगाए जाने से भाजपा सरकार को एक बार फिर झटका लगा है।